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उम्र सिर्फ एक नंबर है : कुलदीप राघव (युवा लेखक से बातचीत)

नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। हिंदुस्तान में शादी को लेकर लड़के और लड़की की उम्र पर जितनी हायतौबा मचती है, उतनी शायद ही आपको दुनिया के किसी कोने में देखने को मिले। माना यह जाता है कि पत्नी को हर हाल में उम्र में पति से छोटी होनी चाहिए, अन्यथा वह अच्छी पत्नी नहीं बन सकती।

नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। हिंदुस्तान में शादी को लेकर लड़के और लड़की की उम्र पर जितनी हायतौबा मचती है, उतनी शायद ही आपको दुनिया के किसी कोने में देखने को मिले। माना यह जाता है कि पत्नी को हर हाल में उम्र में पति से छोटी होनी चाहिए, अन्यथा वह अच्छी पत्नी नहीं बन सकती।

गांवों, छोटे शहरों के साथ-साथ महानगरों में भी ऐसी ही सोच रखने वालों ही संख्या ज्यादा दिख रही है। प्रियंका चोपड़ा और निक जोनस इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। ऐसे में नवोदित लेखक और पेशे से पत्रकार कुलदीप राघव की किताब ‘आई लव यू’ इसी जटिल मुद्दे को उठाती है।

इस किताब की कहानी समाज की उस हकीकत को आईना दिखाती है, जहां बेटे की शादी के लिए उससे कमउम्र लड़की ढूंढी जाती है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर किसी लड़के को अपनी उम्र से पांच साल बड़ी लड़की से प्यार हो जाए तो क्या होगा? अगर वह लड़की उम्र में पांच साल बड़ी होने के साथ तलाकशुदा भी है तो क्या होगा? इतना ही नहीं, अगर उसकी एक बेटी भी है तो हालात क्या होंगे?

कुलदीप (26) कहते हैं, “यह किताब समाज की हकीकत को बयां करती है। हम बेशक चाहे प्रगतिशील बातें करें, लेकिन जब तक हम उसे व्यवहार में नहीं लेकर आएंगे, कुछ खास होने वाला नहीं। इस सोच को खत्म करने की जरूरत है।”

वास्तविकता भी यही है कि हमारे समाज में शादी लायक लड़के के लिए लड़की के गुण से अधिक उसकी उम्र महत्व रखती है। इसी बात को समझाते हुए कुलदीप कहते हैं, “बेशक, मेरी किताब की कहानी भी इसी बारे में है। शुरुआत में लड़का अपने घर पर यह बताने से कतराता है कि उसे अपनी उम्र से पांच साल बड़ी लड़की से प्यार है और वह उससे शादी करना चाहता है। एक वक्त पर लड़के के माता-पिता बेटे की खुशियों को देखकर इस रिश्ते के लिए हामी भी भर देते हैं लेकिन जब उन्हें यह पता चलता है कि लड़की तलाकशुदा है और उसकी पहली शादी से एक पांच साल की बेटी है तो अचानक परिवार की इज्जत आड़े आ जाती है।”

शिवकुमार गोयल पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित कुलदीप का कहना है कि बदलाव लाने के लिए सशक्त माध्यमों और शख्सियतों की जरूरत है। वह कहते हैं, “लेखनी और सिनेमा के जरिए इस सोच को बदला जा सकता है। इस विषय पर अगर कोई बड़ा लेखक कुछ लिखेगा, तो उसका असर अधिक व्यापक होगा। ठीक वैसे ही जैसे माहवारी और सैनेटरी पैड को लेकर ‘फुल्लू’ नाम की एक फिल्म बनी थी, लेकिन वह कोई असर नहीं छोड़ पाई, लेकिन जब इसी विषय पर अक्षय कुमार की ‘पैडमैन’ रिलीज हुई, तो उसने गहरी छाप छोड़ी।

वह कहते हैं कि उम्र सिर्फ एक नंबर है..प्यार में उम्र की कोई सीमा नहीं होती और न ही कोई बंधन होता है।”

कुलदीप को कोलकाता की संस्था ‘द इंडियन आवाज’ की ओर से 100 इन्सपायरिंग ऑथर्स की लिस्ट में भी शामिल किया गया है।

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