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मप्र में सत्ता और प्रशासनिक भ्रष्टाचार का नतीजा ,पेटलावद नरसंहार

September 13, 2015 12:06 pm by: Category: सम्पादकीय Comments Off on मप्र में सत्ता और प्रशासनिक भ्रष्टाचार का नतीजा ,पेटलावद नरसंहार A+ / A-
फोटो-साभार ब्रजेश राजपूत

फोटो-साभार ब्रजेश राजपूत

सुबह-सवेरे खबर मिली की झाबुआ जिले के पेटलावद में विस्फोट हुआ ,खबर सुन इसकी भीषणता की कल्पना तक नहीं की थी किसी ने हम सब विश्व-हिंदी सम्मेलन के समापन के लिए तैयार थे लेकिन इसमें व्याप्त अव्यवस्था और इसके विशुद्ध राजनीतिकरण के कारण उत्साह नहीं था,अमिताभ बच्चन और सुषमा-स्वराज के ना आने की खबर इस 100 करोड़ की पिकनिक के असफल होने का संकेत पूर्व में ही दे चुके थे.

खबर आते ही हमने स्थानीय पत्रकारों से संपर्क किया तो होश उड़ गए,भयावहता की तस्वीरें आते ही यह पक्का हो गया की नरसंहार बहुत बड़ा है कितना यह अभी तक साफ़ नहीं हुआ है.हम मौंतों की जगह पोस्टमार्टम गिन रहे थे ,जो तस्वीरें आ रही थीं मन उबाकियाँ लेने लगा था एक साथी पत्रकार अपनी गाडी से भोपाल से 4 घंटें में झाबुआ पहुँच गए इतने कम समय का कारण जानना चाहा तो बोले मुझे कुछ समझ ही नहीं पड़ा बस गाडी चला रहा था.

राजेंद्र कासवा का नाम इस हादसे के लिए सामने आया सुबह से मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह कहते रहे की जांच की जाएगी उनके मंत्री अंतर सिंह आर्य 250 किमी से घटनास्थल तक नहीं पहुँच पाए मुख्यमंत्री सुबह पहुंचे खैर.शाम तक यह स्पष्ट हो गया की विस्फोटक का कार्य पीढ़ियों से करने वाला यह व्यक्ति ही जिम्मेदार है लेकिन क्यों जब इसकी पड़ताल की गयी तो सच्चाई सामने आई.

राजेंद्र का बड़ा भाई भी इसी तरह जिलेटिन छड हादसे में मारा गया था लेकिन उस बात को दबा दिया गया प्रशासन और रुपयों के सहयोग से,राजेंद्र को स्थानीय भाजपा व्यापार प्रकोष्ठ का अध्यक्ष भी बताया जाता है यह भी वजह रही की राजेन्द्र पर कोई हाथ नहीं डालता था.फिलहाल राजेंद्र अपने परिवार के साथ फरार है.स्थानीय लोगों ने कई शिकायतें प्रशासन से कर रखीं थी लेकिन रुपये के दबाव से कुछ नहीं होता था और उ पाप का घड़ा 100 से अधिक मौंतों के साथ फूटा.

मुख्यमंत्री की असंवेदनशीलता इस मामले में स्पष्ट है वे यह जरूर कह रहे हैं की वे संवेदनशील हैं लेकिन न्यायवादी हों यह यह साफ़ देखने में आ रहा है की नहीं.एक थाना प्रभारी को निलंबित कर फर्ज की इतिश्री मान ली गयी सीधा दीखता है की बिना कलेक्टर,पुलिस-अधीक्षक,विभागीय उच्च-अधिकारीयों प्रभारी जिले के मंत्री,स्थानीय विधायक की मिली- भगत के यह सब संम्भव नहीं.कसावा तो जिम्मेदार है ही लेकिन असली गुनाहगार ये सब निम्नांकित अधिकारी हैं जो मप्र सरकार के वसूली एजेंटों के रूप में पद पर काबिज हैं.जिस तरह से दतिया हादसे में अधिकारीयों को बचा लिया गया और पुरुस्कृत कर दुसरे जिले में बैठा दिया शायद यही स्थिति इसकी भी हो क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का कार्यकाल इस तरह की कार्यवाहियों के लिए विख्यात है.

मानवता को इन्तजार है सही कार्यवाही ताकि आने वाली पीढ़ियों के सिये सुरक्षित भविष्य बनाया जा सके .

अनिल सिंह 

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