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 अटाली : मातमी सन्नाटा, मालिक की बाट जोहते मकान! | dharmpath.com

Tuesday , 3 June 2025

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अटाली : मातमी सन्नाटा, मालिक की बाट जोहते मकान!

अटाली (हरियाणा), 9 जुलाई (आईएएनएस)। मातमी सन्नाटा, खाली सड़कें, मालिक की बाट जोहते मकान! यह लगभग 7,000 की आबादी वाले हरियाणा के गांव अटाली का सूरत-ए-हाल है। यहां मई के अंतिम सप्ताह से लेकर पहली जुलाई के बीच दो बार सांप्रदायिक दंगे हुए थे।

अटाली (हरियाणा), 9 जुलाई (आईएएनएस)। मातमी सन्नाटा, खाली सड़कें, मालिक की बाट जोहते मकान! यह लगभग 7,000 की आबादी वाले हरियाणा के गांव अटाली का सूरत-ए-हाल है। यहां मई के अंतिम सप्ताह से लेकर पहली जुलाई के बीच दो बार सांप्रदायिक दंगे हुए थे।

दंगे के बाद गांव में एक समुदाय के 200-300 लोग रह गए हैं, और दूसरे समुदाय के 70 परिवारों के घरों में ताले लटके हुए हैं।

फरीदाबाद जिले की बल्लभगढ़ तहसील के तहत आने वाला अटाली विवादित जमीन पर धर्मस्थल निर्माण को लेकर 25 मई को पहली बार दंगे की आग में जल उठा। एक समुदाय के लोग गांव से भाग खड़े हुए, गांव के बाहर जाकर शरण ली। वे फिर गांव लौटे, लेकिन पहली जुलाई को दोपहर के वक्त फिर दंगा भड़क गया। चार जुलाई को पुलिस की कार्रवाई में करीब 70 लोगों की गिरफ्तारी हुई, जिनमें से नौ अब भी पुलिस की गिरफ्त में हैं।

घटना के बाद गांव छोड़ने वाले समुदाय का कोई सदस्य अभी तक गांव में नजर नहीं आता और दूसरे समुदाय के 1,000 परिवारों में भी अधिकांश ने गांव के बाहर शरण ले रखी है। जो गिने-चुने लोग मौजूद हैं, उनके भीतर पुलिस कार्रवाई का खौफ है।

गांव के प्रवेश द्वार पर त्वरित कार्रवाई बल (आरएएफ) और राज्य पुलिस की टीम गश्त कर रही है। एक गश्ती दल किसी अनहोनी को टालने के लिए विवादित स्थल के पास भी मौजूद है।

गांव में मौजूद लोग पुलिस के रवैए से नाराज हैं। उनका कहना है कि पुलिस ने जबरन कार्रवाई की, दरवाजे तोड़ कर घरों में घुस गए, बुजुर्गो और नाबालिगों को भी नहीं बख्शा।

समुदाय के लोगों ने बताया कि जिन नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उसमें 60-70 साल के बुजुर्ग और 17 साल के किशोर भी शामिल हैं।

सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी यशपाल पिछले 40 सालों से इस गांव के निवासी हैं और उनका भतीजा भी उन नौ लोगों में है, जिन्हें पुलिस गिरफ्तार कर ले गई है।

यशपाल ने कहा, “चार जुलाई को आफत आ गई, हमारे 17 साल के नाबालिग भतीजे को पुलिस जबरन घर से उठा कर ले गई। उसका कोई कुसूर नहीं था।”

चार जुलाई से सभी स्कूलों (चार निजी तथा दो सरकारी) पर भी ताले लगे हैं। सनी, अमित, सत्येंद्र, मंगल तथा जसवंत, यशपाल, बीना और अमरजीत जैसे लोग जो गांवों में रह गए हैं, सबकी अपनी-अपनी कहानी है।

लोग आरोप लगा रहे हैं कि पुलिस ने घरों में तोड़फोड़ की, उनके दरवाजे तोड़ डाले और बच्चे तक को जबरन साथ ले जाने लगे।

14 वर्षीय छठी कक्षा के छात्र सत्येंद्र ने कहा, “जब पुलिस अचानक गांव में आई, लोगों को गिरफ्तार करने लगी, तो मैं उनकी राह में आ गया और वे मुझे भी ले जाने लगे, मेरे चाचा अमरजीत (45) ने मुझे पुलिस के चंगुल से बचाया।”

क्या उन्हें दोबारा पकड़े जाने का डर है, उन्होंने कहा, “बिल्कुल, कब पुलिस उठा कर ले जाए, हमें पता नहीं।”

दंगे के बाद उपजी स्थितियों से आम लोगों की रोजी-रोटी पर भी असर पड़ा है। किसान मंगल जहां खेतों पर मजदूरों के न आने से दुखी हैं, वहीं जसवंत अपनी सब्जियां न बेच पाने से दुखी हैं। उनका कहना है कि पिछले चार-पांच दिनों में उन्हें 50,000 रुपये का नुकसान हो गया है।

उन्होंने कहा, “पुलिस कार्रवाई के बाद गांव से बाहर निकलने से डर लग रहा है। कब हमें पुलिस पकड़ ले। हम गांव से बाहर बल्लभगढ़ नहीं जा पा रहे। सब्जियां खेतों में ही सड़ रही हैं। चार-पांच दिनों में 50,000 रुपये का नुकसान हो गया।”

लोगों में दंगे से ज्यादा पुलिस की कार्रवाई का खौफ नजर आ रहा है। एक ग्रामीण सनी ने कहा कि जब चार जुलाई को पुलिस गांव के भीतर आई और उस दौरान उनके बच्चे स्कूल में थे, उनके अंदर इतना डर समा गया कि वे नजदीकी गांव में अपने रिश्तेदार के घर चले गए। सनी जैसे ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपने बच्चे पत्नियों को रिश्तेदारों के घर भेज दिया है।

वहां गश्त कर रही पुलिस टीम से जब आईएएनएस की इस संवाददाता ने पूछा कि ग्रामीण उन पर जबर्दस्ती करने का आरोप क्यों लगा रहे हैं? इस पर एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “पुलिस ने किसी के साथ कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं की। हम तो उनका सहयोग करना चाहते हैं, लेकिन वे हमारी सुनने को तैयार नहीं।”

क्या गिरफ्तार लोगों में 17 साल का नाबालिग भी शामिल है? इस पर उन्होंने कहा, “हम गिरफ्तारी के वक्त किसी की उम्र नहीं देखते। जिनके नाम सामने आए, उन्हीं की गिरफ्तारी की गई है।”

गांव के दोनों समुदायों में से एक समुदाय चाहता है कि सुरक्षाकर्मी गांवों से लौट जाएं, वहीं दूसरे समुदाय के लोग अपने गांव वापस लौटना चाहते हैं।

नूर मोहम्मद ने आईएएनएस को फोन पर बताया, “हम सभी हंसी-खुशी साथ रह रहे थे। लेकिन धर्मस्थल निर्माण को लेकर दंगा शुरू हो गया। हम सभी डर कर गांव से बाहर चले गए। जब वापस आए तो एक जुलाई को दोपहर के वक्त फिर दंगा हुआ। पुलिस ने हमारी मदद की, लेकिन हम कब तक अपने घरों से दूर भटकते रहेंगे। इसका समाधान होना चाहिए।”ं

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