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कोई भी संगीत खराब नहीं होता : तन्मय बोस

नई दिल्ली, 26 मार्च (आईएएनएस)। प्रसिद्ध तबला वादक तन्मय बोस का मानना है कि संगीत, धुनों का संगम है और कोई भी संगीत खराब नहीं होता, अगर वादक ने वाद्ययंत्र के साथ न्याय करे।

नई दिल्ली, 26 मार्च (आईएएनएस)। प्रसिद्ध तबला वादक तन्मय बोस का मानना है कि संगीत, धुनों का संगम है और कोई भी संगीत खराब नहीं होता, अगर वादक ने वाद्ययंत्र के साथ न्याय करे।

आईएएनएस से साक्षात्कार के दौरान बोस ने कहा कि अच्छा संगीत हमारी विरासत को सहेजने में सफल होगा। अलग-अलग शैलियों की धुनों को मिलाना ‘फ्यूजन म्यूजिक’ है, जिसके बारे में संगीत सुनने वाले को ज्यादा पता नहीं होता, मगर जो उसे अच्छा लगता है, वह उसमें मग्न हो जाता है।

कोलकाता से ताल्लुक रखने वाले तन्मय बोस हाल ही में दिल्ली के एचसीएल कंसर्ट में अपनी कला का प्रदर्शन करने आए थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि हर प्रकार का संगीत अनोखा है।

फरु खाबाद घराने से ताल्लुक रखने वाले बोस ने शास्त्रीय संगीत की दुनिया में अपने करियर की शुरुआत गुरु पंडित महाराज बनर्जी की छत्रछाया में की थी और पंडित मंटू बनर्जी से हारमोनियम बजाने की कला सीखी है। पंडित कनाई दत्त के अधीन बोस ने ‘गुरु शिष्य परंपरा’ के तहत शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की।

53 वर्षीय तबला वादक कहते हैं कि गुरु-शिष्य परंपरा शिक्षण क्षेत्र में बंधनयुक्त नीतिशास्त्र की महत्ता पर जोर देती है। आप खुद को अपने गुरु को समर्पण करना सीखते हैं। यानी तहजीब-ए-मौसिकी को अपनाते हैं।

अपने गुरु के असामयिक निधन के बाद बोस पंडित शंकर घोष के गंडाबंध शार्गिद बने। उन्होंेने हाल ही में एक संगीत समारोह में अपने गुरु को श्रद्धांजलि दी।

गंडाबंध के बारे में वह बताते हैं कि यह एक परांपरागत चलन है, जिसमें गुरु अपने शिष्य को एक धागा बांधता है और उसे अपना उत्तराधिकारी स्वीकार करता है।

एक यादगार घटना को याद करते हुए बोस बताते हैं, “जब मेरे गुरुजी ने पवित्र धागा मेरे हाथ में बांधकर मुझे अपने उत्तराधिकार की वैधानिकता प्रदान की, वह घटना मुझे हमेशा याद रहेगी।”

फरु खाबाद घराने से होने के बावजूद बोस अपने गुरु के अलग अंदाज और रचनात्मकता के कारण खुद को ‘कोलकाला घराने’ का कहलाना ज्यादा पसंद करते हैं। इसी घराने में वह बरसों से रचे-बसे हैं।

वह कहते हैं, “संगीतकारों की सीखने और आगे बढ़ने की यात्रा जिंदगीभर चलती रहती है। जो कुछ भी मैंने सीखा है, वह अपने गुरुजी के सान्निध्य में सीखा।”

बोस कहते हैं कि संगीत के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किए जाने और हासिल करने की जरूरत है। इसके लिए आपको अपने अंदाज को आगे ले जाने की जरूरत है।

बोस भारतीय शास्त्रीय संगीत और इसके मिश्रण को दुनियाभर में ले गए हैं। उन्होंने कई संगीतज्ञों के साथ मंच साझा किया है, जिनमें उस्ताद मुनव्वर अली खां, पंडित वी.जी. जोग, उस्ताद इमरात खां, उस्ताद अमजद अली खां और पंडित रवि शंकर, जिनके साथ तो उनकी एक अलग तरह की जुगलबंदी रही।

पंडित रवि शंकर के साथ अपनी जुगलबंदी को वह एक सपने की तरह मानते हैं, जिसे वह बचपन में देखा करते थे। उन क्षणों को याद करते हुए वह बताते हैं कि उन्होंने उनके कई कार्यक्रमों में भाग लिया था। लगभग 10 वर्ष पंडित रवि शंकर केसाथ बिताने वाले बोस ने कहा, “मैंने उनका प्यार और आशीर्वाद हमेशा प्राप्त किया है।”

मौजूदा समय में मनोरंजन के नए तरह के विकल्पों के आ जाने से तन्मय बोस खुश नहीं हैं। वह मानते हैं कि यही हाल रहा तो देश के युवाओं का शास्त्रीय संगीत से ध्यान हट जाएगा।

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