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कार्बन फुट प्रिंट की अवधारणा

January 22, 2015 6:36 pm by: Category: विज्ञान Comments Off on कार्बन फुट प्रिंट की अवधारणा A+ / A-

15433361224_98b23ba323_zकार्बन फुटप्रिंट का मतलब किसी एक संस्था, व्यक्ति या उत्पाद द्वारा किया जाने वाला कुल कार्बन उत्सर्जन होता है। दूसरे शब्दों में, इसका मतलब कार्बन डाइऑक्साइडकार्बन या ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी होता है। कार्बन फुटप्रिंट का नाम इकोलाॅजिकल फुटप्रिंट विमर्श से निकला है। यह इकोलाॅजिकल फुटप्रिंट का ही एक अंश है। उससे अधिक यह जीवनचक्र आकलन (एलसीए) का हिस्सा है। किसी व्यक्ति, संस्था या वस्तु के कार्बन फुटप्रिंट का आकलन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के आधार पर किया जा सकता है। सम्भवतः कार्बन फुटप्रिंट का सबसे बड़ा कारण इंसान की इच्छा ही होती है। इसके साथ घर में इस्तेमाल होने वाली बिजली की शरूरत भी इसका बड़ा कारण है।

वैज्ञानिकों के अनुसार इंसान की करीब सभी आदतें, जिनमें खानपान से लेकर पहने जाने वाले कपड़े तक शामिल हैं, कार्बन फुटप्रिंट का कारण बनते हैं।

दूसरे शब्दों में हर काम के लिए ऊर्जा की जरूरत पड़ती है और इससे कार्बन डाइआॅक्साइड गैस निकलती है, जो धरती को गर्म करने वाली सबसे अहम गैस है। हम दिन, महीने या साल में जितनी कार्बन डाइऑक्साइड पैदा करते हैं, वह हमारा कार्बन फुटप्रिंट है। इसे कम-से-कम रख कर ही पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन के प्रकोप से बचाया जा सकता है।

ग्रीनहाउस गैसों में कमी लाने के कई तरीके हैं। सौर, पवन ऊर्जा के अधिक इस्तेमाल और पौधारोपण आदि से कार्बन उत्सर्जन में कमी लाई जा सकती है। कार्बन उत्सर्जन और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का वातावरण में निकास जीवाश्म ईंधन, कच्चे तेल और कोयले के जलने से होता है। क्योटो प्रोटोकाॅल में कार्बन उत्सर्जन और ग्रीनहाउस गैसों पर मसौदा पेश किया गया।

अपने कार्बन फुटप्रिंट में कमी घर में बिजली इस्तेमाल में किफायत से, फ्लोरेसेंट बल्बों के इस्तेमाल से लाई जा सकती है। अपने बर्तनों को हाथ से धोकर, उन्हें खुले वातावरण में रखकर सुखाएँ। ग्लास, धातुओं, प्लास्टिक और कागज को एकाधिक बार इस्तेमाल में लाएँ। अपने रेफ्रिजरेटर की रफ्तार धीमी रखें। घर की दीवारों पर हल्के रंग का पेंट भी इसमें मददगार होता है।

छोटे कदम, बड़ा असर

दुनिया खतरे में है। तरक्की की दौड़ में हमने प्रकृति के साथ ऐसा खिलवाड़ किया पृथ्वी के वातावरण में जहरीली गैसों का जमाव बेहिसाब बढ़ा है। इससे जलवायु असन्तुलित हो गई है और धरती का तापमान बढ़ने लगा है।

इससे मौसम का मिजाज भी बदल रहा है। आने वाले बरसों में सूखे और बाढ़ से तबाही की सम्भावना बढ़ी है। हम धरती को बचाने में अगर थोड़ी-सी भी मदद कर सकें तो, हमारी छोटी-छोटी कोशिशें मिलकर बड़ा फर्क ला सकती है। ये कोशिशें निम्न प्रकार से हो सकती हैं : 1. जहाँ भी हो सके ऊर्जा बचाएँ। यह बचत आपके फालतू के खर्च भी कम करेगी।
2. सीएफएल बल्बों का इस्तेमाल करें। सीएफएल का इस्तेमाल करने से साल में करीब 70 किलो कार्बन डाइऑक्साइड बचाया जा सकता है।
3. नन्हें इंडिकेटर और स्टैंडबाय मोड पर अटके गैजेट्स भी कई किलो कार्बन डाइऑक्साइड पैदा करते हैं।

4. वाॅशिंग मशीन तभी चलाएँ जब उचित मात्रा में कपड़े हों। 5. स्टार लेवल वाले उपकरण 15 प्रतिशत तक बिजली बचाते हैं।
6. गाड़ी के टायरों में हवा सही रखकर 3 प्रतिशत ईंधन बचा सकते हैं।
7. अधिक से अधिक वृक्ष लगाएँ। एक अकेला वृक्ष अपनी जिन्दगी में एक टन कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है।
8. स्थानीय रूप से उपलब्ध खाद्य पदार्थों के इस्तेमाल से ऊर्जा की खपत आधी की जा सकती है।
9. खाना बर्बाद न करें। इसे तैयार करने में बहुत ऊर्जा लगती है। फ्रोजन फूड की जगह ताजा खाना खाएँ।
10. डिब्बाबन्द चीजों से बचें। आपकी किफायत दुनिया को बचा सकती है।
11. अगर हो सके तो प्राकृतिक (अक्षय) ऊर्जा प्रयोग में लाएँ।

 

सालाना कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (हजार मीट्रिक टन में)
चीन 6,103,493
अमरीका 5,752,289
यूरोप 3,914,359
रूस 1,564,669
भारत 1,510,351

 

कुल उत्सर्जन में विभिन्न देशों की (हिस्सेदारी) (प्रतिशत में)
चीन 21.5
अमरीका 20.2
यूरोप 13.8
रूस 5.5
भारत 5.3

 

उत्सर्जन के कारण (प्रतिशत में)
बिजली और हीटिंग 24.6
भू-उपयोग में परिवर्तन 18.2
खेती 13.5
परिवहन 13.5
उद्योग 10.4
Source: योजना, अप्रैल 2010
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