“पत्रिका” अखबार आज भारत में किसी परिचय का मोहताज नहीं है .आज के परिपेक्ष्य में यह अखबार तथ्यपरक ख़बरें प्रस्तुत करने में कटिबद्ध है.इस अखबार ने आज राष्ट्रीय पटल पर अपनी वह टीस फ्रंट पेज पर जनता के सामने बयान की जिसके सामने आने पर भारतीय मीडिया की वह सिसकी सुनाई दी जिससे उसे रोजाना दो-चार होना पड रहा है .लोकतंत्र स्वस्थ रहे ,जनहित के कार्यों का संचालन ईमानदारी से होता रहे इसके लिए मीडिया की स्वतंत्रता एवं सत्ता द्वारा उस तंत्र का पोषण आवश्यक है .
पत्रिका अखबार लिखता है,
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाली मीडिया के साथ सरकार का नकारात्मक रवैया कैसा रहता है इसका अंदाज़ा राजस्थान पत्रिका से बेहतर कौन जा सकता है। सामाजिक सरोकारों से जुडी खबरों को प्राथमिकताओं से आम पाठक तक पहुंचाने के इरादे से पत्रिका सालों से राजस्थान में भरोसा कायम किये हुए है। लेकिन सरकार कुछ अज्ञात कारणों की वजह से राजस्थान पत्रिका को अन्य मीडिया संस्थानों से हटकर देखती है और इसी वजह से राजस्थान पत्रिका के सरकारी विज्ञापनों पर रोक लगा रखी है। अब इसे सरकार का भेदभावपूर्ण और तानाशाही रवैया। सरकार की इस तरह की कवायद का अब संसद तक में मुद्दा उठ चुका है। सांसद कांतिलाल भूरिया ने इस मुद्दे को संसद में ज़ोर-शोर से उठाते हुए सरकार से निष्पक्षता बरतने और सभी संस्थानों को बराबर देखने की मांग की।
केंद्र और राज्य सरकार की ओर से राजस्थान पत्रिका को दिए जाने वाले सरकारी विज्ञापनों पर अघोषित रोक का मामला मंगलवार को लोकसभा में उठा। सांसद कांतिलाल भूरिया ने शून्यकाल में यह मामला उठाया। उन्होंने तीन बार सदन में खड़े होकर मामला उठाने की कोशिश की। फिर आसन की अनुमति नहीं मिलने पर उन्होंने संबंधित कागज सदन के पटल पर रख दिए। पटल पर रखे अपने वक्तव्य में भूरिया ने कहा कि इस तरह से मीडिया के विज्ञापनों पर रोक लगाना लोकतंत्र विरोधी है। ऐसी कार्यवाही से सरकार की छवि पर निश्चित रूप से प्रश्नचिह्न लगता है। सदन की कार्यवाही के बाद भूरिया ने पत्रिका को बताया कि उन्होंने मामले को टेबल कर दिया। अब सरकार को जवाब देना चाहिए।
भूरिया ने कहा कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का अपने तरीके से उपयोग करने की कोशिश की जा रही है। पक्ष में रहे तो उचित, नहीं तो नाराजगी झेलो। यह कैसा न्याय है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित 8 राज्यों से ‘पत्रिका’ प्रकाशित होता है। उसके विरुद्ध सरकार ऐसे आश्चर्यजनक फैसले ले रही है जो विस्मयकारी हैं। किसी केंद्र सरकार ने पहली बार राजस्थान पत्रिका को सरकारी विज्ञापन देने पर एेसी रोक लगाई है। यह एकतरफा निर्णय है जो गैरकानूनी भी प्रतीत होता है। केंद्र सरकार ने 23 जून 2016 से ‘पत्रिका’ को डीएवीपी से मिलने वाले विज्ञापनों में भारी कटौती कर दी है। इसका कोई कारण भी नहीं बताया गया है। यह प्रक्रिया लोकतंत्र विरोधी है।
भूरिया ने कहा कि राजस्थान पत्रिका समूह 1956 में स्थापना के समय से ही निष्पक्ष, निर्भीक और स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए जाना जाता है। उसके आज देश में 8 राज्यों से 37 संस्करण प्रकाशित हो रहे हैं जिसकी पाठक संख्या लगभग सवा करोड़ है। राजस्थान पत्रिका की पत्रकारिता सदैव तथ्यपरक रही है, इसी कारण जो भी राजनीतिक दल सत्ता में रहता है, उसे यह प्रतीत होता है कि राजस्थान पत्रिका उनके विरुद्ध है। पत्रिका में प्रकाशित समाचारों से कोई भी सरकार, राजनेता और राजनीतिक दल कितना भी नाराज हो जाए लेकिन कोई उन्हें गलत सिद्ध नहीं कर पाया।
सत्ता निरंकुश न हो जाए इस हेतु निडर ,निष्पक्ष एवं स्वस्थ मीडिया का होना किसी भी राष्ट्र की महती आवश्यकता है .यदि सत्ता ने किसी प्रकार का अंकुश जिसमें आर्थिक अंकुश अधिक प्रभावी होता है मीडीया पर लगाया तब समझ जाना चाहिए की सत्ता पक्ष कुछ ऐसा गलत कर रहा है जो जनहित में नहीं है एवं उसे छिपाने के लिए सत्तारूढ़ नेतागण चापलूस अधिकारीयों की मदद से यह तांडव मचाते हैं ,
सत्ता का व्यभिचार उस जन तक न पहुंचे जिसने विशवास कर वोट दे उन्हें अपना भविष्य सौंपा है .उस जन-जन के साथ हो रहे विश्वासघात का चित्रण रोकने के लिए लोकतंत्र की रीढ़ और चौथे -स्तंभ से निरूपित मीडिया पर उसे आर्थिक रूप से तोड़ने हेतु हमला किया जाता है यह संकेत राष्ट्र के लिए हितकर नहीं है राष्ट्रद्रोह है .
इसके पूर्व मप्र में भी कुछ वर्ष पूर्व पत्रिका को जांबाज पत्रकारिता करने के एवज में विज्ञापनों से दूर किया गया था किसी भी मीडिया संस्थान को सुचारू रूप से चलाने हेतु धन अति-आवश्यक है .और जन -विरोधी कार्य करने वाला सत्ता -पक्ष अपनी सच्चाई को सामने आने से बचाने के लिए सबसे पहले विज्ञापन बंद करता है .
पत्रिका अखबार ने सराहनीय कदम उठाते हुए इस कडवी सच्चाई से जनता को रूबरू करवाया है .इस मीडिया विरोधी सोच से वे छोटे संस्थान ख़त्म हो जाते हैं जिनका आकार इन मीडिया संस्थानों की तरह बड़ा नहीं है .आशा है पत्रिका की इस मुहीम से भारतीय लोकतंत्र का स्वरूप बचाने में सहायता मिलेगी.इस साहसिक कदम के लिए संस्थान को साधुवाद.
अनिल कुमार सिंह