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अमीर को उच्च और गरीब को हेय समझना अनुचित-चाणक्य नीति

January 30, 2015 9:09 am by: Category: ब्लॉग से Comments Off on अमीर को उच्च और गरीब को हेय समझना अनुचित-चाणक्य नीति A+ / A-

ch2 हमारे देश में गरीब, मजदूर तथा निम्न आय वाले व्यवसायियों के साथ हमदर्दी का एक बकायदा अभियान आजादी के साठ वर्षों से चल रहा है।  पश्चिम में जन्मे कार्ल मार्क्स ने अपना एक ग्रंथ लिखकर मजदूरों के मसीहा की छवि पायी और उसके भारतीय अनुयायी प्रायः देश में व्याप्त आर्थिक विरोधाभासों पर टिप्पणियां कर यह प्रमाणित करने का प्रयास करते है भारी मात्रा में पूंजीपतियों के अलावा वह सभी वर्ग और वर्ण के लोगों सरंक्षण की सोचते है। इन्हें जनवादी या वामपंथी बौद्धिक समुदाय का सदस्य कहा जाता है। इन्हंी के विचारों का अनुरकरण प्रगतिशील या समाजवादी बौद्धिक लोगों भी करते हैं। जनवादी तथा प्रगतिशील विचारकों में बस इतना ही अंतर है कि जनवादी संपूर्ण प्रजा और उसकी गतिविधियों पर राज्य का नियंत्रण चाहते हैं और प्रगतिशील आंशिक रूप से ही इसे स्वीकार करते हैं।

आमतौर पश्चिम में एकदम खुली अर्थव्यवस्था है जिसमें राज्य की भूमिका बहुत अधिक नहीं रहती। कार्ल मार्क्स ने गरीबों और मजदूरों के भले को लेकर जो दर्शन प्रस्तुत किया है उसमें यह माना गया है कि मनुष्य केवल भौतिक तत्वों से जुड़कर ही प्रसन्न रह सकता है और राज्य की यह जिम्मेदारी है कि वह समस्त प्रजा का स्वयं लालन पालन करे। हमारे देश के बुद्धिमानों ने उसका आधा विचार इसलिये माना क्योंकि उनको लगा कि भारत में जहां अध्यात्म ज्ञान की प्रधानता है वहां मार्क्स दर्शन पूरी तरह से अपनाना की बात करना स्वयं को विद्वान के रूप में प्रतिष्ठित करने के बाधा पैदा करना होगी। यही कारण है कि गरीब और मजदूर के भले का नारा देते हुए अनेक लोगों ने प्रतिष्ठा, पद और पैसा पाया। भारत में समाज कल्याण का नारा भले ही लोकप्रिय है पर फिर भी लोग अपने प्राचीन ग्रंथों से विमुख नहीं हुए। यही कारण है कि हमारे इस देश में भौतिकता का जाल फैलने के बावजूद लोग आज भी अध्यात्म ज्ञान में अपनी रुचि रखते हैं।

चाणक्य नीति में कहा गया है कि

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धनहीनो न हीनश्च धनिकः सुनिश्चयः।

विद्यारत्नेन वो हीनः सर्ववस्तुषु।।

            हिन्दी में भावार्थ-हमेशा ही धन रहित व्यक्ति हीन नहीं होता और न ही धनवान दृढ़ व्यक्तित्व का स्वामी होता है।

हमारे यहां आर्थिक विकास का महत्व तभी माना जाता है जब मनुष्य का चारित्रिक, वैचारिक तथा व्यक्तित्व की छवि का आधार भी मजबूत हो।  किसी के पास बहुत धन सपंदा हो मगर उसका चरित्र, वैचारिक तथा मानसिक तत्व पतनशील हो तो उसे सम्मान नहीं मिलता।  पाश्चात्य अर्थशास्त्र के अनुसार मनुष्य भी अन्य जीवों की तरह ही केवल दैहिक क्रियाओं तक ही सीमित रहता है इसलिये उसे केवल सांसरिक विषयों पर ही सुविधा देना राज्य का दायित्व है जबकि हमारे देशी अर्थशास्त्र के अनुसार मनुष्य का मन भी होता है जो भौतिकता से प्रथक विषयों पर विचरण करना चाहता है। रोटी दैहिक अंतिम सत्य है पर मन की भूख उससे कहीं ज्यादा होती है। मुख्य बात यह है कि श्रम के आधार पर जीवन जीने वाले गरीब, मजदूरी या छोटे व्यवसायी धन की दृष्टि से हीन होते हैं पर इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि वह भिखारी या अज्ञानी हैं।  देखा यह जा रहा है कि जन कल्याण का नारा देने वाले यही समझते हैं कि जिसके पास अल्प धन है उसे हेय मानते हुए उसे संपन्नता प्रदान करने का दायित्व राज्य ले।  इतना ही नहीं अनेक कथित समाज सेवी तो गरीबों की सेवा करने का दावा इस तरह करते है जैसे कि वह भिखारियों को दान देते हों। सच बात तो यह कि किसी भी समाज का सही संचालन श्रमिक वर्ग करता है भले ही वह स्वयं धन अधिक अर्जित नहीं कर पाता मगर सारी गतिविधियों का आधार वही होता है।

कहने का अभिप्राय यह है कि धन के आधार पर आदमी गरीब या अमीर नहीं होता। चरित्र, विचार तथा व्यवहार के आधार पर व्यक्ति की छवि बनती और बिगड़ती है। अगर ऐसा नहीं होता तो गरीब श्रम नहीं करते और हमारे देश में भिखारियों की संख्या कहीं अधिक होती। इसका मतलब यह है कि हमारे देश में गरीबों, मजदूरों और छोटे व्यवसायियों का एक बहुत बड़ा वर्ग है जो धन कम मिलने के बावजूद भीख मांगने की बजाय  श्रम में रत रहना पसंद करता है और इससे भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के सशक्त होने की पुष्टि भी होती है।

 

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’ के ब्लॉग से 

अमीर को उच्च और गरीब को हेय समझना अनुचित-चाणक्य नीति Reviewed by on . हमारे देश में गरीब, मजदूर तथा निम्न आय वाले व्यवसायियों के साथ हमदर्दी का एक बकायदा अभियान आजादी के साठ वर्षों से चल रहा है।  पश्चिम में जन्मे कार्ल मार्क्स ने हमारे देश में गरीब, मजदूर तथा निम्न आय वाले व्यवसायियों के साथ हमदर्दी का एक बकायदा अभियान आजादी के साठ वर्षों से चल रहा है।  पश्चिम में जन्मे कार्ल मार्क्स ने Rating: 0
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