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सत्ताधारी दल को उल्टा पड़ा देशभक्ति का दांव

February 21, 2016 8:30 am by: Category: सम्पादकीय Comments Off on सत्ताधारी दल को उल्टा पड़ा देशभक्ति का दांव A+ / A-

अमूल्या गांगुली

जिस तरह से भाजपा बलपूर्वक राष्ट्रवाद का राग अलाप रही थी उसे देखते हुए पटियाला हाऊस कोर्ट में उनके समर्थक वकीलों को गुंडागर्दी पर उतरना अवश्यम्भावी था, जहां जवाहरलाल विश्वविद्याालय (जेएनयू) के छात्र नेता कन्हैया कुमार पर देशद्रोह का आरोप लगाया जा रहा था। हालांकि भाजपा सोच रही थी कि देशभक्ति का राग अलाप कर वह जेएनयू मामले में बाजी मार लेगी, लेकिन भगवाधारी वकीलों के छलपूर्ण व्यवहार से उसकी चाल उल्टी पड़ गई।

इस पूरे प्रकरण में जिन दो लोगों की छवि खराब हुई है उनमें एक हैं केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और दूसरे हैं दिल्ली के पुलिस आयुक्त बीएस बस्सी। भाजपा के पूर्व सदस्य जसवंत सिंह ने उन्हें ‘प्रांतीय’ कहा था। वैसे भी आम तौर पर यह संदेह व्यक्त किया जाता रहा है कि केंद्रीय गृह मंत्री का पद जिस पर कभी सरदार वल्लभभाई पटेल थे उसे भाजपा के उत्तर प्रदेश के यह नेता संभाल पाएंगे।

अब संदेह करने वालों की सारी आशंकोएं की पुष्टि हो गई है। वह न केवल इसलिए कि राजनाथ शायद भूलवश यह समझ रहे थे कि जेएनयू पर राष्ट्रविरोधी आरोप लगा कर वह अपनी छवि सुधार लेंगे, बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने जेएनयू परिसर में बल प्रयोग के लिए एक ही दिन में पुलिस आयुक्त को प्रशंसा पत्र भी दे दिया दिया।

समय पूर्व प्रशंसा मिलने से बस्सी उत्साहित हो गए और लगातार दो दिनों तक पटियाला हाऊस कोर्ट में तांडव करने वाले भगवाधारी वकीलों के प्रति नरम बने रहे। दरअसल राजनाथ सिंह ने जब छात्रों को देशद्रोही कह कर ताड़ा तो उग्र भगवा समर्थकों ने कानून अपने हाथों में लिया।

भगवा रंग में रंगे गृह मंत्री और उनके फसादी समर्थकों के व्यवहार से साफ जाहिर होता है कि फासीवादी पार्टी को इतना भी समय नहीं है कि वह अपने पसंदीदा अध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर से भी गलत करने वाले लोगों के प्रति दयावान होने की सलाह भी लेती।

वैसे इसमें संदेह की गुंजाइश कम है, भगवा कैंप में एक अटलविहारी वाजपेयी ही हैं जिन्होंने विरोधियों के प्रति भी समझदारी दिखाई थी। उन्होंने कहा था कि कश्मीर में उग्रवाद का हल संविधान की जगह इंसानियत के दायरे में खोजा जाना चाहिए।

इसकी थोड़ी झलक नरेंद्र मोदी ने भी ने भी दिखाई थी जब उन्होंने गुजरात दंगों के बाद प्रायश्चित के लिए सद्भावना उपवास रखा था। लेकिन उनके अधिकांश पार्टीजनों के लिए तो भारत माता को धोखा देने का आरोप तो सांड को लाल कपड़ा दिखाने जैसा ही है।

ऐसा इसलिए है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पाठशाला में उन्हें यही शिक्षा दी जाती है कि मध्यकाल में भारत मुसलमानों के आक्रमणों का शिकार रहा है और आज पाकिस्तानी षडयंत्र से त्रस्त है। इसलिए भगवाधारियों को यहां के धर्मनिरपेक्षवादियों की षडयंत्रकारियों से मिलीभगत लगती है और वे गो मांस खाने वालों तथा मोदी विरोधी को पाकिस्तान जाने को कहते हैं।

इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि पाटियाला हाऊस कोर्ट में वस्तुस्थिति जानने के लिए जब सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों की टीम भेजी तो उन्हें पाकिस्तान जाओ के नारे से स्वागत किया गया। वसे भी हिन्दूवादियों के लिए न तो संविधान का ही कोई अर्थ है और न ही उनमें दयाभाव है।

एक तरह से देखा जाए तो भाजपा इन सब के लिए पूर्णरुपेण तैयार नहीं थी, क्योंकि पहले जेएनयू में कुछ छात्रों की कथित विश्वासघाती गतिविधियों से लोगों का ध्यान हटाने लिए पार्टी के चाटुकार समर्थकों में से एक गिरिराज सिंह ने जेएनयू को बंद करने की वकालत की और उसके बाद अब कोर्ट में कन्हैया कुमार पर भी देशद्रोह का आरोप स्थापित नहीं हो रहा है।

यहां तक कि जेएनयू मामले से संबंधित जो वीडियो कुछ चैनलों पर दिखाए गए वह भी फर्जी साबित हो रहे हैं। अब यही कहा जा सकता है कि भाजपा को यह आशा होगी कि हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की आत्महत्या से पार्टी को जो क्षति हुई थी उसकी भरपाई जेएनयू में हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है।

ऐसे में भाजपा को यह महसूस करना होगा कि नियमित रूप से हिन्दू बनाम मुस्लिम और देशभक्त बनाम देशद्रोही की नीति का अनुसरण करना पार्टी के कट्टर समर्थकों को तो अच्छा लगता है लेकिन आमलोगों के लिए यह खास प्रासंगिक नहीं है। लेकिन इसकी संभावना प्रबल है कि चुनावों में यह प्रति उत्पादक साबित हो।

मोदी ने हालांकि साक्षी महाराज और योगी आदित्यनाथ जैसे कट्टवादियों को शांत कर दिया है, लेकिन अपनी ‘स्ट्रांग मैन’ वाली छवि के बावजूद मोदी अपने मंत्रियों और भगवाधारी वकीलों को काबू करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। जिस तरह उन्होंने दस वर्षो तक सांप्रदायिक दंगों पर रोक लगाने की बात कही है उसी तरह जेएनयू और हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्याालय को राष्ट्र विरोधी केंद्र बताने वाले पार्टीजनों को भी कहना चाहिए कि वे गलत हैं। वैसे देश-विदेश से जिस तरह का समर्थन आंदोलनकारी छात्रों को मिल रहा है उसे देख ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ ही लोग मंत्रियों के बयान पर विश्वास करेंगे।

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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