वनदेवी की उपेक्षा के कारण वृक्ष-लताओं के अभाव में बहुत से क्षेत्र,नंगे पर्वत ,सूखी भूमि,” खाँय-खाँय करती हुई सिसकती रहती है. मुड़िया साधू ! यदि तुम ऐसा कर सको जिससे अपने राष्ट्र ,देश ,समाज के विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त इस विषय की अनभिज्ञता ,आतुरता का स्मरण सम्बद्ध व्यक्तिओं को दिला सको तो हमारा यह समाज,यह राष्ट्र तुम्हारा बहुत ही अनुग्रहित होगा. शीतल,शांत,सुमधुर समीर कौन प्रदान करता है?ये वनस्पतियाँ, ये लताएँ,वृक्ष जो वन-देवी की रोमावलिओं के सरीखे हैं ,जो उस सुखप्रद समीर की जननी है.मुडिया साधू !दुखों और रोगों का विमोचन करने वाली,शीतलता,शान्ति प्रदान करने वाली ऐसी वनदेवी का उन्मूलन राष्ट्र और समाज के हित के दृष्टिकोण से सर्वथा वांछनीय नहीं है. यह पुष्प और पराग की सुगंध बिखेरने वाली मनुष्य एवं अन्य प्राणियों को अनेक तरह की गंध देकर उन्हें मुग्ध करती है और वे अपने-आप में निमग्न हो आनंद,सुख और शान्ति पाते हैं.यह वनदेवी की ही देन है. _ पूज्यपाद अघोरेश्वर भगवान राम जी
जशपुर नगर (छग)– पर्यावरण की रक्षा हेतु वनों के संरक्षण एवं आदिवासी माताओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उनके बीच उन्नत चूल्हों के निशुल्क वितरण के पुनीत कार्य को अंजाम देता है “बाबा भगवान राम ट्रस्ट”.इस कार्यक्रम के अंतर्गत अभी तक 654 उन्नत चूल्हों का वितरण किया जा चुका है.इस ट्रस्ट के अंतर्गत संचालित आश्रम ब्रह्म्निष्ठालय ,सोगड़ा,जशपुर(छग) के नजदीक गाँवों सोगड़ा,चडिया,नालापारा,बड़ी बस्ती आदि गाँवों के आदिवासी माता-बहनों को इसका लाभ प्राप्त होता है.
चिटकवाईन आश्रम ,नारायणपुर ,जशपुर(छग) एवं उसके आस-पास स्थित गाँवों पोखरा टोली,चिटकवाईन,नारायणपुर,गोरिया,बेने,चरईगारा आदि की माता-बहनों को उन्नत चूल्हे वितरित किये गए.
इस उन्नत चूल्हे के लिए कुछ सूखी टहनियां ही काफी हैं.इसकी दूसरी विशेषता यह भी है की इसमें धुँआ नहीं निकलता.अतएव इसके इस्तेमाल से जहाँ वनों की रक्षा होगी वहीँ स्वास्थ्य की रक्षा भी होगी.
संस्था के स्वयंसेवकों ने इस कार्यक्रम के पूर्व ग्रामीणों से संपर्क किया एवं “मन अम्बा खंडा पतरा नू बचावा”अर्थात “वृक्ष न काटें,प्रकृति की रक्षा करें” के नारे के साथ इसके उद्देश्यों की जानकारी दी.
आलेख-नीतू सिंह (धर्मपथ की संपादिका हैं)