(खुसुर-फुसुर)– मप्र के दो दलित लाट साहबान जो की वे लाट साहब बनने के बाद भी अपने को मानते हैं वोटों की राजनीति के पांसे में भाजपा सरकार को फँसा लिए हैं.उन्होंने ऐन मैहर चुनाव के पहले वह बवाल काटा की मुख्यमंत्री न सही वित्त मंत्री को उन्हें बात करने के लिए “आमंत्रित” करना पड़ गया.अब लगातार तीन बार सत्ता में आई सरकार इतनी कमजोर साबित हो यह चर्चा का विषय है.
इन लाट साहबान में एक महिला हैं जो न्यायालय की कार्यवाही का सामना कर रही हैं लेकिन आशीर्वाद सत्ता का चाह रहीं हैं.ये साहिबा पहले भी राजनैतिक दल में जाने का इशारा कर चुकी हैं लेकिन इनकी प्राथमिकता जाति आधारित दल रहा है.हाँ इनकी दूरदर्शिता की दाद देनी होगी जब इन्होने कहा था की यदि ये जाति आधारित आन्दोलन करेंगी तो शासन-प्रशासन हिल जाएगा जो हो गया.
इसके पहले भी वे सत्ता-शीर्ष से विनती कर चुकी थीं लेकिन कोई उचित संकेत ना मिलने पर आन्दोलन का रास्ता इन्होने चुना.
सम्बंधित साहबान रमेश थेटे भी लोकायुक्त छापे के बाद हुए निर्णय का इन्तजार कर रहे हैं और उन्हें यह अच्छा मंच और मौका प्रतीत हुआ लेकिन अब भी ये दोनों शासकीय नौकरी को तिलांजलि दे राजनीति में नहीं जाना चाहते.अब देखना यह है की घबराई सरकार इन्हें आश्वसन देती है या सही में इनके प्रति न्याय को गंभीर है.