Sunday , 19 May 2024

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कर्त्तव्य का निर्वाह

sriramहमारी बुद्धिमत्ता इसी में है कि हम स्वयं शांतिपूर्वक जिएं और दूसरों को सुखपूर्वक जीने दें.
यह सब नियंत्रण की नीति अपनाने से ही संभव हो सकता है. कर्त्तव्य और धर्म का अंकुश परमात्मा ने इसीलिए रखा है कि सन्मार्ग से भटकें नहीं. इन नियंत्रणों को तोड़ने की चेष्टा करना अपने और दूसरों के लिए महती विपत्तियों को आमंत्रित करने की मूर्खता करना ही गिना जाएगा.
समाज में स्वस्थ परंपराएं कायम रहे, उसी से अपनी और सबकी सुविधा बनी रहेगी. प्रत्येक को अपने नागरिक कर्त्तव्यों का पालन करने में दत्तचित्त होना चाहिए. हम सब मिलकर अपने समाज को सुधारने, संचालित करने और स्वास्थ परंपराएं प्रचलित करने का प्रयत्न करें और सभ्य, सुविकसित लोगों की तरह भौतिक व आत्मिक प्रगति कर सुख-संतोष प्राप्त करें.

दूसरों की सुविधा ध्यान में रखते हुए अपनी सुविधा और स्वतंत्रता को स्वेच्छापूर्वक सीमित करना, सभ्य देश के सभ्य नागरिकों का कर्त्तव्य है. घरों की गंदगी लोग अक्सर गली या सड़क पर डाल देते हैं, जिससे आने-जाने वालों को असुविधा होती है और सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता बाधित होती है.
रेलगाड़ियों के डिब्बे में कुछ लोग बिस्तर बिछाए, टांग लंबी किए लेटे रहते हैं और उठाने पर झगड़ते हैं. इन लोगों को मनुष्यता की आरंभिक शिक्षा सीखनी ही चाहिए कि सार्वजनिक उपयोग के स्थान या वस्तुओं का उतना ही उपयोग करें जितना अपना हक है.
स्वयं कीर्तन करने का मन है तो अपने घर में पूजा के उपयुक्त मंद स्वर में प्रसन्नतापूर्वक करें, पर लाउडस्पीकर लगाकर रात भर धमाल मचाने और पड़ोस के बीमारों, परीक्षार्थियों तथा अन्य लोगों की नींद बाधित करने वाली ईश्वर भक्ति से पहले हमें अपनी नागरिक मर्यादा और जिम्मेदारी को समझना चाहिए. जिसका अर्थ है कि दूसरों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए अपनी इच्छा को स्वेच्छापूर्वक सीमाबद्ध करना.

वचन का पालन और ईमानदारी का व्यवहार मनुष्य का प्राथमिक एवं नैतिक कर्त्तव्य है. जिस समय पर जिससे मिलने का, कोई काम पूरा करने का वचन दिया है, उसे ठीक समय पर पूरा करने का ध्यान रखना चाहिए ताकि दूसरों को असुविधा न हो.
दूसरों की असुविधा को ध्यान में रखते हुए अपनी सुविधा को सीमाबद्ध रखना, समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को सीखना और पूरा करना ही चाहिए. अपने आचरण से समाज में शिष्ट नागरिकों की तरह हम ठीक तरह से जी सकें और दूसरों को जीने दे.

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