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बेटे की चाहत मिटाने के लिए केवल शिक्षा नहीं, महिलाओं का सशक्तिकरण जरूरी (विशेष)

December 22, 2016 12:00 pm by: Category: फीचर Comments Off on बेटे की चाहत मिटाने के लिए केवल शिक्षा नहीं, महिलाओं का सशक्तिकरण जरूरी (विशेष) A+ / A-

मैं यह लेख लिखने के लिए आसपास नहीं होती, अगर पाकिस्तान के पंजाब में रहने वाले बाहरी गोत्र के लोगों ने 20वीं सदी के पहले दशक में कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा बंद नहीं की होती। लेकिन एक सदी में ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्रथा सबसे उच्च स्तर पर है।

हाल के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में बच्चों के 914 का लिंगानुपात, साल 1951 से अपने निम्न स्तर पर बने समग्र लिंगानुपात की जगह बेटे की पसंद का एक बेहतर द्योतक है।

यह हकीकत तब है जब साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ कर 65.46 प्रतिशत हो गई और साक्षरता के हिसाब से बच्चों के लिंगानुपात में लैंगिक समानता अधिक होनी चाहिए थी।

इसका तात्पर्य है कि केवल महिला साक्षरता लिंग अनुपात सुधारने के लिए काफी नहीं है, जबकि आम तौर पर ऐसा मानकर चला जाता है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत सलाह दी जाती है।

(“इन इंडिया, एज इनकम राइज फ्यूअर गर्ल्स बॉर्न”/ 20 दिसंबर, 2016 ) श्रृंखलाओं के पहले भाग के रूप में बताया गया कि शिक्षित लोगों में लिंग चयन के आधार पर गर्भपात वहन करने की संभावना अधिक होती है।

पुत्रियों के खिलाफ पूर्वाग्रह केवल तब समाप्त हो सकता है जब शिक्षा के साथ महिलाओं का सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण होगा।

यह निष्कर्ष ओटोवा विश्वविद्यालय की प्रोफेसर व्लासॉफ द्वारा महाराष्ट्र के गोवे में करीब 30 वर्षो के एक अध्ययन में निकाला गया है।

अर्थात शिक्षा लिंग मानदंडों को नहीं बदल रही है।

लेंकिन संयुक्त राष्ट्र ने अपनी 2013 की रपट में लैंगिक समानता हासिल करने में शिक्षा की भूमिका के बारे में कहा, “शिक्षा के बिना लैंगिक समानता हासिल करना असंभव है, जबकि सभी के लिए शिक्षा के अवसरों में विस्तार उत्पादकता बढ़ाने और गरीब परिवारों की आर्थिक असुरक्षा कम करने में मदद कर सकता है।”

संयुक्त राष्ट्र ने 2015 के बाद विकास एजेंडा में शिक्षा को एक प्राथमिकता देने की बात कही।

लेकिन भारत के आंकड़ों के संयुक्त राष्ट्र की मान्यताओं से मेल नहीं खाते हैं। मई, 2016 की इंडिया स्पेंड की रपट के मुताबिक, युवा स्नातक माताओं ने प्रति 1000 लड़कों पर 899 लड़कियों को जन्म दिया, जो राष्ट्रीय औसत 933 से कम है।

इंडिया स्पेंड की 2015 की रपट के मुताबिक, विगत 20 वर्षो में हरियाणा में महिला साक्षरता दर 25 प्रतिशत बढ़कर साल 2011 में 65 प्रतिशत हो गई, लेकिन यह राज्य कम लिंगानुपात दर के लिए मशहूर है।

व्लासॉफ कहती हैं , “सामाजिक रूप से सशक्त अधिकांश उत्तरदाता कम बच्चा पैदा करने के पक्ष में थे।”

सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत के लिए वह आगे कहती हैं, “आत्मविश्वास और आजादी हासिल करने, खुद के लिए सोचना शुरू करने और उनके मतों के पक्ष में खड़ा होने के लिए एक औपचारिक रोजगार पाना महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है।”

नीतू सिंह (धर्मपथ की सम्पादक हैं)

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