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उज्जैन में सजने लगी हठ योगियों की दुनिया!

उज्जैन, 18 मार्च (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ शुरू होने में भले ही एक माह से ज्यादा वक्त हो, मगर साधुओं की दुनिया अभी से सजने लगी है।

उज्जैन, 18 मार्च (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ शुरू होने में भले ही एक माह से ज्यादा वक्त हो, मगर साधुओं की दुनिया अभी से सजने लगी है।

यहां पहुंच रहे साधुओं की साधना के तरीके चकित कर देने वाले हैं। कोई साधु एक पैर पर खड़ा नजर आता है, तो किसी के सिर पर अंगारों से भरा खप्पर (मिट्टी का बर्तन) है और कोई साधु पेड़ से बंधी रस्सी पर लटका हुआ है।

क्षिप्रा नदी के तट पर 22 अप्रैल से सिंहस्थ कुंभ शुरू होने जा रहा है, जो 21 मई तक चलेगा। इस आयेाजन में हिस्सा लेने साधु-संतों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो चुका है। यहां साधु-संतों के लिए आकर्षक कुटिया बन रही है, ये सभी बांस, बल्ली और घास-फूस से सहारे बनाई जा रही हैं।

सिंहस्थ कुंभ में हिस्सा लेने पहुंचे साधुओं में से एक कृष्णानंद हमेशा एक पैर पर खड़े रहते हैं। वह इसे अपनी साधना बताते हैं। उनका कहना है कि वह वर्ष 1998 से ही एक पैर पर खड़े रहते हैं। सहारे के लिए वह अपने करीब एक पेड़ से एक रस्सी का झूला बांधे हुए हैं, जिस पर दूसरा पैर रख लेते हैं।

कृष्णानंद का कहना है कि उनका एक पैर पर खड़े रहना हठ योग है, जिसमें शरीर को कष्ट देने में आनंद की प्राप्ति होती है। वह अन्य लोगों की तरह ही भोजन-पानी ग्रहण करते हैं। तलब लगती है तो कभी-कभी चिलम भी सोंट लेते हैं, मगर वह हर बार नई चिलम का इस्तेमाल करते हैं।

लगातार खड़े रहने से कृष्णानंद के पैर में घाव भी हो जाता है, मगर यह घाव उन्हें डिगा नहीं पाता, क्योंकि उनकी यह साधना ईश्वर की आराधना का हिस्सा है।

इसी तरह मंगलनाथ क्षेत्र में विष्णु सागर के सामने स्थित आश्रम में सुंदरधाम के बाबा अर्जुन दास धुनी रमा, दिखाई दे जाते हैं। वह तपती दोपहर में सिर पर अंगारों का खप्पर (मिट्टी का बर्तन) रखकर आराधना कर रहे हैं।

खप्पर वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध हठयोगी बाबा अर्जुनदास पिछले कई वर्षो से यह कठोर तप कर रहे हैं। इसी आश्रम में सिंहस्थ कुंभ की सफलता के लिए पेड़ पर लटकती 20 फीट की रस्सी पर उल्टे लटककर तपस्या करते बाबा रामबालक दास भी दिख जाते हैं।

सिंहस्थ कुंभ क्षेत्र में बाल हनुमानदास भी यहां अंगारों के बीच बैठकर भरी दोपहरी में धुनी रमाते नजर आने लगे हैं, तो सुदामा कोटी (वृंदावन) और झाड़ी हनुमान खालसा (उत्तराखंड) से आए साधुओं की टोली को भी यहां चिलम का कश लगाते हुए देखा जा सकता है।

इतना ही नहीं, यहां ‘साइलेंट बाबा’ भी पहुंचे हैं। उन्हें हिंदी-अंग्रेजी, गुजराती, मराठी सहित कई प्रकार की भाषाओं का ज्ञान है, मगर वह मन में विश्व कल्याण की भावना लिए मौन व्रत धारण किए हुए हैं। उनका अखंड मौन व्रत कई वर्षो से अनवरत जारी है।

साइलेंट बाबा आश्रम में आने वाले श्रद्धालुओं को अपना आशीर्वाद कागज पर लिखकर देते हैं और साथी साधु-संतों को अपनी बात इशारों में बताते हैं।

महाकालेश्वर धाम उज्जैन पर धीरे-धीरे सिंहस्थ कुंभ का रंग चढ़ने लगा है। साधु-संतों की कुटिया, उनकी टोली और गूंजते जयकारे यहां के माहौल को अभी से धर्ममय बना रहे हैं।

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