सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी उस पर तुर्रा यह की लिंगायतों को हिदुओं से तोड़ अलग समुदाय का दर्जा देना इस चुनावी रणनीति को यदि ध्वस्त किया है तो यकीनन अमित शाह इस बादशाहत के खिताब के हक़दार हैं .विपरीत परिस्थितिओं में इतनी सीटें ले आना अमित शाह इसके लिए बधाई के पात्र हैं .भले ही सरकार कांग्रेस एवं गठबंधन की बनती नजर आ रही हो लेकिन यहाँ बात चुनावी रणनीति एवं उसके रणनीतिकार की हो रही है.
यह भी है की हम यह नहीं कहते की केंद्र में भाजपा सरकार के सभी निर्णय सही हैं लेकिन जिस तरह चुनाव जिताने का दम दिखाते हैं इसके अध्यक्ष अमित शाह वह वाहवाही के काबिल है.कर्नाटक में कांग्रेस की स्थिति मजबूत थी फिर भी अमित शाह ने कमजोरी ढूंढ ली कांग्रेस और जदएस अपनी मगरूरी में मस्त रहीं और अमित शाह ने कांग्रेस का 38 प्रतिशत और जदएस का 19 प्रतिशत वोटबैंक में अपना 36 प्रतिशत वोट बैंक स्थापित कर लिया.वह तो पूर्ण बहुमत में कुछ सीटों की बाधा पड गयी वरना अपना अजेय परचम तो भाजपा ने फहरा ही दिया था.क्रिकेट के खेल में इस नीति को “गुगली” कहा जाता है.
कांग्रेस ने गठबंधन के साथ अवश्य सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत किया है लेकिन अमित शाह की रणनीति कई स्तरों पर रहती है और वे कब क्या चाल चल बना बनाया खेल कांग्रेस का बिगाड़ दें कहा नहीं जा सकता.
अब इन परिणामों का असर मप्र ,छग और राजस्थान के चुनावों पर पडना तय है .मप्र में अमित शाह पहले ही घोषणा कर चुके हैं की वहां मुख्यमंत्री नहीं संगठन के नाम पर चुनाव लड़ा जाएगा और इसकी तैयारी एक वर्ष पूर्व ही अमित शाह की टीम शुरू कर चुकी है.
धर्मपथ से अनिल कुमार सिंह