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कच्चे तेल मूल्य में गिरावट और अर्थव्यवस्था

डीजल मूल्य को नियंत्रण से मुक्ति, घरेलू गैस के मूल्य निर्धारण के नए फार्मूले और अंतर्राष्ट्रीय तेल मूल्य में गिरावट 2014 में देश की तेल अर्थव्यवस्था के कुछ प्रमुख घटनाक्रम हैं। सरकारी तेल कंपनियों के विनिवेश और हाइड्रोकार्बन ब्लॉकों की नई नीलामी की दिशा में भी कुछ उम्मीदें थीं, हालांकि उसमें अधिक सुगबुगाहट नहीं देखी जा रही है। images

अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल मूल्य के 140 डॉलर प्रति बैरल से घटकर करीब 63 डॉलर प्रति बैरल तक आ जाने और सरकारी तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) की डीजल बिक्री लाभ में आ जाने के बाद सरकार ने अक्टूबर में डीजल मूल्य के विनिवेश की अनुमति दे दी।

इस फैसले के साथ-साथ प्राकृतिक गैस मूल्य में संशोधन के कारण रेटिंग एजेंसियों ने देश के तेल उद्योग के परिदृश्य को ‘स्थिर’ रेटिंग दे दिया, जबकि पहले वे सुधार की अनुपस्थिति के कारण नकारात्मक रेटिंग देने पर अमादा थीं।

फिच रेटिंग्स ने कहा, “2015 में भारतीय तेल एवं गैस कंपनियों की रेटिंग परिदृश्य ‘स्थिर’ बनी रहेगी। तेल मूल्य सुधार और अंतर्राष्ट्रीय तेल मूल्य में गिरावट से रिफायनिंग और विपणन कंपनियों को होने वाला लाभ निकट भविष्य में उनके पूंजीगत खर्चे के कारण निकल जाएगा, जिसके कारण उनके पास नकदी प्रवाह का संचय नहीं हो पाएगा।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मई में सत्ता संभालने से पहले डीजल मूल्य 50 पैसे प्रति लीटर के किश्तों में बढ़ाया जा रहा था। यह वृद्धि पिछली सरकार द्वारा जनवरी 2013 में सब्सिडी बोझ कम करने के लिए गए फैसले के आधार पर की जा रही थी।

अक्टूबर में डीजल पर से नियंत्रण हटाने से काफी पहले जून 2010 में ही पेट्रोल मूल्य पर से नियंत्रण हटा लिया गया था।

विदेशों में हाइड्रोकार्बन संपत्तियों की खोज में भी भारत को 2014 में कुछ सफलता मिली। तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) की विदेश शाखा ने न्यूजीलैंड, म्यांमार, बांग्लादेश, ब्राजील में कुछ ब्लॉक हासिल किए और दक्षिण अफ्रीका, वियतनाम, मोजांबिक और तुर्की में कुछ समझौते पर हस्ताक्षर किए।

गैस मूल्य निर्धारण में भी कुछ प्रगति हुई। चुनाव के कारण पिछली सरकार इस दिशा में फैसला नहीं ले पाई थी, लेकिन नई सरकार ने गैस मूल्य में वृद्धि कर इसे प्रति यूनिट 5.61 डॉलर कर दिया, हालांकि उद्योग 8 डॉलर प्रति इकाई से अधिक कीमत की मांग कर रहा था।

यदि पिछली सरकार द्वारा गठित रंगराजन समिति फार्मूले को अपनाया जाता, तो यह मूल्य 8.4 डॉलर प्रति यूनिट होता।

नया फैसला हालांकि आंशिक है, क्योंकि 5.61 डॉलर प्रति यूनिट की कीमत सामान्य खोज के लिए ही लागू होगी। अत्यधिक गहरे समुद्र, गहरे समुद्र और भारी दबाव-ऊंचे तापमान क्षेत्र में होने वाली सभी नई खोजों के बारे में सरकार ने सिर्फ इतना कहा कि एक प्रीमियम दिया जाएगा।

यह हालांकि नहीं बताया गया कि प्रीमियम की गणना कैसे की जाएगी।

मूल्य वृद्धि का रिलायंस इंडस्ट्रीज को कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि कृष्णा-गोदावरी खाड़ी क्षेत्र में उत्पादन में कथित कमी के मुद्दे पर वह सरकार के साथ मध्यस्थता में उलझी हुई है।

तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत में गिरावट के कारण कर आय में होने वाली कमी की भरपाई के लिए सरकार ने दो बार नवंबर और दिसंबर में यह कहते हुए उत्पाद शुल्क बढ़ा दिया कि इससे होने वाली कमाई का उपयोग कल्याणकारी कार्यो में किया जाएगा।

तेल विपणन कंपनियों के बारे में विश्लेषकों का अनुमान है कि उनका शुद्ध लाभ 2014-15 में 33-36 अरब रुपये बढ़ेगा, जबकि 2015-16 में 7-10 अरब रुपये बढ़ेगा।

क्रिसिल रिसर्च ने आगे कहा, “दूसरी ओर उत्खनन कंपनियों का शुद्ध लाभ 2014-15 में 105-210 अरब रुपये बढ़ेगा और 2015-16 में 70-75 अरब रुपये बढ़ेगा।”

तेल मूल्य में गिरावट से देश के चालू खाता घाटा और वित्तीय घाटे पर सकारात्मक असर होगा और इसके कारण भारतीय रिजर्व बैंक के ऊपर भी दरों में कटौती का दबाव बढ़ा है।

तेल एवं गैस क्षेत्र पर नजर रखने वालों को भविष्य में सरकार से ओएनजीसी तथा अन्य प्रमुख कंपनियों के विनिवेश संबंधी फैसला लिए जाने की उम्मीद है।

2014 में तेल अर्थव्यवस्था की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं :

– डीजल मूल्य को नियंत्रण मुक्त कर दिया गया

– नए गैस मूल्य की घोषणा हुई

– गहरे जल और कठिन ब्लॉकों के लिए नए साल में नए मूल्य की उम्मीद

– मध्यस्थता में उलझे होने के कारण रिलायंस इंडस्ट्रीज को कीमत बढ़ने का फायदा नहीं

– पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ा

– तेल के वैश्विक मूल्य में गिरावट से देश के आर्थिक परिप्रेक्ष्य में बदलाव।

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