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 पातालकोट के बच्चों में जागी अधिकारों की ज्वाला! | dharmpath.com

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पातालकोट के बच्चों में जागी अधिकारों की ज्वाला!

April 20, 2015 9:15 pm by: Category: भारत Comments Off on पातालकोट के बच्चों में जागी अधिकारों की ज्वाला! A+ / A-

DSCN4015छिंदवाड़ा- मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट को देश और दुनिया के लोग जनजातीय वर्ग की अंधेरी दुनिया के तौर पर जानते हैं, मगर अब यहां के हालात वैसे नहीं रहे। यहां के बच्चों में अब अपने अधिकार पाने की ज्वाला नजर आने लगी है। इन बच्चों की तूलिकाएं (पेंटिंग) यही बयां करती है।

छिंदवाड़ा जिले के तामिया विकास खंड में पातालकोट जनजातीय वर्ग के उन लोगों का इलाका है, जहां कभी लोग जाने तक की हिम्मत नहीं करते थे, क्योंकि यहां की स्थिति और यहां के लेागों को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां रही है। इसकी स्थिति काफी नीचे होने के कारण इसे पातालकोट नाम मिला है।

पातालकोट में कुल जमा 12 गांव हैं, जिनमें ढाना (टोले) 28 हैं जो तीन ग्राम पंचायतों में आते हैं। यहां भारिया और गोंड जनजातीय वर्ग के लोग रहते हैं। यहां कभी सड़क, परिवहन सहित अन्य सुविधाओं की बड़ी कमी रही है। वर्तमान में लगभग हर गांव में प्राथमिक पाठशाला है, कुछ गांव में माध्यमिक शालाएं भी हैं। यहां अब भी सुविधाएं दूसरे स्थान की तुलना में अब भी कम है।

स्वैच्छिक संस्था विज्ञान सभा यहां के लोगों में जागृति लाने के लिए कई वर्षो से काम कर रही है। इसके साथ ही बच्चों में रचनात्मक अभिव्यक्ति को जगाने का भी सिलसिला जारी है। इसी क्रम में बच्चों की चित्रकला (पेंटिंग) की कार्यशाला आयोजित की गई।

इस कार्यशाला में बच्चों ने जो चित्र बनाए हैं, वे उनमें अधिकारों के प्रति बढ़ती जागृति को दर्शाने वाले हैं। इन चित्रों में किसी ने अपने गांव की कच्ची सड़क से होने वाली समस्या को बयां किया है तो कोई चित्र पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा की समस्याओं सामने लाने वाला है।

इस कार्यशाला में हिस्सा लेने वाली घानाकोडिया की सातवीं में पढ़ने वाली गुंजा भारती की पेंटिंग में गर्मी में नदी के सूखने को दर्शाया गया है। वह कहती है कि बरसात में तो गांव की नदी में पानी रहती है, मगर गर्मी आते तक सूख जाती है।

इसी तरह इसी गांव की हीरा भारती का चित्र खस्ताहाल सड़क को बताता है। वह कहती है कि हमारे गांव में पक्की सड़क नहीं होने से परेशानी होती है, इस कारण गांव से अनाज आसानी से बाहर नहीं ले जाया पाता है, इतना ही नहीं गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए अस्पताल जाने में खासी दिक्कत आती है।

घटलिंगा गांव के 10वीं की छात्रा होलिका रोतिया मजदूरी न मिलने का जिक्र करती है वही कहती है कि महात्मा गांधी रोजगार गारंटी में काम करने वालों के समय पर भुगतान नहीं मिलता, जिससे बुरा लगता है।

पातालकोट के गांव के कई छात्र-छात्राएं गांव में सड़क न होने से साइकिल चलाने में दिक्कत होने, खेल मैदान का अभाव, गांव में साफ सफाई का मुद्दे पर चर्चा करने से नहीं चूकते।

बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ के संचार विशेषज्ञ अनिल गुलाटी का कहना है कि इस इलाके के बच्चों में जागृति आई है और वे अपने अधिकारों को जानने लगे हैं। समस्या तथा मुद्दे को उठाने में भी पीछे नहीं है।

अब पातालकोट बदल रहा है, यहां के बड़ों से लेकर बच्चे भी अपने अधिकारों के प्रति जागृत हो रहे हैं। इतना ही नहीं उनमें अपनी दुनिया बदलने का जज्बा भी दिख रहा है।

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