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जयपुर साहित्योत्सव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चर्चा

शिल्पा रैना

शिल्पा रैना

जयपुर, 21 जनवरी (आईएएनएस)। भारत में ‘अभिव्यक्ति की निरपेक्ष स्वतंत्रता’ है या फिर ‘महीन रेखा’ है जिसका उल्लंघन लेखन में नहीं किया जाना चाहिए जैसे सवालों पर बुधवार को यहां शुरू हुए जयपुर सहित्य महोत्सव में बहस और चर्चा होगी।

पैनल में शामिल बुद्धिजीवियों ने सीधे-सीधे तमिल लेखक पुरुमल मुरुगन के लेखन त्यागने की घोषणा का उल्लेख किया। मुरुगन ने विभिन्न संगठनों के विरोध के बाद यह घोषणा की।

‘क्या आज साहित्य का कारोबार बेहतर लेखन की हत्या कर रहा है’ विषय पर सत्र में साहित्य के व्यावसायीकरण और इसके विषय-वस्तु पर प्रभाव की चर्चा नहीं हुई। इसके इतर पैनल में शामिल और लेखक नयनतारा सहगल, तमिल लेखक सी. एस. लक्ष्मी, पत्रकार एवं लेखक मार्क तुली और प्रकाशक वी. के. ने ‘साहित्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश’ और किस तरह ‘अक्सर किताबें प्रतिबंधित होती हैं और जलाई जा रही हैं’ में विभिन्न संगठनों की असहिष्णु प्रवृत्ति की झलक मिलती है।

सत्र की अध्यक्षता गीतकार प्रसून जोशी ने की जिन्होंने सवाल उठाया कि क्यों इस तरह के मुद्दों पर मुख्यधारा की मीडिया पर चर्चा नहीं होती और क्या इस हंगामे में प्रतिकूल आवाजें सुनी जाएंगी?

सहगल के मुताबिक, वह समय आ गया है जब किसी को भी ‘भावनाओं के आहत’ होने की परवाह नहीं करनी चाहिए क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा, “व्यवसाय ने न केवल हमारे जीवन में स्थान बनाया है, बल्कि हमारी जिंदगी को काबू कर लिया है। इसने राजनीति, शादियां और खेल पर कब्जा कर लिया है।”

उन्होंने आगे कहा, “आज आप को बिना कोई समझौता किए बोलना होगा। हम उस विचारधारा के विरुद्ध हैं जो असहमति को और गैरकानूनी कृत्य को समर्पित है। लेकिन क्या हम सत्ता में खुद के जमे होने के तथ्य से प्रोत्साहित इन हिंदू कट्टरपंथियों को झुकाने के लिए कुछ नहीं कर सकते।”

तमिल उपन्यासकार मुरुगन ने 13 जनवरी को अपने ‘फेसबुक पेज’ पर लेखन को अलविदा कहने के अपने फैसले की घोषणा की थी। एक संतानहीन दंपति को पेश आ रही समस्याओं और महिला के एक गैर मर्द के साथ पारंपरिक रूप से सहमति से सहवास करने के प्रयास की कथा कहने वाले अपने उपन्यास ‘मोधोरुभगन’ का कुछ संगठनों द्वारा हमला किए जाने के बाद लेखक ने यह घोषणा की थी।

लक्ष्मी के मुताबिक, यह जोखिम भरा वातावरण है जिसने तमिल लेखकों को अपने ‘लेखन के अधिकार’ के लिए भयभीत कर दिया है।

लक्ष्मी ने कहा, “फिलहाल क्या हम इस बारे में चिंतित हैं कि आखिर हम कब निर्भीक होकर लिख पाएंगे।”

उन्होंने कहा, “हमें इस पर चिंता करनी चाहिए कि किस तरह व्यावसायिक प्रकाशन इस तरह के वातावरण में प्रकाशन जारी रखेंगे?”

‘अमृतसर : श्रीमती गांधी का आखिरी युद्ध’ के लेखक तुली महसूस करते हैं कि इस तरह के विवाद हमारी जिंदगी का एक हिस्सा हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जो लोग स्वतंत्रता शब्द को नष्ट कर रहे हैं, राज्य सरकारों को उन गुंडा तत्वों के खिलाफ एकजुट होना चाहिए।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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