भोपाल– राज्य सरकार ने शुक्रवार को माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में संघ के दबाव में की गई अवैध नियुक्तियों, सिलेबस में फेरबदल और वित्तीय घोटाले की जाँच के लिए जो समिति गठित की है उसमें एक भी पत्रकार और एक भी विशेषज्ञ नहीं ,दो कांग्रेसी बने सदस्य।
इसमें अपर मुख्य सचिव जनसम्पर्क गोपाल रेड्डी के अलावा कांग्रेस के दो नेता भूपेंद्र गुप्ता और संदीप दीक्षित को शामिल किया गया है, आश्चर्य की बात यह है कि इस कमेटी में एक भी पत्रकार और एक भी प्रोफ़ेसर यां विशेषज्ञ ऐसा नहीं है जो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) एवं अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (AICTE) के निर्धारित अर्हता एवं चयन मापदंडों के उल्लंघन की जाँच करने की योग्यता रखता हो.
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें तीन में से दो सदस्य सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्य है इसलिए इन दोनो तथ्यों से जाहिर है कि इस समिति की विश्वशनीयता पर पहले ही प्रश्न चिन्ह लग गया है तो फिर इसकी रिपोर्ट का क्या असर होने वाला है. तीसरा अहम् मुद्दा इसकी जाँच का विस्तार है. इस विश्विद्यालय का संघीकारण, करोड़ों का भ्रष्टाचार, नियुक्तियों में गड़बड़ियां मुख्यतःकुलपति बीके कुठियाला के कार्यकाल में ही हुई थी मगर ज्यादा ही महत्वाकांशी होते हुए इस कमेटी को जांच का दायित्व वर्ष 2003 से दिया गया है यानी जबसे भाजपा की सरकार बनी थी और उमा-भारती मुख्यमंत्री बनी थी. मुख्यमंत्री ही महापरिषद का अध्यक्ष होता है तो क्या इतनी कमजोर समिति मुख्यमंत्री और अन्य तीन मंत्रियों के कार्यकलापों की जांच करेगी?
इस तरह बिना विशेषज्ञों वाली इतनी छोटी समिति निहायत ही लचर है और यह आदेश राजनीतिज्ञों की जल्दीबाजी, अपने विरोधियों के विरुद्ध नंबर स्कोर करने की राजनीतिक लालसा और प्रशासकों की टरकाऊ सोच को ही दर्शाता है. इसीलिए इस कमेटी के आदेश जारी होते ही तुरंत विवाद शुरू हो गया।बीजेपी ने आलोचना करते हुए इसे जाँच समिति नहीं अपितु ‘कांग्रेस कमेटी’ बता दिया।
पूर्णेंदु शुक्ल की फेसबुक वाल से