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भारत ने अमरीका को अपने घर के परमाणु बाजार में घुसने दिया

January 27, 2015 9:48 pm by: Category: ख़बरें अख़बारों-वेब से Comments Off on भारत ने अमरीका को अपने घर के परमाणु बाजार में घुसने दिया A+ / A-

भारत ने अमरीका को अपने परमाणु बाज़ार में प्रविष्टि क़ानून में संशोधन के आधार पर नहीं बल्कि समझौते के आधार पर दी है|

9AP537013455348रूस के ऊर्जा एवं सुरक्षा केंद्र के निदेशक अन्तोन ख्लप्कोव ने अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा की समाप्ति के बाद परमाणु क्षेत्र के सन्दर्भ में यह टिप्पणी की है| अमरीका ने भारत के साथ परमाणु वार्ताओं में लचीलेपन का प्रदर्शन भारतीय बाज़ार में रूस के साथ प्रतिस्पर्धा के उद्देश्य से किया है- ऐसा ऊर्जा विकास फंड के निदेशक सेर्गेई पीकिन का मानना है|

अमरीका और भारत के नेताओं के बयानों के अनुसार दोनों देश ईंधन भारत लाने और वहां परमाणु बिजली घरों के निर्माण में अमरीकी कंपनियों के लिए मौजूद रुकावटों को हटाने में सक्षम रहे हैं| पहले दो मतभेद बाधा बने हुए थे| अमरीकी भारत के उस क़ानून से सहमत नहीं थे, जिसके अनुसार परमाणु बिजली घर के समस्त कार्यकाल के समय नुकसान की ज़िम्मेदारी परमाणु सेवाओं के प्रदाता की होगी| दूसरा मतभेद इसलिए था, क्योंकि भारत आने वाले समस्त परमाणु ईंधन पर अमरीका पूर्ण नियंत्रण रखना चाहता था| इसके तहत रूसी परमाणु

ऊर्जा एवं सुरक्षा केंद्र के निदेशक अन्तोन ख्लप्कोव ने अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा की समाप्ति के बाद परमाणु क्षेत्र के सन्दर्भ में यह टिप्पणी की है| अमरीका ने भारत के साथ परमाणु वार्ताओं में लचीलेपन का प्रदर्शन भारतीय बाज़ार में रूस के साथ प्रतिस्पर्धा के उद्देश्य से किया है- ऐसा ऊर्जा विकास फंड के निदेशक सेर्गेई पीकिन का मानना है|

अमरीका और भारत के नेताओं के बयानों के अनुसार ईंधन भारत लाने और वहां परमाणु बिजली घरों के निर्माण में अमरीकी कंपनियों के लिए मौजूद रुकावटों को हटाने में दोनों देश सक्षम रहे हैं| इस मार्ग में दो मतभेद पहले बाधा बने हुए थे| अमरीकी भारत के उस क़ानून से सहमत नहीं थे, जिसके अनुसार परमाणु बिजली घर के समस्त कार्यकाल के दौरान नुकसान की ज़िम्मेदारी परमाणु सेवाओं के प्रदाता की होगी| दूसरा मतभेद इसलिए था, क्योंकि भारत आने वाले समस्त परमाणु ईंधन पर अमरीका पूर्ण नियंत्रण रखना चाहता था| इसके तहत रूसी परमाणु बिजली संयंत्रों के लिए आने वाला परमाणु ईंधन भी आता था|

बराक ओबामा ने कहा कि इस मुद्दे पर दोनों पक्ष आगे बढ़ने में सफल रहे हैं| नरेंद्रमोदी ने स्पष्ट करते हुए कहा कि यह सफलता भारतीय क़ानून के आधार पर प्राप्त हुई है| अन्तोन ख्लप्कोव का मानना है कि यह समझौता काफी अस्थिर है| वह कहते हैं:

अमरीकी उस कानूनी ढाँचे के सम्बन्ध में लचीलापन लाने को तैयार हैं, जो यह सहयोग सुनिश्चित करेगा| लेकिन यहाँ पर अमरीकी कंपनियों को प्राप्त लचीलेपन की गहराई की अतिरंजना की आवश्यकता नहीं है| परमाणु बिजली घर के गैर-पेशेवर इस्तेमाल से लेकर हर संभावित क्षति का कानूनी दायित्व अमरीकी कम्पनियां अपने ऊपर नहीं उठाएंगी| इसलिए यहाँ पर मध्यमार्ग चुने जाने का उल्लेख आवश्यक है न कि अमरीकियों द्वारा भारतीय स्थिति को स्वीकार करने का| प्रत्येक मध्यमार्ग देर या सबेर नए विवादों को जन्म देता है और परियोजना के कार्यान्वयन के मार्ग में बाधाएं डालता है|

नरेंद्रमोदी के इस बयान के प्रति भी अन्तोन ख्लाप्कोव की टिप्पणी काफी सतर्क है कि भारत और अमरीका 2008 में हस्ताक्षरित शांतिपूर्ण परमाणु क्षेत्र के सहयोग समझौते का व्यावसायीकरण शुरू कर रहे हैं | वह कहते हैं:

भारतीय-अमरीकी परमाणु सहयोग में प्रगति के बावजूद भी विचारों और परियोजनाओं को अमल में लाने के लिए अभी बहुत काम करना है| आमतौर पर सहमति और व्यावहारिक सहयोग के बीच एक लम्बी खाई होती है| यह खाई यहाँ और अधिक लम्बी इसलिए भी है क्योंकि अमरीकी कंपनियों के पास भारत में काम का अनुभव नहीं है| 1974 में भारत द्वारा किये गए परमाणु परीक्षण के बाद वह भारत छोड़ने पर मजबूर हो गईं थीं| इस तरह से सहयोग में 40 वर्षों का ठहराव आ गया था| ज़ाहिर है कि इस सहयोग की बहाली में समय कम नहीं लगेगा|

इस यात्रा के बाद भारत के परमाणु बाज़ार के शक्ति संतुलन में गंभीर परिवर्तन नहीं आये हैं और यह बात इस बाज़ार में रूस की स्थिति के सम्बन्ध में भी सच है- ऐसा ऊर्जा विकास फंड के निदेशक सेर्गेई पीकिन का मानना है| वह कहते हैं:

यह बात सबसे महत्वपूर्ण है कि रूस ने भारतीय बाज़ार में महत्वपूर्ण प्रगति की है| पिछले समझौते और नयी परमाणु इकाइयों के लिए हस्ताक्षरित अनुबंध यह दिखाते हैं कि रूस की स्थिति इस बाज़ार में और मज़बूत होती जा रही है और वस्तुतः उसका वहां कोई प्रतिस्पर्धी नहीं है| ज़ाहिर है कि यह बात वाशिंगटन की उलझन का कारण है| इसलिए भारत के साथ लम्बे समय से चले आ रहे मतभेदों के बावजूद भी अमरीका भारत की शर्तों पर उन्हें हटाने के मार्ग पर चलने को तैयार है| वह छूट चुकी और तेज़ी से गति पकडती भारतीय-रूसी सहयोग की गाड़ी पर छलांग लगाकर पहुँचना चाहता है| वह अभी भी इस बाज़ार में प्रवेश करना चाहता है, ताकि ‘कीमत-गुणवत्ता’ के सूत्र के अनुसार रूसी प्रौद्योगिकियों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके|

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन की पिछले वर्ष के अंत में भारत यात्रा के समय अगले बीस वर्षों के दौरान 12 परमाणु बिजली इकाइयों के निर्माण की योजनाओं की घोषणा की गयी थी| इस संदर्श में ओबामा की भारत यात्रा भारतीय परमाणु बाज़ार के शक्ति संतुलन में कोई विशेष बदलाव नहीं लाई है|
रेडिओ रूस से 

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