Tuesday , 16 April 2024

ब्रेकिंग न्यूज़
Home » धर्मंपथ » अरुणाचल के सुदूर देहात में अमेरिकी पिता-पुत्री सिखा रहे बच्चों को कंप्यूटर (आईएनएस विशेष)

अरुणाचल के सुदूर देहात में अमेरिकी पिता-पुत्री सिखा रहे बच्चों को कंप्यूटर (आईएनएस विशेष)

तवांग (अरुणाचल प्रदेश), 1 जुलाई (आईएएनएस)। नेशनल ज्योग्राफिक के अन्वेषक माइक लिबेकी और उनकी 14 वर्षीया बेटी लिलियाना ने दुनिया के कई दूर-दराज के इलाकों की यात्राएं की हैं, मगर समुद्र से काफी दूर अरुणाचल के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों का सैर करना अमेरिकी पिता-पुत्री के लिए बेहद अनोखा रहा है।

तवांग (अरुणाचल प्रदेश), 1 जुलाई (आईएएनएस)। नेशनल ज्योग्राफिक के अन्वेषक माइक लिबेकी और उनकी 14 वर्षीया बेटी लिलियाना ने दुनिया के कई दूर-दराज के इलाकों की यात्राएं की हैं, मगर समुद्र से काफी दूर अरुणाचल के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों का सैर करना अमेरिकी पिता-पुत्री के लिए बेहद अनोखा रहा है।

पिता-पुत्री बहुधा मानवतावादी व परोपकार के अभियानों के लिए सुदूरवर्ती इलाकों की खाक छानते रहे हैं।

हाल ही में इन्होंने कंप्यूटर प्रौद्योगिकी क्षेत्र की अग्रणी कंपनी डेल के साथ एक समझौता किया है और वे तवांग के सुदूर गांव में कंप्यूटर शिक्षा के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।

पिता-पुत्री द्वारा संचालित ‘झमत्से गत्सल चिल्ड्रन कम्युनिटी’ में इलाके के करीब 90 बच्चों का पालन-पोषण और उनकी शिक्षा की व्यवस्था की गई है। इन बच्चों को यहां कंप्यूटर का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस काम में पिता-पुत्री को डेल कर्मचारियों का भी सहयोग मिल रहा है, जिन्होंने इस केंद्र में 20 नए लैपटॉप, नए प्रिंटर, इंटरनेट की सुविधा प्रदान की है। इस केंद्र में तावांग के बच्चों और अध्यापकों को कंप्यूटर की शिक्षा दी जा रही है।

कंप्यूटर केंद्र और कम्युनिटी की अन्य इमारतों में बिजली के लिए सौर ऊर्जा पैनल और सौर जनरेटर भी स्थापित किए गए हैं।

माइक ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “हम कम्युनिटी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। केंद्र में शिक्षा ग्रहण कर रहे सभी बच्चे या तो अनाथ हैं या पारिवारिक समस्याओं के कारण यहां रहने आए हैं। ये ऐसे बच्चे हैं, जिनके परिवार में कभी किसी बच्चे को पढ़ाई करने का मौका नहीं मिला और ये शिक्षा ग्रहण करने वाली अपने परिवार की पहली पीढ़ी के बच्चे हैं।”

उन्होंने कहा, “हमने यहां अनाथ बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के मकसद से सौर ऊर्जा की व्यवस्था और कंप्यूटर लैब व इंटरनेट की सुविधा प्रदान की है।

समुदाय के लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे कॉलेज जाएं। कंप्यूटर और इंटरनेट के बगैर वे पीछे रह जाएंगे और अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाएंगे। आज हम जिस दौर में रह रहे हैं, वहां प्रौद्योगिकी प्रगति की जरूरत है।”

कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी प्रौद्योगिकी के बिना प्रगति संभव नहीं है। माइक ने बताया कि तवांग में सभी उपकरण अमेरिका से मंगाए गए हैं और डेल के कर्मचारियों ने यहां इन उपकरणों की संस्थापना में मदद की है।

उन्होंने कहा, “लेकिन सिर्फ कंप्यूटर स्थापित करना काफी नहीं था। हमें यह भी सुनिश्चित करना था कि बच्चे इनका इस्तेमाल करने में सक्षम हो पाएं। इसलिए उनको समुचित ढंग से प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जब कभी कोई समस्या हो तो उन्हें तकनीशियनों से मदद मिले। हमें यह भी सुनिश्चित करना था कि सिस्टम सौर ऊर्जा से संचालित हों, क्योंकि इस तरह के दूरदराज के इलाकों में प्राय: बिजली नहीं होती है।”

जब उन्होंने काम शुरू किया तो अच्छे नतीजे देखने को मिले और अनुभव संतोषजनक रहा, क्योंकि गत्सल चिल्ड्रन कम्युनिटी के बच्चों ने पहली बार कंप्यूटर देखा था।

उन्होंने बताया, “छोटे-छोट बच्चों ने जब लिलियाना को कंप्यूटर चलाते और इंटरनेट का इस्तेमाल करते देखा तो उनके चेहरे खिल गए। लिलियाना ने 14 साल की उम्र में सभी सात महादेशों के 26 देशों की यात्राएं की है और उसने यहां कंप्यूटर लगाने में अपने पिता की मदद की है। उसे कंप्यूटर चलाते देख बच्चे ही नहीं यहां के शिक्षक और अन्य कर्मी भी रोमांचित थे। उनमें सीखने की लालसा बलवती हो गई।”

उन्होंने कहा, “हर समय हम समुदाय से जुड़ते हैं और हमें उनसे जो मिलता है, उसके एवज में उन्हें कुछ वापस करने की कोशिश करते हैं, क्योंकि हम उनको जो देते हैं, उससे ज्यादा हमें मिलता है। हमारे पास जो अवसर हैं, वे उनके पास नहीं हैं और उनकी जिंदगी में थोड़ा बदलाव लाकर सचमुच हमें बड़ी तसल्ली मिलती है। हम उनको कंप्यूटर और इंटरनेट प्रदान कर रहे हैं।”

उन्होंने कहा, “आप अपने और मेरे बारे में सोचिए। हमें ये प्रौद्योगिकी वरदान के रूप में मिली है, लेकिन हम कभी इसके महत्व को नहीं समझते हैं। हम यह कभी यह नहीं समझते हैं कि अगर हम भी इनके जैसे बदकिस्मत होते तो हमारी जिंदगी कैसी होती।”

माइक ने कहा कि जिस तरह टेक्नोलोजी शब्द टू से बना है, उसी प्रकार वे इस प्रोजेक्ट के बारे में परिकल्पना करते हैं।

उन्होंने कहा, “हम प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल एक औजार के रूप में कर रहे हैं। ये बच्चे भी अन्य लोगों की तरह ही कॉलेज जाना चाहते हैं। तो फिर इन सुदूर इलाके के बच्चों को भी हमारी तरह अवसर क्यों न मिले। इसी दिशा में हम अपना काम कर रहे हैं। अगर हम अपने योगदान से एक समुदाय के जीवन में बदलाव लाते हैं और उससे हजारों लोगों के जीवन में बदलाव आ सकता है, क्योंकि इस तरह की पहलों का प्रभाव तरंग की तरह दूर तक जाता है। जो आज इस प्रयास से लाभ उठा रहे हैं, उनको जब कभी मौका मिलेगा तो वे दूसरों की जिंदगी में बदलाव लाने की कोशिश करेंगे।”

झमत्से गत्सल चिल्ड्रन कम्युनिटी अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिला में स्थित है। यहां से सबसे नजदीक में लुमला शहर है, जहां कार से महज आधा घंटे में पहुंचा जा सकता है और पैदल चलने पर एक-दो घंटे लगते हैं। यहां कम्युनिटी स्कूल चलता है, जिसमें 90 छोटे-छोटे बच्चों से लेकर किशोर उम्र के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते हैं।

(यह साप्ताहिक फीचर आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम फाउंडेशन की सकारात्मक पत्रकारिता परियोजना का हिस्सा है।)

अरुणाचल के सुदूर देहात में अमेरिकी पिता-पुत्री सिखा रहे बच्चों को कंप्यूटर (आईएनएस विशेष) Reviewed by on . तवांग (अरुणाचल प्रदेश), 1 जुलाई (आईएएनएस)। नेशनल ज्योग्राफिक के अन्वेषक माइक लिबेकी और उनकी 14 वर्षीया बेटी लिलियाना ने दुनिया के कई दूर-दराज के इलाकों की यात्र तवांग (अरुणाचल प्रदेश), 1 जुलाई (आईएएनएस)। नेशनल ज्योग्राफिक के अन्वेषक माइक लिबेकी और उनकी 14 वर्षीया बेटी लिलियाना ने दुनिया के कई दूर-दराज के इलाकों की यात्र Rating:
scroll to top