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अकबर इलाहाबादी : शायरी में व्यंग्य की धार ही पहचान (जन्मदिन : 16 नवंबर)

नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। सैयद अकबर हुसैन रिजवी के नाम से लोग भले ही परिचित न हों, लेकिन ‘अकबर इलाहाबादी’ का नाम सुनते ही लोगों के दिलों में गजलों और शायरी का शोर उमड़ने और भावनाएं हिलोर मारने लगती हैं। उनका लेखन हमारे व्यंग्य साहित्य की धरोहर में शुमार है।

नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। सैयद अकबर हुसैन रिजवी के नाम से लोग भले ही परिचित न हों, लेकिन ‘अकबर इलाहाबादी’ का नाम सुनते ही लोगों के दिलों में गजलों और शायरी का शोर उमड़ने और भावनाएं हिलोर मारने लगती हैं। उनका लेखन हमारे व्यंग्य साहित्य की धरोहर में शुमार है।

व्यंग्य की मारक धार को दुनिया में सबसे तीखा प्रहार माना जाता है। यह प्रहार चेहरे पर हंसी के साथ सामने वाले शख्स की नजरों में हया का भाव पैदा करता है। अकबर इलाहाबादी को व्यंग्य साहित्य के धुरंधरों में से एक कहा जाता है। इलाहाबादी की शायरी में हास्य कम, तंज का तड़का ज्यादा देखने को मिलता है।

इलाहाबादी का विद्रोही स्वभाव उन्हें साहित्य के दूसरे दिग्गजों से जुदा करता है। रूढ़िवादिता और धार्मिक ढोंग के वह सख्त खिलाफ थे। उन्होंने व्यंग्यात्म शायरी को नया आयाम दिया।

उनका जन्म 16 नवंबर, 1846 को इलाहाबाद में हुआ था। अकबर के प्राथमिक शिक्षक उनके पिता रहे और घर पर ही उन्होंने बुनियादी शिक्षा ग्रहण की। साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले हुसैन की 15 साल की उम्र में पहली शादी हुई, बाद में दूसरी भी। पहली पत्नी उनसे दो या तीन साल बड़ी थीं। दोनों पत्नियों से उनके दो-दो बच्चे थे।

वकालत की पढ़ाई करने वाले इलाहाबादी ने बतौर सरकारी मुलाजिम नौकरी की। अदालती कामकाज में एक छोटे मुलाजिम के रूप में शामिल होने के बाद वह जिला न्यायधीश के रूप में रिटायर हुए।

साहित्य से लगाव उन्हें अदब के फनकारों के बीच ले आया। साहित्य के क्षेत्र में कदम रखने के बाद हुसैन को ‘अकबर इलाहाबादी’ के नाम से जाना जाने लगा। अकबर के उस्ताद का नाम वहीद था, जो शायर आतिश के शागिर्द थे। अकबर की शायरी में सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर तंज के साथ लोगों की जीवनशैली से जुड़े उदाहरण भी शामिल हैं।

अकबर इलाहाबादी ने लोगों और समाज से लेकर राजनीति व औरतों पर अत्याचार के खिलाफ अपनी शायरी से बखूबी तंज कसे। उनकी शायरी ऐसी कि कुछ लोगों के दिलों में घर कर गई।

अकबर की शैली थी कि वे अपने आसपास के लोगों के स्वभाव पर गौर कर व्यंग्य करने में रुचि रखते थे। पियक्कड़ों के पक्ष में लिखी उनकी गजल का यह शोर बहुत मशहूर हुआ :

हंगामा है क्यूं बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है।

डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है।।

कहावत है कि एक शायर जिंदगी को बेहद ही करीब नजरिए से देखता है। अकबर के कई शेर और गजलों ने इसकी पुष्टि की है। उन्होंने जिंदगी की दौड़-भाग में पिसते लोगों पर एक शेर से व्यंग्य किया है-

हुए इस कदर मुहज्जब, कभी घर का न मुंह देखा।

कटी उम्र होटलों में और मरे अस्पताल जाकर।।

वहीं समाज में औरतों पर हुए जुल्मों और मुस्लिम समाज की कुछ कुरीतियों के खिलाफ अकबर ने अपनी शायरी में समाज की हकीकत से पर्दा उठाया है।

शायर को परिपूर्ण तब तक नहीं माना जाता, जब तक वे सियासत की चरमराती व्यवस्था पर अपने शब्द बाणों से तंज न कसे। अकबर ने सियासत पर प्रहार करते हुए लिखा है-

“शबे-तारीक (अंधेरी रात), चोर आए, जो कुछ था ले गए

कर ही क्या सकता था, बंदा खांस लेने के सिवा”

अकबर इलाहाबादी ने भारत को बनते और आजाद हुए देखा था। वह 1857 की क्रांति और गांधीजी के नेतृत्व में चले स्वाधीनता आंदोलन के गवाह बने। उन्होंने एक समाज सुधारक के रूप में भी काम किया था।

अकबर को एक जीवंत और आशावादी कवि के रूप में जाना जाता था। लेकिन उनके जीवन में हुई त्रासदी ने उनके अनुभव को घेर लिया था। कम उम्र में बेटे और पोते के निधन ने उन्हें भावनात्मक रूप से तोड़ दिया था। यही कारण रहा कि वह तेजी से चिंताग्रस्त और अवसाद में रहने लगे थे और अंत में 75 वर्ष की उम्र में 9 सितंबर, 1921 को उनका इंतकाल इलाहाबाद में हो गया।

अकबर इलाहाबादी : शायरी में व्यंग्य की धार ही पहचान (जन्मदिन : 16 नवंबर) Reviewed by on . नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। सैयद अकबर हुसैन रिजवी के नाम से लोग भले ही परिचित न हों, लेकिन 'अकबर इलाहाबादी' का नाम सुनते ही लोगों के दिलों में गजलों और शायरी नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। सैयद अकबर हुसैन रिजवी के नाम से लोग भले ही परिचित न हों, लेकिन 'अकबर इलाहाबादी' का नाम सुनते ही लोगों के दिलों में गजलों और शायरी Rating:
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