अनिल कुमार सिंह
मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा नदी में खनन पर अप्रत्याशित रोक लगा कर उन हजारों मेहनतकश हाथों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट खड़ा कर दिया है जो रोज कमा कर खाते थे .शिवराज सिंह चौहान का नर्मदा नदी के प्रति प्रेम एवं श्रद्धा बचपन से रही है लेकिन अभी उनके राजनैतिक संकट के समय एवं आने वाले चुनावों के मद्देनजर पिछले कुछ समय से नर्मदा मां का सहारा ले जो बेडा पार करने की जुगत उन्होंने लगाई है वह उनके राजनैतिक चातुर्य एवं जागरूकता का परिचायक है.जब से शिवराज सिंह सत्ता में बने हैं नर्मदा नदी में सबसे अधिक खनन उनके क्षेत्र में ही हुआ है वह भी उनके भाई-भतीजों के द्वारा लेकिन आरोप शिवराज सिंह पर लगे अब इसमें शिवराज सिंह की क्या गलती है यह चर्चा का विषय बना हुआ है और इसकी चर्चा राजनैतिक गलियारों में सुगंध फैलाए हुए है.आखिर 1 जून के पूर्व ऐसी क्या बात हो गयी की मुख्यमंत्री को निर्णय लेना पड़ा की नर्मदा में खनन पूर्णतः प्रतिबंधित रहेगा भले ही यह अस्थायी हो लेकिन नोटबंदी की मार से टूटा निर्माण उद्योग अब दफ़न होने जा रहा है .इस असामयिक निर्णय जनहित या नर्मदाहित के अपेक्षा स्वयं अपनी परेशानियों से निजात दिलाने का निर्णय अधिक प्रतीत हुआ है.
आज सुबह हम जब रेत-गिट्टी के फुटकर विक्रेताओं के ठीहे पर पहुंचे तब वहां अफरा-तफरी का माहौल था.एक सज्जन जिन्होंने एक-दो दिन पूर्व ही अपना पुराना मकान तोड़ तीन कमरों का छोटा सा आशियाना शुरू किया था सर पर हाथ रख बैठे हुए थे वे आगे की परेशानिओं को भांप चिंतित थे और अपनी आर्थिक स्थिति का गुणा-भाग उन लोगों के साथ भी साझा कर रहे थे जिनसे वे अपरिचित थे.नर्मदा से रेत खनन के लिए केवल खंडवा,इंदौर संभाग में ही 40 करोड से अधिक के ठेके दिए गए। इनकी विधिवत नीलामी की गई। कमोवेश यही स्थिति जबलपुर,होशंगाबाद,भोपाल व शहडोल संभागों की है। सरकार के उक्त फैसले के बाद खनिज निगम में अफरा.तफरी की स्थिति रही। सरकार के फैसले के खिलाफ ठेकेदारों द्वारा अदालत का दरवाजा खटखटाए जाने की संभावना को देखते हुए देर शाम तय हुआ कि फिलहाल संबंधित ठेकेदारों को नोटिस जारी कर खनन पर रोक लगाई जाए। खदानों के पट्टे निरस्त करने या ठेकेदारों से वसूली गई रकम वापसी को लेकर फिलहाल अनिर्णय की स्थिति बनी हुई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में नर्मदा को जीवित इकाई का दर्जा दिया गया है। रेत उत्खनन पर प्रतिबंध से श्रमिकों के रोजगार पर असर का ध्यान रखते हुए व्यवस्था की जाएगी कि श्रमिकों को अन्य योजनाओं से रोजगार मिले।नर्मदा नदी के दोनों तटों पर व्यापक पैमाने पर पौधारोपण की योजना का विवरण देते हुए उन्होंने कहा कि दो जुलाई को छह करोड़ पौधे रोपित किए जाएंगे। नर्मदा के तट से केचमेंट इलाके में ये पौधारोपण होगाए इसके लिए कलेक्टरों को नक्शे बनाकर स्थान चिन्हित करने के निर्देश दिए गए हैं।मुख्यमंत्री ने कहा कि 18 शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाएंगेए जिनसे शुद्ध करके खेत व बाग. बगीचों को देंगे। पूजन सामग्री विसर्जन के लिए पूजन कुंड बनाए जाएंगे। नदी के पास की शराब दुकानें बंद होंगी। पर्यावरण पर जागरूकता के लिए विश्व पर्यावरण दिवस पांच जून से विशेष अभियान चलाया जायेगाए जिसमें जनप्रतिनिधिए गैरसरकारी संगठनए साधु.संत और सामाजिक कार्यकर्ता भाग लेंगे।
सवाल यह है की यदि नर्मदा मां की इतनी ही चिंता है तो अब तक क्या हुआ ?क्या वे अब तक मां नहीं थीं.इसका सीधा सन्देश यही है की एक दशक से अधिक मुख्यमंत्री अवैध खनन,खनन-माफियाओं एवं अधिकारीओं के गठजोड़ को जान-बूझकर नजरंदाज करते रहे और मां नर्मदा का सीना उनके अपने ही तार-तार करते रहे.खनन को विधि-सम्मत तरीके से करने हेतु नियम बने हैं लेकिन अधिकारिओं की मिली-भगत से सुशासन का दावा करने वाले इस राज्य में खूब इसकी धज्जियाँ उडाई गयीं.अपने मुंह मियां मिट्ठू बन जनता का क्या हाल है यह न जान पाने वाला प्रधान सेवक से क्या इसी निर्णय की उम्मीद थी?हाँ कई राजनैतिक एवं सामाजिक बुद्धिजीविओं ने चर्चा उपरान्त बताया की इस खनन घोटाले का दबाव इस तरह के फैसले लेने को मजबूर करता है.
सरकार के उक्त फैसले की भनक संबंधित ठेकेदारों को तीन.चार दिन पहले ही लग गई थी। इसके चलते अधिकांश ठेकेदारों ने रेत का विक्रय बंद कर इसका संग्रह करना शुरु कर दिया है। रेत की विक्री अचानक बंद होने से इसके दाम भी आसमां पर पहुंच गए। आशंका जताई जा रही है कि समिति का फैसला आने तक यह संग्रहित रेत अब मनमाने दामों पर बेची जाएगी। वहीं कुछ ठेकेदार सरकार के निर्णय के खिलाफ अदालत जाने का मन भी बना चुके है। दोनों ही स्थितियों में परेशानी आम जनता की होना है।