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तिलहनों का रकबा खरीफ सीजन में बढ़ने की उम्मीद : उद्योग संगठन

नई दिल्ली, 17 जून (आईएएनएस)। घरेलू खाद्य तेल उद्योग संगठनों का कहना है कि सरकार ने सोयाबीन, मूंगफली, सूर्यमुखी व कनोला तेल के आयात पर शुल्क बढ़ाने का फैसला सही वक्त पर लिया है क्योंकि इससे खरीफ तिलहनों की बुवाई में किसानों की दिलचस्पी बढ़ेगी।

नई दिल्ली, 17 जून (आईएएनएस)। घरेलू खाद्य तेल उद्योग संगठनों का कहना है कि सरकार ने सोयाबीन, मूंगफली, सूर्यमुखी व कनोला तेल के आयात पर शुल्क बढ़ाने का फैसला सही वक्त पर लिया है क्योंकि इससे खरीफ तिलहनों की बुवाई में किसानों की दिलचस्पी बढ़ेगी।

उद्योग संगठनों ने कहा कि खाद्य तेल का आयात कम होने से देसी तिलहनों की मांग बढ़ेगी और किसानों को अच्छा दाम मिलेगा, जिससे प्रोत्साहित होकर किसान ज्यादा से ज्यादा तिलहनों की खेती करेंगे।

सॉल्वेंट एक्स्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी. वी मेहता ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “आयात शुल्क बढ़ने से किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम मिलना सुनिश्चित होगा। किसानों को अगर तिलहनों का वाजिब दाम मिलेगा तो तिलहन उगाने में उनकी दिलचस्पी बढ़ेगी और आयात पर हमारी निर्भरता कम होगी।”

डॉ. मेहता ने कहा, “किसानों को तिलहनों के लिए सरकार की ओर से तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अगर ज्यादा दाम मिलेगा तो स्वाभाविक है कि दूसरी फसलों की जगह वे तिलहन उगाना चाहेंगे। इसलिए सरकार ने सही वक्त पर यह फैसला लिया है।”

सोयाबीन प्रोसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक डी. एन. पाठक ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि आयात शुल्क बढ़ने से किसान और देसी उद्योग दोनों को फायदा होगा।

उन्होंने कहा, “उद्योग का फायदा किसानों के फायदे से जुड़ा है। किसान ज्यादा तिलहनों की खेती करेंगे और पैदावार बढ़ेगी तो उद्योग का कारोबार बढ़ेगा।”

पाठक ने कहा, “खाद्य तेल की हमारी जितनी मांग है उतनी घरेलू आपूर्ति नहीं है इसलिए आयात की जरूरत बनी रहेगी। हमारा उत्पादन 90-95 लाख टन सालाना है और सालाना आयात तकरीबन 140-150 लाख टन है। इसलिए घरेलू उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है जो तभी संभव है जब तिलहन की पैदावार बढ़ेगी।

केंद्र सरकार ने दो दिन पहले कच्चा सोयाबीन तेल पर आयात शुल्क 30 फीसदी से बढ़ाकर 35 फीसदी कर दिया गया है और रिफाइंड सोयाबीन तेल पर आयात शुल्क 35 फीसदी से बढ़ाकर 45 फीसदी कर दिया गया है।

कनोला तेल पर आयात शुल्क 25 फीसदी से बढ़ाकर 35 फीसदी कर दिया गया है। वहीं, सूर्यमुखी के कच्चे तेल पर आयात शुल्क 25 फीसदी से बढ़ाकर 35 फीसदी कर दिया गया जबकि रिफाइंड सूर्यमुखी तेल पर आयात शुल्क 35 फीसदी से बढ़कर 45 फीसदी हो गया है। कच्चा मूंगफली तेल पर आयात शुल्क 25 फीसदी से बढ़ाकर 35 फीसदी और रिफाइंड मूंगफली तेल पर आयात शुल्क 35 फीसदी से बढ़ाकर 45 फीसदी कर दिया गया है।

इससे पहले मार्च महीने में केंद्र सरकार ने कच्चा पाम तेल पर आयात शुल्क 30 फीसदी से बढ़ाकर 44 फीसदी और रिफाइंड पाम तेल के आयात पर शुल्क 40 फीसदी से बढ़ाकर 54 फीसदी कर दिया था।

उद्योग संगठन सेंट्रल ऑरगेनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री एडं ट्रेड (कुइट) के प्रेसिडेंट लक्ष्मीचंद अग्रवाल ने कहा, “निस्संदेह इस साल तिलहनों का रकबा बढ़ेगा क्योंकि किसान ऊंचे भाव में फसल बिकने की उम्मीदों से तिलहनों की खेती में रुचि लेंगे।”

एसईए की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत ने नवंबर 2017 से लेकर अप्रैल 2018 तक छह महीने में करीब 73.18 लाख टन से वनस्पति तेल का आयात किया जोकि एक साल पहले की समान अवधि के 73.13 लाख टन के मुकाबले 2.5 फीसदी ज्यादा है।

फसल वर्ष 2017-18 (जुलाई-जून) के खरीफ सीजन में तिलहनों का रकबा 173.41 लाख हेक्ेटयर था, जोकि 2016-17 के 190.26 लाख हेक्टेयर से 12.30 फीसदी कम था।

चालू बुवाई सीजन 2018-19 में 15 जून तक 2.20 लाख हेक्टेयर में खरीफ तिलहनों की बुवाई हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में महज 1.66 लाख हेक्टेयर में तिलहनों की बुवाई हो पाई थी।

बीते रबी सीजन में भी देश में तिलहनों का रकबा पिछले साल से 4.69 फीसदी घटकर 80.87 लाख हेक्टेयर रह गया था।

फसल वर्ष 2017-18 (जुलाई-जून) की फसलों के तीसरे अग्रिम उत्पादन अनुमान के अनुसार, देश में तिलहनों का कुल उत्पादन 306.38 लाख टन थी, जबकि 2016-17 में तिलहनों का कुल 312.76 लाख टन था।

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