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 ‘बजट में रखना होगा वैश्विक मंदी का ध्यान’ | dharmpath.com

Monday , 16 June 2025

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‘बजट में रखना होगा वैश्विक मंदी का ध्यान’

नई दिल्ली, 26 फरवरी (आईएएनएस)। हर साल बजट आता है और हमारी उम्मीदें होती हैं कि इस साल बजट में क्या हासिल होगा। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार के सामने फिलहाल कई तरह की समस्याएं हैं। पहली तो अस्थिरता की समस्या है, जो बाहर से आ रही है जबकि अंदरूनी समस्याएं भी कम नहीं है। इसलिए बजट में बाहरी और अंदरूनी दोनों समस्याओं का ध्यान रखा जाना चाहिए।

नई दिल्ली, 26 फरवरी (आईएएनएस)। हर साल बजट आता है और हमारी उम्मीदें होती हैं कि इस साल बजट में क्या हासिल होगा। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार के सामने फिलहाल कई तरह की समस्याएं हैं। पहली तो अस्थिरता की समस्या है, जो बाहर से आ रही है जबकि अंदरूनी समस्याएं भी कम नहीं है। इसलिए बजट में बाहरी और अंदरूनी दोनों समस्याओं का ध्यान रखा जाना चाहिए।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अरुण कुमार ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “चीन की अर्थव्यवस्था नीचे जा रही है, ब्राजील में मंदी छा गई है। यूरोजोन और जापान की अर्थव्यवस्था बहुत धीमी है। अमेरिका में थोड़ा ठीक हुआ, लेकिन फिर धीमा पड़ गया। इसका हमारी अर्थव्यस्था पर असर हो रहा है।”

उन्होंने कहा, “मंदी के कारण कमोडिटीज में गिरावट है जिसका फायदा हमें आयात में मिल रहा है। लेकिन नुकसान यह है कि यह इशारा कर रहा है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था में मांग कम है यानी मंदी है। इससे हमारे चालू खाते में तो फायदा हो रहा है, लेकिन निर्यात 15 से 20 फीसदी की रफ्तार से गिर रहा है। पिछले 14-15 महीनों से निर्यात में बढ़ोतरी की जगह गिरावट देखी जा रही है।”

कुमार का कहना है कि आयात पर खर्च कम होने के बावजूद हमारा कर्ज बहुत ज्यादा है। हमारा जो रिजर्व है वह लगभग 350 अरब डॉलर है और हम पर कर्ज 450 अरब डॉलर है। तो पूंजी बाजार में तेजी नहीं आ रही है। जो कृषि क्षेत्र है वहां दो साल से सूखा पड़ा है। बैंकों का उधार बढ़ नहीं रहा। उसमें 7 प्रतिशत के आसपास की दर है, जबकि सामान्यत: यह 14-15 फीसदी हुआ करता था।

वे कहते हैं कि सेवा क्षेत्र में भी परेशानी है। पिछले साल इस क्षेत्र में 12 फीसदी से कर बढ़ाकर 14 फीसदी किया गया, उसके बाद सरचार्ज भी लगा दिया गया। इस क्षेत्र की विकास दर कम है और कर में बढ़ोतरी के कारण वृद्धि दिख रही है।

उन्होंेने कहा कि सेवा क्षेत्र की बदौलत अर्थव्यवस्था की विकास दर में तेजी नहीं आई है। इसलिए सरकार का साढ़े सात प्रतिशत वृद्धि दर का दावा संशय पैदा करता है और इससे सरकार के आकलन में गड़बड़ी होती है और लक्ष्यों पर भी असर पड़ता है। जैसे कि वित्तीय घाटे का लक्ष्य या कर संग्रहण का लक्ष्य आदि।

वहीं, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञ, प्रोफेसर मनोज पंत ने आईएएनएस को बताया कि सरकार को कर से ज्यादा राजस्व इकट्ठा नहीं हो पाता। फिलहाल तो पेट्रोलियम पदार्थो पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने से कर संग्रहण कुछ बढ़ा है। लेकिन वे संतुलन बनाने की कोशिश करेंगे।

उन्होंने कहा कि इस साल कर में छूट की संभावना नहीं है। हालांकि कॉरपोरेट टैक्स को कम किया जा सकता है। यह अच्छी बात है क्योंकि अभी कॉरपोरेट टैक्स 34 फीसदी है लेकिन केवल 22 फीसदी प्रभावी है। इसके पर्यवेक्षण में सरकार का खर्च करना होता है साथ ही इसमें भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिलता है।

पंत का कहना है, “जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा सेवा क्षेत्र से आता है। लेकिन इससे इकट्ठा होने वाला कर बढ़ नहीं रहा तो सरकार कुछ और क्षेत्रों को सेवा क्षेत्र में जोड़ेगी। हमेशा कुछ चीजें बजट से पहले कर दिया था और कुछ चीजें बजट में की जाती है। जैसे 2.5 फीसदी स्वच्छ भारत सेस बजट से पहले ही लगा दिया गया है। ये सरकार के लिए आय के स्रोत हैं। लेकिन इस साल कोई नया टैक्स लागू होने की संभावना नहीं है। इसकी बजाय वे कर को तर्कसंगत बनाएंगे।

पंत बताते हैं कि इस साल अप्रत्यक्ष करों में बढ़ोतरी की गुंजाइश नहीं है। अल्कोहल और सिगरेट आदि पर सीन टैक्स बढ़ेगा। लेकिन उपभोक्ता वस्तुओं पर कर बढ़ाने की कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकि इनका बाजार वैसे ही ठप्प पड़ा है। वे कहते हैं कि सरकार सीमा शुल्क में बढ़ोतरी कर सकती है। हालांकि विश्व व्यापार संगठन के समझौते के कारण आधारभूत कर में बढ़ोतरी की संभावना नहीं है लेकिन विशेष शुल्क के माध्यम से सीमा शुल्क में बढ़ोतरी की जाएगी।

वहीं, कुमार का कहना है, “हमारे यहां राजनीतिक अनिश्चितता है, सामाजिक अनिश्चितता है। जिस तरह से जाट आंदोलन बगैरह हो रहे हैं, उससे निवेश के माहौल पर असर पड़ रहा है। निजी क्षेत्र भी निवेश में तेजी नहीं ला रहा, क्योंकि उसके सामने अनिश्चितता का माहौल है। तो ऐसे में विदेशी निवेश आने की संभावना कम है।”

उन्होंने कहा, “हमारी विकास दर में जो गिरावट आई थी, उसकी वजह यह थी कि निजी क्षेत्र निवेश कर नहीं रहा, दूसरी तरफ सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश में भी कटौती कर दी गई। योजनागत खर्च में पिछले 6 साल में साढ़े छह लाख करोड़ रुपये की कटौती कर दी गई। वहीं, निजी क्षेत्र परेशान है कि माल बिक नहीं रहा और वर्तमान क्षमता का भी पूरी तरह से दोहन नहीं हो पा रहा। वहीं, विदेशी निवेश कुल निवेश का महज 10-12 प्रतिशत है।”

कुमार कहते हैं, “हमें अंदरूनी मांग को बढ़ाना होगा। अगर वित्तीय घाटे का लक्ष्य साढ़े तीन प्रतिशत रखा गया है और हम उसी पर चलते रहे और हमारा सार्वजनिक क्षेत्र का खर्च नहीं बढ़ा तो हम परेशानी में आ जाएंगे। अगर वह बढ़कर 5 फीसदी भी हो जाता है तो ऐसी कोई आफत नहीं आने वाली है। अगर विकास दर तेज रहा तो कोई रेटिंग एजेंसी रेटिंग नहीं घटाएगी। लेकिन अगर हम राजकोषीय घाटे को ही पाटते रहे और विकास दर गिरता रहा तो सारी रेटिंग एजेंसिया हमारी रेटिंग घटाने लगेगी।”

कुमार का कहना है, “सबसे पहले तो बुनियादी संरचनाओं में निवेश की जरूरत है। बिजली, पानी, सड़क, मेट्रो, बंदरगाह, रेल, ग्रामीण क्षेत्र में, सामाजिक क्षेत्र में शिक्षा-स्वास्थ्य आदि में निवेश बढ़ाना होगा। इससे देश में रोजगार का भी सृजन होगा। आज रोजगार का सवाल सबसे बड़ा सवाल है। चाहे वो पाटीदार आंदोलन हो या जाटों का आंदोलन हो। सबको रोजगार चाहिए। आरक्षण कोई निदान नहीं है, क्योंकि कुल मिलाकर तीस चालीस हजार सरकारी नौकरियों से लोगों की मांग पूरी नहीं होने वाली है। हमें सालाना एक से सवा करोड़ नौकरियां पैदा करनी होगी।”

वहीं, पंत का कहना है, “इस बजट में सरकार अवसंरचानों पर सब्सिडी बढ़ाएगी, क्योंकि इसके लिए खर्च जुटाना होगा। सरकार को एफडीआई से उम्मीद थी जो आया नहीं। यहां तक कि घरेलू कंपनियां जो पीपीपी के तहत अवसंरचना क्षेत्र में आवेदन करती थी, वे भी भाग गई। तो सरकार इंफ्रास्टकर बांड लेकर आ सकती है, ताकि पूंजी जुटाई जा सके।”

कुमार का कहना है, “हमें निवेश में ग्रामीण क्षेत्र पर ध्यान देना होगा। क्योंकि वहां निवेश से घरेलू मांग में तेजी आती है, जबकि शहरों में निवेश से आयातित वस्तुओं के मांग में तेजी आती है, जिससे फिर चालू खाते का घाटा बढ़ता है। जबकि ग्रामीण लोगों को पास पैसा आता है तो वे घरेलू उत्पादों पर और दैनिक जीवन की जरूरी चीजों पर खर्च बढ़ाते हैं।”

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