गंगा हमारी धार्मिता आस्था, संस्कृति और हमारे संस्कारों की प्रतीक बन गई है। एक मां हमंे जन्म देती है, लेकिन उत्तर भारत के विशाल मैदानी भू-भाग दूसरी मां गंगा भरण और मोक्ष देती है। इस आंचल के विशाल छांव में 40 करोड़ लोगों के सरोकार सीधे जुड़े हैं। गंगा का महत्व मानव जीवन के इतर जलीय जंतुओं के लिए भी वरदान है। इसका जल जहां अमृत हैं, वहीं जड़ी बूटिया मानव जीवन को संरक्षित करती हैं।
गंगा हमारी धार्मिता आस्था, संस्कृति और हमारे संस्कारों की प्रतीक बन गई है। एक मां हमंे जन्म देती है, लेकिन उत्तर भारत के विशाल मैदानी भू-भाग दूसरी मां गंगा भरण और मोक्ष देती है। इस आंचल के विशाल छांव में 40 करोड़ लोगों के सरोकार सीधे जुड़े हैं। गंगा का महत्व मानव जीवन के इतर जलीय जंतुओं के लिए भी वरदान है। इसका जल जहां अमृत हैं, वहीं जड़ी बूटिया मानव जीवन को संरक्षित करती हैं।
पर्यटन और आस्था से जुड़ी होने के नाने लाखों लोगों की आजिविका का साधन और साध्य भी गंगा है। करोड़ों लोगों की जल प्रवाहिनी मां गंगा हमारे आजीविका का मुख्य साधन बन चली है, लेकिन बढ़ती आबादी और वैज्ञानिक विकास ने गंगा के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। गंगा सिमट रही हैं।
गंगा गोमुख यानी उत्तराखंड से निकल कर बंग्लादेश तक का सफर तय करती हैं। भौगोलिक आंकड़ों में समझें तो गंगा की लंबाई 2510 किमी है। 2071 किमी भारत की सीमा में और बाकि हिस्सा बंग्लादेश में आता है। यह 100 मीटर गहरी हैं। 3,50196 वर्ग मिल के विस्तृत भू-भग पर गंगा फैली हैं। गंगा के उद्गम स्थल की ऊंचाई 3140 मीटर है। इसकी गोद में सुंदरवन जैसा डेल्टा है। कृषि के लिए लंबा भूभाग उपलब्ध कराया है। लेकिन बढ़ती आबादी और पदूषण के चलते पर्यावरण का असंतुलन भी खड़ा को गया है। इससे गंगा का पानी अब आचमन करने योग्य भी नहीं रहा। वैज्ञानिक भविष्यवाणियों को माने तो गंगा का अस्तित्व खतरे में है।
पर्यावरण असंतुलन और तापमान में वृद्धि के चलते ग्लेशियर अधिक तेजी से पिघल रहे हैं। एक वक्त ऐसा भी आएगा जब ग्लेशिर खत्म हो जाएंगे और हमारी गंगा का आंचल सूखा हो जाएगा। वह दौर कुछ ऐसा भयावह होगा जब इंसानी जीवन समाप्त हो जाएगा। 2007 में जारी संयुक्तराष्ट संघ की वैज्ञानिक रिपोर्ट में कहा गया था कि बदले पर्यावरण के चलते 2030 में हिमालयी हिमनद जिसे हम ग्लेशियर कहते हैं खत्म हो जाएंगे, जिससे गंगा सूख जाएंगी। वह समय धीरे-धीरे हमारे सामने आ रहा है।
इस समय गंगा के किनारे खड़े हो कर उसकी दुर्दशा को देखा जा सकता है। गंगा का निर्मलीकरण अभियान तभी सफल होगा जब इसे सीधे लोगों से जोड़ा जाएगा। इस अभियान को पूरा आंदोलन बनाना होगा। लोगों को यह बताना होगा कि गंगा मानव जीवन के लिए कितनी उपयोगी हैं। इनका अस्तित्व रहना हमारे लिए अपने अस्तित्व बचे रहने जैसा होगा। इस अभियान में सबसे बड़ी बाधा होगी गंगा में गिरने वाले शहरी और औद्यौगिक कचरे को रोकना। यह समस्या सरकार और वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती है।
गंगा में प्रतिदिन 2 लाख 90 हजार लीटर कचरा गिरता है, जिससे एक दर्जन बीमारियां पैदा होती हैं। सबसे अधिक कैंसर जैसा खतरनाक रोग भी पैदा होता है। कैंसर के सबसे अधिक मरीज गंगा के बेल्ट से संबंधित हैं। इसके अलावा दूसरी जल जनित बीमारियां हैं।
सर्वेक्षणों के अनुसार, गंगा में हर रोज 260 मिलियन लीटर रसायनिक कचरा गिराया जाता है, जिसका सीधा संबंध औद्यौगिक इकाइयों और रसायनिक कंपनियों से है। गंगा के किनारे परमाणु संयत्र, रसायनिक कारखने और सुगर मिलों के साथ-साथ छोटे बड़े कुटीर और दूसरे उद्योग शामिल है।
कानपुर का चमड़ा उद्योग गंगा का आंचल मैला करने में सबसे अधिक भूमिका निभाता है। वहीं सुगर मिलों का स्क्रैप इसके लिए और अधिक खतना बनता जा रहा है। गंगा गिराए जाने वाले शहरी कचरे का हिस्सा 80 फीसदी होता है, जबकि 15 प्रतिशत औद्यौगिक कचरे की भागीदारी होती है। गंगा के किनारे 150 से अधिक बड़े औद्यौगिक इकाइयां स्थापित हैं।
देश में बढ़ते औद्यौगिक विकास से भारत की सभी नदियों का अस्तित्व खतरे में है। लेकिन उसमें गंगा सबसे अधिक खतरनाक स्थिति में हैं। गंगा को बचाने के लिए सरकार की आंख समय समय पर खुलती है। गंगा की रक्षा धर्म और आस्था से जुड़ा है। जिससे इस पर राजनीति भी होने लगती है।
गंगा सफाई के नाम पर परियोजनाएं करोड़ों की तैयार होती हैं, लेकिन समय के साथ संबंधित फाइलें भी धूल फांकने लगती हैं। देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बाद अब इस ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ध्यान दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस संसदीय क्षेत्र वाराणसी से चुने गए उसे धर्म, संस्कृति और संस्कारों के सरोकारों का जीवंत नगर काशी का संबध गंगा से है।
शरीर त्याग के बाद भी लोग मोक्षदायिनी के आंचल में पहुंच मोक्ष की कामना करते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा सफाई पर खास तवज्जो दी है। उनका विजन गंगा को अर्थ जगत से भी जोड़ना है। इसलिए आम बजट में गंगा सफाई के लिए 2,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है।
‘नमामि गंगे’ नाम से इस अभियान को चलाया जाएगा। इसके साथ ही इलाहाबाद से हल्दिया तक जल मार्ग विकसित कर माल ढुलाई भी की जाएगी। वहीं पटना, वाराणसी, इलाहाबाद समेत दूसरे छोटे नगरों में जलपोत बना कर व्यसाय किया जा सकता हैं। गंगा निर्मली अभियान के बाद निजी क्षेत्र भी जल मार्ग में पूंजी लगाने को बाध्य होगा। लेकिन सरकार के लिए यह काम बेहद कठिन और चुनौती भरा होगा।
गंगा सफाई अभियान की सफलता के लिए सबसे पहला और प्रभावी कदम शहरी और औद्यौगिक कचरे को गंगा में गिरने से रोकना होगा। इसके लिए कानपुर, वाराणसी, पटना और दूसरे शहरों के नालों के पानी के लिए जल संशोधन संस्थानों की स्थापना करनी होगी। कचरे का रूप परिवर्तित कर उसके उपयोग के लिए दूसरा जरिया निकालना होगा। जल संशोधन के जरिए गंदे पानी को साफ कर फिर उसे संबंधित कंपनियों के उपयोग लायक बनाना होगा, जिससे गंगा में गिरती रासायनिक गंदगी को रोका जा सके। इसके लिए शहरी कचरे की भी रि-साइकिलिंग भी एक समस्या होगी। उस पानी का उपयोग फिर कहां किया जाएगा? यह भी अपने आप में अहम सवाल है।
जल संशोधन करने के बाद उसे गंगा मंे छोड़ दिया जाए या फिर उसका दूसरा उपयोग किया जाए। लेकिन यह तभी संभव होगा जब यह संशोधित जल पूरी तरह साफ-सुथरा और गंगा के साथ मानव जीवन व जल जंतुओं को हानि पहुंचाने वाला न साबित हो। यह एक बड़ी समस्या है।
जब तक सरकार इस पर दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ दिल और दिमाग से काम नहीं करती, तब तक यह परियोजना फाइलों में सिमट कर रह जाएगी, क्योंकि यही हाल राजीव गांधी की ओर से चलाए गए ‘गंगा एक्शन प्लान’ का हुआ। राजीव गांधी की मंशा गंगा को पूरी तरफ साफ-सुथरा करना था लेकिन नौकरशाही की अनिच्छा और उदासीनता के चलते यह योजना अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकी।
गंगा निर्मलीकरण को एक सतत आंदोलन बनाना होगा। हर व्यक्ति जब तक अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरूक नहीं होगा, तब तक ‘गंगे नमामि’ और ‘गंगा एक्शन प्लान’ जैसी परियोजनाएं फलीभूत नहीं हो सकती हैं।
गंगा की सफाई अभियान की कमान केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती को सौंपी गई है। इसके लिए नितिन गडकरी, प्रकाश जावड़ेकर, पीयूष गोयल के अलावा पर्यटन मंत्री को मिला कर समिति बनाई गई है। लेकिन गंगा पर राजनीति से बात नहीं बनेगी। गंगा भारत क अपने और गंगा के लिए अच्छे दिन लाने के लिए हमें सरकार के साथ कदम में कदम बढ़ा कर आगे आना होगा।
गंगा राष्ट्रीय नदी है। चुनावों के दौरान प्रधानतंत्री गंगा आरती में शामिल नहीं हो पाए थे। लेकिन जीत के बाद यहां पहुंच कर गंगा आरती में शामिल हुए और सतत प्रवाहीनी मां गंगा से आशीर्वाद भी लिया।
हाल में सरकार ने गंगा किनारे बसे महानगरों और नगर पंचायतों से गंगा में गिराए जाने सीवेज और कचरे के रोकथाम के लिए उनकी व्यवस्था के बाबत जानकारी मांगी है। लेकिन गंदगी और बढ़ते जलीय प्रदूषण से गंगा अब बोझिल हो चुकी हैं। धरती पर लाने वाले उस प्रभु से कह रही होंगी-‘हे राम अगले जनम मोहि गंगा न कीजौ!’ (आईएएनएस/आईपीएन)
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)