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पाकिस्तान में होता है बेटियों का सौदा,लड़कियों के सौदे से सुलझते हैं झगड़े

0,,16463086_303,00किसी जुर्म की सजा क्या हो? कैद! कैद से बचना हो तो क्या करें? जुर्माना! जुर्माना चुकाने लायक पैसा ही ना हो तो? जमीन! और जमीन भी ना हो तो? तो बेटी है ना.

पाकिस्तान के कबायली इलाके का एक गांव, घर की चौखट पर एक बच्ची दुनिया से बेखबर अपनी गुड़िया के साथ खेल रही है. उससे कुछ ही दूरी पर गांव वाले किसी बहस में उलझे हैं. सात साल की गुल मीना नहीं जानती कि वहां क्या चल रहा है. बस उसे यह दिख रहा है कि उसके परिवार वाले भी वहां हैं और किसी से झगड़ रहे हैं.

अचानक भीड़ उसकी तरफ आने लगती है. कुछ आदमी गुल मीना की बांह पकड़ कर उसे खींचते हुए वहां से ले जाते हैं. रोती बिलखती गुल मीना नहीं जानती कि उसे कहां ले जाया जा रहा है. बस उसकी गुड़िया पीछे छूट गई है. घर वाले उसे जाते हुए देख रहे हैं. पर न तो पिता पुकार सुन कर आगे बढ़ रहे हैं और ना ही भाई के कदम उठ रहे हैं.

लड़की का सौदा

दरअसल गुल मीना का भाई एक लड़की के साथ भाग गया था. कबायली इलाके में जिरगा ने मिल कर तय किया कि लड़के की जुर्रत की सजा उसके परिवार को दी जानी चाहिए. सजा में तय हुआ कि गुल मीना की शादी उस परिवार के एक आदमी से कर दी जाए जिसके साथ गुल मीना का भाई भाग गया था.

नन्ही गुल मीना नहीं जानती कि घर से भागने का मतलब क्या होता है. उसके लिए शादी भी गुड़िया का खेल ही है. उसे यह भी नहीं पता कि उसके भाई ने क्या जुर्म किया है. पर जिरगा के हिसाब से, जुर्म किसी का भी हो, सजा तो परिवार की लड़की को ही मिलनी चाहिए. सदियों से इस तरह से लड़कियों का सौदा होता आ रहा है.

गुल मीना के साथ जो भी हुआ उसका वीडियो बनाया गया. महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था  औरत फाउंडेशन  की मदद से गुल मीना को इंसाफ दिलाने की कोशिश कर रही है. संस्था की समर मीनल्लाह कहती हैं, “यह दर्दनाक है पर ऐसा आज भी हो रहा है.”

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि लड़कियों के सौदे की प्रथा शुरू हुई ‘बदले सुलह’ से. इसके अनुसार यदि किसी के परिवार का सदस्य मारा जाए तो अपराधी को परिवार को ‘ब्लड मनी’ देनी होती है जिससे मामला खत्म किया जा सके. समर मीनल्लाह बताती हैं कि जो लोग पैसा नहीं दे सकते थे उन्होंने पहले अपनी जमीन और फिर बेटियों को देना शुरू कर दिया.

आंकड़ों की मानें तो 2005 से 90 फीसदी मामले सुप्रीम कोर्ट में दर्ज किए जा चुके हैं. लेकिन जमीनी स्तर पर काम कर रहे संगठनों का दावा है कि कबायली इलाकों में इन मामलों को बड़ी आसानी से दबा दिया जाता है. समर मीनल्लाह बताती हैं, “लड़कियों को जबरन दूसरे परिवार के आदमी के पास भेज दिया जाता है.अगर वे मना करें तो जान तक ले ली जाती है.

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