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 जलवायु परिवर्तन से कृषि विकास प्रभावित | dharmpath.com

Thursday , 12 June 2025

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जलवायु परिवर्तन से कृषि विकास प्रभावित

वर्ष 2015 कृषि क्षेत्र के लिए एक चुनौतीपूर्ण साल था। देश के कई हिस्सों में रुखे मौसम और सूखे के कारण किसानों के लिए यह परेशानियों का लगातार दूसरा वर्ष था, जिसने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के तत्काल समाधान की आवश्यकता को ध्यान आकर्षित किया। इनका दुष्प्रभाव इसके बाद के वर्ष में भी नजर आ रहा है, क्योंकि वर्तमान गेहूं की रबी बुआई पिछले वर्ष की तुलना में 20.23 लाख हेक्टेयर कम हुई है, दालों और सब्जियों के दाम लगातार ऊंचे बने हुए हैं।

वर्ष 2015 कृषि क्षेत्र के लिए एक चुनौतीपूर्ण साल था। देश के कई हिस्सों में रुखे मौसम और सूखे के कारण किसानों के लिए यह परेशानियों का लगातार दूसरा वर्ष था, जिसने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के तत्काल समाधान की आवश्यकता को ध्यान आकर्षित किया। इनका दुष्प्रभाव इसके बाद के वर्ष में भी नजर आ रहा है, क्योंकि वर्तमान गेहूं की रबी बुआई पिछले वर्ष की तुलना में 20.23 लाख हेक्टेयर कम हुई है, दालों और सब्जियों के दाम लगातार ऊंचे बने हुए हैं।

दक्षिण-पश्चिमी मानसून इससे पिछले वर्ष में 12 प्रतिशत की कमी के बाद 2015 में लंबी अवधि औसत के सामान्य स्तर से 14 प्रतिशत कम रहा, जिसका असर खरीद फसलों पर पड़ा। इसके बाद जो उत्तर-पूर्वी मानसून आया, वह तमिलनाडु एवं आस-पास के क्षेत्रों में भारी विनाश का कारण बना। इससे वहां अभूतपूर्व बाढ़ का संकट आया, जिसने पूरी तरह धान एवं नकदी फसलों को बर्बाद कर दिया।

दाल एवं तिलहनों का उत्पादन पिछले कई वर्षो से मांग की तुलना में लगातार कम होता रहा है। इस साल अनाजों के उत्पादन को लेकर बड़ी चिंताएं बनी हुई हैं, हालांकि वर्तमान में देश में खाद्यान अधिशेष मात्रा में है पर विशेषज्ञ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कम से कम 62.5 मिलियन टन सब्सिडी प्राप्त खाद्यान्न मुहैया कराए जाने की कानूनी प्रतिबद्धता की ओर ध्यान दिलाते हैं।

यही कारण है कि देश के किसान अच्छी फसल अर्जित करने के लिए बेहतर मौसम स्थितियों को लेकर अभी से चिंताग्रस्त है। चूंकि अभी भी बुआई का काम चल ही रहा है, इसलिए उम्मीदें बनी हुई हैं।

इस वर्ष कम नौ राज्यों ने सूखाग्रस्त जिलों की घोषणा की है। ये हैं कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना एवं झारखंड। तमिलनाडु में अधिकांश जिलें तो इस वर्ष बाढ़ से बुरी तरह ग्रस्त रहे हैं। 2014-15 के दौरान भी हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश के कई जिले सूखे की चपेट में रहे थे।

2014-15 में खाद्यान्न उत्पादन का चौथा अग्रिम अनुमान 252.68 मिलियन टन का था, जो 2013-14 से 265.04 मिलियन टन के उत्पादन से 12.36 मिलियन टन कम है। ऐसा गेहूं के उत्पादन में 6.19 मिलियन टन की गिरावट की वजह से है। चावल का उत्पादन भी थोड़ा कम रहा था। दालों का उत्पादन 2014-15 में 19.24 मिलियन टन से कम होकर 17.20 मिलियन टन रह गया, जिसकी वजह से इन खाद्य वस्तुओं की कीमतों में अभूतपूर्व तेजी का संकट उत्पन्न हो गया।

उदाहरण के लिए अरहर की कीमतें एक साल पहले के 75 रुपए प्रति किलोग्राम से उछल कर 199 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहूंच गई और अभी भी ये कीमतें नियंत्रण के बाहर हैं। न केवल अरहर, उड़द की कीमतें बल्कि खुदरा बाजार में लगभग सभी प्रमुख दालों की कीमतें वर्तमान में भी लगभग 140 रुपये प्रति किलोग्राम के आस-पास बनी हुई हैं। तहबाजारियों और कालाबाजारियों पर अंकुश लगाने के सरकार के प्रयासों के अपेक्षित नतीजे अभी भी नहीं दिख रहे हैं।

वर्ष के दौरान सरकार ने प्रमुख दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 275 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है। सरकार को इस वर्ष प्याज एवं दालों के लिए बार-बार बाजार में हस्तक्षेत्र करने को बाध्य होना पड़ा है। केवल नियमित सब्जियों एवं फलों की बात न करें, आलू और टमाटर तक की कीमतें इस वर्ष आसमान छूती रही है। मौसम के प्रारंभ में मटर की कीमतें 110 रुपये प्रति किलोग्राम के उच्च स्तर पर चली गई थी।

स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए सरकार ने 500 करोड़ रुपये की एक संचित राशि के साथ एक मूल्य स्थिरीकरण कोष की स्थापना की है। इस वर्ष कुछ फंड ऐसे राज्यों में दालों की सब्सिडी प्राप्त बिक्री के लिए जारी किए गए थे, जिन्होंने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लाभार्थियों को किफायती दरों पर दाल मुहैया कराने के लिए अन्वेषक योजनाएं प्रस्तुत की थीं।

यह देखते हुए कि 2015-16 के लिए उत्पादन अनुमान अभी भी 2013-14 की बंपर फसल की तुलना में कम है, सरकार ने अरहर एवं उरद दालों के लिए 1.5 लाख टन का बफर स्टॉक सृजित करने का फैसला किया है, जिसे बाजार दरों पर सीधे किसानों द्वारा प्राप्त किया जाएगा।

सूखे की परेशानी को कम करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जिनमें महज 33 फीसदी की तुलना में अब 50 फीसदी तक नष्ट फसल क्षेत्र पर विचार करना तथा राहत राशि में 50 की बढ़ोतरी करना शामिल है।

बताया जाता है कि महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र, जो पिछले 4 वर्षों से सूखे की मार झेल रहा है, में इस वर्ष परेशान किसानों द्वारा सबसे अधिक आत्महत्या किए जाने की खबरे आई हैं। केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र को 3050 करोड़ रुपये की सूखा राहत राशि मुहैया कराई है। मध्य प्रदेश को 2033 करोड़ रुपये, कर्नाटक को 1540 तथा छत्तीसगढ़ को 1672 करोड़ रुपये की सूखा राहत राशि मुहैया कराई गई है। यह राशि राष्ट्रीय आपदा राशि कोष से मुहैया कराई जाएगी।

केंद्रीय कृषिमंत्री राधामोहन सिंह ने सूखा राहत राशि के सुस्त क्रियान्वयन के लिए तथा मांग ज्ञापन भेजने में देरी के लिए राज्यों को जिम्मेदार ठहराया है, जिसके कारण किसानों की परेशानियां बढ़ीं। मंत्री ने कहा कि क्रियान्वयन राज्यों के हाथों में है।

इस वर्ष रबी की निम्न बुआई में कृषिमंत्री को आकस्मिकता योजना तैयार करने को तथा प्रभावित क्षेत्र में बीजों एवं उर्वरकों को भेजने की स्थिति के लिए तैयार रहने को प्रेरित किया। पिछले वर्ष मानसून में औसत कमी 14 प्रतिशत की थी, जबकि पंजाब और हरियाणा में यह 17 प्रतिशत थी। हालांकि इन राज्यों में सिंचाई की सुविधाएं तो हैं, लेकिन फसल पूर्व रुखे मौसम में खरी फसलों को नुकसान पहुंचाया।

निम्न उत्पादकता की समस्या को दूर करने के लिए सरकार ने बड़े पैमाने पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना लागू की है। इस योजना का लक्ष्य अगले तीन वर्षों में 14.40 करोड़ किसानों को कार्ड मुहैया कराना है। सरकार ने इस परियोजना के लिए 568.54 करोड़ रुपये आवंटित किया है। यह कार्ड किसानों को उसकी मिट्टी में पोषकता की कमी एवं उर्वरक के उपयोग से संबंधित अनुमान प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा। किसानों को इसके तहत एक सलाह भी दी जाएगी कि किस फसल पर कितनी मात्रा में उर्वरक आदि का उपयोग किया जा सकता है।

जैविक खेती पर अपने फोकस के साथ सरकार ने परंपरागत कृषि विकास योजना की शुरुआत की है, जो क्लस्टर खेती को प्रोत्साहित करता है, जैविक खाद्य के लिए सब्सिडी को 100 रुपये प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 300 रुपये कर दिया गया था।

भारत की कृषि का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा प्रति वर्ष पर्याप्त एवं सही समय पर वर्षा होने पर निर्भर है और हाल के सूखों ने खेती के लिए सिंचाई की सुविधा बढ़ाने की जरूरत पर और ज्यादा बल दिया है। इसी के मद्देनजर सरकार ने पिछले वर्ष प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की शुरुआत की, जिसका लक्ष्य अधिक से अधिक हेक्टेयर जमीन को सिंचाई के अंतर्गत लाना है। इसके लिए लगभग 5300 करोड़ का बजट आवंटन किया गया, जिसमें त्वरित एकीकृत लाभ कार्यक्रम के लिए कोष शामिल है।

कृषि मंत्रालय का कहना है कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत ड्रिप एवं छिड़काव परियोजना के तहत लगभग 1.55 लाख हेक्टेयर क्षेत्र शामिल कर लिए गए हैं। बाजारों एवं बाजारों से संवेदनशील जानकारियां किसानों को उनकी उपज के लिए बेहतर मूल्य दिलाने में सहायक हो सकती हैं। इसके लिए सरकार एक राष्ट्रीय कृषि बाजार की स्थापना करने की योजना बना रही है, जो किसानों को ई-मार्के टिंग के जरिए किसी भी बाजार में उनकी उपज को बेचने में सक्षम बनाएगा।

वर्ष के दौरान मंत्रालय ने किसानों को अधिकार संपन्न बनाने के लिए कई मोबाइल एप्लीकेशन लांच किए। फसल बीमा एप्लीकेशन किसानों को बीमा कवर एवं उन पर लागू होने वाली प्रीमियम के बारे में जानकारी देने में मददगार होगा। ‘एग्रोमार्केट मोबाइल’ किसानों को 50 किलोमीटर की परिधि भीतर मंडी में फसलों के बाजार मूल्य को प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा। परिक्षेत्रों में मोबाइल एवं कनेक्टिविटी की कमी की समस्या को दूर करने के लिए कृषि मंत्रालय ने मोबाइल प्लेटफॉर्म के जरिए अपनी सभी सेवाओं को उपलब्ध कराने का फैसला किया है।

दो करोड़ से अधिक किसान फसलों एवं मौसम के बारे में एसएमएस दिशानिर्देश प्राप्त करने के लिए ‘एमकिसान पोर्टल’ के उपयोग के लिए मंत्रालय के साथ पंजीकृत हो चुके हैं।

बहरहाल, इस तथ्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि मौसम की स्थितियां आज भी कृषि विकास एवं समृद्धि के लिए सबसे आवश्यक कारकों में से एक है, खासकर आने वाले वर्ष में, जब फसल उत्पादन, उपलब्धता एवं मूल्य में बढ़ोतरी की चिंताएं सबसे अधिक हैं।

वर्ष 2015 में जहां बागवानी एवं मत्स्य पालन क्षेत्रों में मजबूती बनी रही, लगातार खराब मौसम के कारण कृषि क्षेत्र की वृद्धि में गिरावट आई। (आईएएनएस/आईपीएन)

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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