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एसी बार में शराब पीएं या ट्यूशन पढ़ें, टैक्स बराबर

भोपाल, 2 नवंबर (आईएएनएस)। देश की कर व्यवस्था सवालों के घेरे में है, क्योंकि वातानुकूलित रेस्टोरेंट में खाना खाएं और चाहे अपना भविष्य संवारने के लिए छात्र प्राइवेट कोचिंग या ट्यूशन पढ़ें, दोनों पर लगने वाला केंद्रीय सेवा कर (सर्विस टैक्स) अब जीएसटी जैसा है। शराब के जीएसटी से बाहर होने पर राज्य सरकारें लगभग 18 फीसदी कर वैट के जरिए वसूल रही हैं।

भोपाल, 2 नवंबर (आईएएनएस)। देश की कर व्यवस्था सवालों के घेरे में है, क्योंकि वातानुकूलित रेस्टोरेंट में खाना खाएं और चाहे अपना भविष्य संवारने के लिए छात्र प्राइवेट कोचिंग या ट्यूशन पढ़ें, दोनों पर लगने वाला केंद्रीय सेवा कर (सर्विस टैक्स) अब जीएसटी जैसा है। शराब के जीएसटी से बाहर होने पर राज्य सरकारें लगभग 18 फीसदी कर वैट के जरिए वसूल रही हैं।

मुंबई के चार्टर्ड एकाउंटेंट दर्शन मेहता का कहना है, “कोचिंग और निजी ट्यूशन पढ़ने जाने वाले छात्रों से 18 प्रतिशत सेवा कर की वसूली किसी भी सूरत में अच्छी नहीं है। एक तो सरकार बेहतर शिक्षा नहीं दे पा रही है, दूसरी ओर गरीब बच्चा कहीं कोचिंग या ट्यूशन पढ़ने जाता है तो उसकी शिक्षा सेवा कर (अब जीएसटी) के चलते और महंगी हो जाती है।”

यह बताना लाजिमी है कि पूर्व में वातानुकूलित बार में शराब पीने या खाना खाने पर वैट या सर्विस चार्ज लिया जाता था, मगर जीएसटी से इसे बाहर रखे जाने पर राज्य सरकारों द्वारा वैट या अन्य कर के जरिए 18 प्रतिशत कर वसूला जा रहा है। इसे कम किए जाने की कवायद जारी है, मगर कोचिंग व निजी ट्यूशन पर लगने वाले 18 प्रतिशत सेवा कर की कोई चर्चा ही करने को तैयार नहीं है।

मध्य प्रदेश के नीमच जिले के सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने सूचना के अधिकार के तहत केंद्रीय राजस्व विभाग के डायरेक्टेट जनरल ऑफ सिस्टम एंड डाटा मैनेजमेंट (डीजीएसडीएम) से जो जानकारी हासिल की है, वह चौंकाने वाली है।

यह बताती है कि केंद्र सरकार को कोचिंग और निजी ट्यूशन से मिलने वाला सेवा कर का राजस्व चार वर्ष में लगभग तीन गुना हो गया है। वर्ष 2012-13 में जहां 757 करोड़ का राजस्व मिला था, जो बढ़कर 2016-17 में 2041 करोड़ हो गया है।

डीजीएसडीएम के द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी से पता चलता है कि वर्ष 2013-14 में कोचिंग व निजी ट्यूशन से 1172 करोड़, वर्ष 2014-15 में 1304 करोड़ और वर्ष 2015-16 में 1630 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ।

शिक्षाविद् और देवी अहिल्या बाई विश्वविद्यालय इंदौर के पूर्व कुलपति भरत छापरवाल का कहना है कि स्वास्थ्य और शिक्षा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकारों की है, मगर उसने दोनों ही क्षेत्र में हाथ डाल दिए हैं। निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, कोचिंग व प्राइवेट ट्यूशन पर सेवा कर बढ़ाकर सरकार ने अपरोक्ष रूप से निजी संस्थानों को ही संरक्षण दिया है।

उन्होंने कहा, “मुसीबत में तो गरीब छात्र होंगे, पहले तो उनके लिए फीस का इंतजाम आसान नहीं, ऊपर से सेवा कर की दोहरी मार। हां, अमीर घरों के बच्चों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।”

चार्टर्ड एकाउंटेंट मेहता कहते हैं, “एक तरफ विद्यालयों और महाविद्यालयों की शिक्षा का हाल किसी से छुपा नहीं है, मजबूरी में छात्रों को ट्यूशन और कोचिंग का सहारा लेना होता है। एक तरफ सरकार अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं कर रही, दूसरी ओर उन पर बोझ डाल रही है।”

सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ सवाल करते हैं कि किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश में यह कैसे होना चाहिए कि बार में शराब पीने और गुरु के चरणों में बैठकर ज्ञान अर्जित करने पर लगने वाला ‘कर’ समान हो। सरकार को तो कोचिंग व निजी ट्यूशन पर लगने वाले कर को न्यूनतम रखना चाहिए या खत्म कर देना चाहिए।

मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के अधिकारी जय मैथ्यू का कहना है कि पहले निगम के होटल व बार में 10 प्रतिशत वैट और छह प्रतिशत सर्विस चार्ज लगता था, मगर केंद्र सरकार के अमल में लाए गए जीएसटी के बाद शराब पर 18 प्रतिशत और वीयर 14 प्रतिशत वेट हो गया है। पहले शराब पर 10 प्रतिशत वैट व छह प्रतिशत सर्विस चार्ज लगता था, यह 16 प्रतिशत हुआ, अब सिर्फ वैट 18 प्रतिशत लिया जा रहा है।

सवाल उठता है कि अगर आपको अपना ज्ञान बढ़ाना है, मगर सरकारी विद्यालयों और महाविद्यालयों में कारगर इंतजाम नहीं है, तो आ क्या करेंगे? ऐसे में सिर्फ एक ही रास्ता है और वह है कोचिंग व ट्यूशन का सहारा लेना। यह काम भी उतना आसान नहीं है, क्योंकि सरकार एक तरफ जरूरतों को पूरा नहीं कर रही है और दूसरी ओर छात्रों व उनके परिजनों पर कर का बोझ बढ़ा रही है। सरकार का यह कदम कल्याणकारी और लोकहितकारी सरकारों की परिभाषा के विपरीत ही माना जाएगा।

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