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बिहार में बंद बोतल से निकला ‘विशेष राज्य’ के दर्जे का जिन्न

पटना, 18 मार्च (आईएएनएस)। आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग होने के फैसले के बाद बिहार में भी ‘विशेष राज्य’ का दर्जा दिए जाने का जिन्न बंद बोतल से फिर बाहर निकल गया है।

पटना, 18 मार्च (आईएएनएस)। आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग होने के फैसले के बाद बिहार में भी ‘विशेष राज्य’ का दर्जा दिए जाने का जिन्न बंद बोतल से फिर बाहर निकल गया है।

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कोई नई नहीं हैं। परंतु, इस मुद्दे को लेकर यहां राजनीति भी खूब हुई है। तेदेपा के राजग के बाहर होने के बाद यहां की राजनीतिक फिजा में एक बार फिर ‘विशेष राज्य’ का दर्जा देने की मांग हवा में तैरने लगी।

राज्य में सत्ताधारी जनता दल (युनाइटेड) आज भले ही इस मुद्दे को जोरशोर से नहीं उठा रही है, परंतु इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि इस मांग को बिहार की जनआकांक्षा से जोड़कर इसे राज्य के हर तबके के पास पहुंचाने में जद (यू) ही सफल रही है। जद (यू) ने इस मांग को लेकर न केवल बिहार में बल्कि दिल्ली तक में अधिकार रैली निकाली।

जद (यू) के प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं कि जद (यू) बिहार के विकास के लिए सत्ता में आते ही बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए संघर्षरत है। उन्होंने इशारों ही इशारों में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) पर निशाना साधते हुए कहा कि आज जो लोग विशेष राज्य का दर्जा देने की बात कर रहे हैं, वे जब केंद्र और राज्य की सत्ता में थे, अगर उस समय प्रयास किए होते तो आज बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल गया होता।

साल 2005 में सत्ता में आते ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग की जबकि चार अप्रैल 2006 को बिहार विधानसभा से सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा गया।

इसके बाद एक बार फिर बिहार में दलीय सीमाओं को तोड़कर सभी राजनीतिक दलों ने 31 मार्च 2010 को बिहार विधान परिषद से इस मामले का प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा। इसके बाद भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलता देख 23 मार्च 2011 को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के सांसदों ने प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपा तथा 14 जुलाई को जद (यू) के एक शिष्टमंडल ने सवा करोड़ बिहार के लोगों के हस्ताक्षरयुक्त किया हुआ ज्ञापन प्रधानमंत्री को सौंपा था।

जद (यू) ने इस मांग को लेकर पटना के गांधी मैदान में ‘अधिकार रैली’ का आयोजन किया जबकि 13 मार्च 2013 को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में बिहार को विशेष राज्य की मांग को लेकर अधिकार रैली का आयोजन किया गया।

इस मांग को लेकर जद (यू) के नेताओं ने थालियां भी पीटी और पिटवाई। जद (यू) ने मार्च 2014 में इस मांग को लेकर बिहार बंद का आयोजन किया जबकि इसके एक दिन पूर्व सभी लोगों से शाम में घर से बाहर निकलकर थाली बजवाई गई।

इधर, केन्द्र सरकार ने इस मामले को लेकर पिछड़ापन का मानक तय करने के लिए गठित रघुराम राजन समिति ने अपनी रिपोर्ट में भी बिहार को पिछड़े राज्य की श्रेणी में रखा।

प्रसिद्घ अर्थशास्त्री और रघुराम राजन समिति के सदस्य रहे शैवाल गुप्ता कहते हैं कि बिहार विशेष राज्य का दर्जा पाने के सभी पैमानों पर फिट बैठता है। उन्होंने कहा कि बिहार में निजी पूंजी निवेश नहीं हो रहा है। निजी पूंजी निवेश बढ़ाने के लिए निवेशकों को कर में छूट देनी होगी।

उनका कहना है कि आंध्र प्रदेश को तो विशेष राज्य का दर्जा मांगने की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि उसके पास बंदरगाह है। उनका कहना है कि बिहार सरकार को इस मुद्दे को उठाना चाहिए। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के एजेंडे को यहां के ही कुछ लोग समर्थन नहीं देते, जिस कारण यह लटक जाता है।

गौरतलब है कि नीतीश कुमार के राजग में दोबारा आने के बाद राजद के नेता बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के मुद्दे की याद दिलाते रहते हैं। बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी कई बार कह चुके हैं अब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आ चुके हैं, ऐसे में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाना चाहिए।

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