(खुसुर-फुसुर)– मप्र में धन-धान्य से पूर्ण कमलनाथ को अध्यक्ष बनाते ही प्रदेश कार्यालय का कायाकल्प शुरू हो गया है.इसके पहले के अध्यक्ष और स्वयंभू मुख्यमंत्री पद के दावेदार पदाधिकारी को इस तरफ ध्यान नहीं आया .अपनी पार्टी कार्यालय की सांज सवार का ध्यान यदि दिया तो कमलनाथ ने .
कमलनाथ अध्यक्ष पद पर रहते हुए भी पूर्व निर्धारित समय से मिलना पसंद कर रहे हैं लेकिन पत्रकारों को यह आदत नहीं है अभी ताजा घटना में कुछ बड़े पत्रकार पूर्व अध्यक्षों की आदत अनुसार उनके कमरे में प्रविष्ट हुए लेकिन साहब ने सब को बाहर का रास्ता दिखा दिया और यह भी जता दिया की उनके संस्थान मालिकों से उनकी तगड़ी पकड़ है .पत्रकार भी अपनी मजबूरी भांप चुपचाप चल दिए .इन घटनाओं से स्पष्ट है की वही छपेगा,चलेगा जो कमलनाथ चाहेंगे.लेकिन लोकतंत्र में क्या यह रीति-नीति चल पाती है शायद नहीं वर्तमान प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण सामने है ख़ास बात यह की कांग्रेस भले ही जनता में उपजे असंतोष का फायदा चुनाव में उठा ले लेकिन छोटे संस्थानों एवं वेब पत्रकारों की उपेक्षा उसे भारी पड सकती है क्योंकि आप बड़े संस्थानों को मैनेज कर लेते हैं लेकिन ख़बरें निकालने और जनता तक पहुंचाने का बड़ा जिम्मा आज इन समूहों ने सिद्ध कर दिया है .