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राजू राय क्यों घर से 1980 किलोमीटर दूर रहता है?

February 21, 2016 8:59 pm by: Category: फीचर Comments Off on राजू राय क्यों घर से 1980 किलोमीटर दूर रहता है? A+ / A-

हिमाद्री घोष 

राजू राय जब मात्र 17 वर्ष का था तब उसे पता चला कि उसकी मां को कैंसर हो गया है। रोजी रोटी की तलाश में उसे झारखंड के जामताड़ा जिले में स्थित अपना गांव छोड़ना पड़ा। अब वह 22 साल का है और अपने घर से 1980 किलोमीटर दूर बेंगलुरू में मकान की रंगाई कर दस हजार रुपये महीना कमाता है।

दुबला-पतला, कम मुस्कराने वाला राजू कहता है, “भगवान ने उपहार के रूप में हमें गरीबी दी है।” अब उसकी दिली इच्छा है कि वह खूब पैसे कमाए ताकि अच्छा लड़का ढूंढ कर अपनी बहन की शादी धूमधाम से कर सके।

यह कहानी सिर्फ राजू की ही नहीं है, बल्कि 2001 की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे 30 करोड़ 70 लाख भारतीयों की है जो अपने जन्म स्थान से दूर हैं। इनमें से 26 करोड़ 80 लाख (85 प्रतिशत) अपने ही राज्य के अंदर प्रवासी हैं, 4 करोड़ 10 लाख (13 प्रतिशत) कमाने के लिए एक राज्य से दूसरे में चले गए हैं जबकि 50 लाख 10 हजार (1.6) प्रतिशत को तो भारत ही छोड़ना पड़ा है।

पुरुष जहां अधिक पैसे कमाने के लिए प्रवासी के रूप रूप में दूर-दूर तक चले जाते हैं, वहीं महिलाएं मुख्य रूप से विवाह के चलते प्रवासी बन जाती हैं। इंडिया स्पेंड के विश्लेषण में इस बात की पुष्टि हुई है कि पलायन का सीधा संबंध आधारभूत संरचना में कम निवेश करने वाले राज्यों से है।

वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार ऐसे राज्य जो मूलभूत संरचना पर कम खर्च करते हैं, वहां अनिवार्य रूप से तो नहीं लेकिन आम तौर से प्रति व्यक्ति आय भी कम होती है और वहां से बड़ी संख्या में लोग पलायन को मजबूर होते हैं।

उदाहरण के तौर पर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश आधारभूत संरचना पर कम व्यय करने वाले राज्यों की श्रेणी में हैं और वहां प्रति व्यक्ति आय भी कम है। ठीक इनके विपरीत गोवा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, हरियाणा और गुजरात में आधारभूत संरचना पर अधिक व्यय होता है तो इन राज्यों में प्रति व्यक्ति आय भी अधिक है।

इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में प्रति व्यक्ति आय में काफी भिन्नताएं हैं और कम आय वाले राज्यों से बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन होता है।

बड़े पैमाने पर पलायन के संबंध में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के थिंक टैंक शिमला स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज के फेलो सुकुमार मुरलीधरन ने कहा, “इस तरह के बड़े पैमाने पर गांव से शहर की ओर पलायन के अस्थिर करने वाले राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव पड़ते हैं।”

यह सही है कि आधारभूत संरचना पर खर्च का प्रति व्यक्ति आय और आव्रजन से गहरा संबंध है, लेकिन और भी कई कारण हैं जिनका संबंध पलायन से है।

गोवा में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति व्यय मूलभूत संरचना पर होता है। हरियाणा और महाराष्ट्र इस मामले में क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। लेकिन, रोजी रोटी के लिए अधिक लोग गोवा नहीं जाते हैं, जबकि 2001 में 80 लाख लोग महाराष्ट्र में और 55 लाख लोग दिल्ली में आए जो देश के कुल पलायन का क्रमश: 16.4 और 11.6 प्रतिशत था। इसकी वजह यह थी कि इन दोनों जगहों पर कमाने के कई अवसर हैं।

अगर बात करें बिहार और उत्तर प्रदेश की तो इन राज्यों में क्रमश: प्रति व्यक्ति 13,139 और 9,793 रुपये ही आधारभूत संरचनाओं पर खर्च होते हैं। इन दोनों राज्यों में दिल्ली और महाराष्ट्र की तुलना में देश भर से कम लोग रोजी रोटी कमाने आते हैं। 2001 में केवल 1794219 लोग बिहार और 2972111 उत्तर प्रदेश आए।

लेकिन, इसके अपवाद भी हैं। पंजाब और केरल संपन्न राज्य हैं, लेकिन मूलभूत संरचनाओं पर वहां प्रति व्यक्ति कम खर्च किया जाता है। वहीं छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश कम प्रति व्यक्ति आय वाले देश हैं, लेकिन आधारभूत संरचनाओं पर प्रति व्यक्ति अधिक खर्च किए जाते हैं। इसके सही कारण क्या हैं, यह स्पष्ट नहीं हैं। लेकिन, भौगोलिक स्थिति, जनसंख्या के आकार, संस्कृति और राजनीतिक कारणों से प्रतिमान में भिन्नता हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि केरल में सामाजिक क्षेत्र पर विशेष ध्यान देना इसका सही जवाब है।

इंडिया स्पेंड के अनुसार समानता और समान विकास की जिम्मेदारी अब राज्यों की हो गई है। लेकिन, जादवपुर विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अजीताव रायचौधुरी इससे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि इस मामले में केंद्र की भूमिका है। उन्होंने कहा,”राज्य में समानता लाने के लिए केंद्र सरकार का राज्यों में हस्तक्षेप जरूरी है।”

जहां तक पलायन का सवाल है तो उसमें पिछड़ा क्षेत्र, प्रछन्न निवेशित क्षेत्रों और स्थानीय स्तर पर रोजगार की कमी की भी अहम भूमिका है।

रियल एस्टेट सलाहकार फर्म नाइट फ्रैंक इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री एवं राष्ट्रीय निदेशक सामांतक दास का कहना है कि वोट बैंक की राजनीति असमानता फैला रही है। पिछड़े राज्यों के लोग अपने नेताओं पर अधिक निर्भर रहते हैं। नतीजा है कि सभी दलों के नेता इस निर्भरता को वोट में बदलकर लाभ उठाना चाहते हैं।

दास कहते हैं, “आधारभूत संरचना का विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए देश में रणनीतिक रूप से नियोजित और समान रूप से वितरित आधारभूत संरचना होना चाहिए।”

पिछली जनगणना के अनुसार भारत में शहरी जनसंख्या गांवों की तुलना में तेजी से बढ़ रही है। बड़े उद्योगों की रोजगार निर्माण क्षमता घट रही है जबकि प्रवासियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सन 2007-08 में शहरी प्रवासियों की संख्या 35 प्रतिशत थी। नतीजा है कि भारतीय राज्यों में बाहरी लोगों के साथ संघर्ष की घटनाएं घटती रहती हैं। इस समस्या का समाधान सूक्ष्म, छोटे और मझोले उद्योगों की स्थापना कर किया जा सकता है।

इस बारे में जादवपुर विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर सिद्धार्थ मित्रा का कहना है, “चूंकि आधारभूत संरचना पर खर्च की आर्थिक विकास में बड़ी भूमिका है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि अति पिछड़े राज्यों और खास तौर से उनके पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए बजट में अधिक धन आवंटित होना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि नियमों के अपवाद संकेत देते हैं कि सामाजिक क्षेत्र में निवेश समान रूप से महत्वपूर्ण है।

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