नई दिल्ली, 23 मई (आईएएनएस)। असम में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का सत्ता में आना इतिहास में दर्ज हो चुका है और इसका श्रेय सर्बानंद सोनोवाल के शानदार नेतृत्व और हेमंत बिस्व शर्मा की कुशल रणनीति को दिया जा रहा है, लेकिन दिग्गजों का मानना है कि इस जीत की नींव लगभग दशकों पहले ही पड़ चुकी थी।
नई दिल्ली, 23 मई (आईएएनएस)। असम में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का सत्ता में आना इतिहास में दर्ज हो चुका है और इसका श्रेय सर्बानंद सोनोवाल के शानदार नेतृत्व और हेमंत बिस्व शर्मा की कुशल रणनीति को दिया जा रहा है, लेकिन दिग्गजों का मानना है कि इस जीत की नींव लगभग दशकों पहले ही पड़ चुकी थी।
असम के आंगलोंग क्षेत्र के कार्बी क्षेत्र के नेता अंगद सिंह के मुताबिक, “असम में प्रवेश की नींव दिवंगत कुशाभाऊ ठाकरे और बंसीलाल सोनी ने दशकों पहले ही डाल दी थी। उन दिनों में असम में भाजपा के बारे में सोचना भी उपेक्षित था।”
वह कहते हैं, “मुझे 1993 में दिफू के सर्किट हाउस में ठाकरे के साथ हुई बैठक याद है। मैंने उन्हें बताया कि असम में भाजपा का कोई भविष्य नहीं है, क्योंकि असम की राजनीति शुरू से ही कांग्रेस और असम गण परिषद (एजीपी) के बीच विभाजित होती आई है।”
लेकिन ठाकरे ने कहा कि कांग्रेस के प्रत्येक असंतुष्ट समर्थक और नेता में भाजपा के संभावित कार्यकर्ता की संभावनाएं मौजूद हैं। उनके वे शब्द भविष्यवाणी के रूप में सच साबित हुए।
भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अन्य नेताओं से सहमति जताते हुए विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के नेता प्रवीण तोगड़िया ने पिछले दो वर्षो में ग्रामीण असम का दौरा किया।
गुवाहाटी में भाजपा के स्थानीय नेता दिपांकर दोवाराह ने आईएएनएस को बताया, “ठाकरेजी और सोनीजी दोनों ने नाहरकटिया, सारूपथर, बोरपथर, होजे और मारियानी सहित पूरे असम का दौरा किया।”
असम भाजपा के वरिष्ठ नेताओं राजेन गोहैन और रामेण डेका ने एक बार असम में पार्टी को चुनावी आधार की इच्छा जताई थी।
नागोन लोकसभा सीट से सांसद गोहैन ने बताया, “जब भी हमने असम में सरकार गठन के बारे में बात की, यहां तक कि संसद में भी। कांग्रेस और अन्य नेताओं ने कहा कि असम में भाजपा की जीत वहां भगवा महल का निर्माण करने जैसा है। आज हमने उन्हें गलत साबित कर दिया है।”
मंगलदेई से सांसद डेका बताते हैं, “लेकिन हमारे पास उम्मीदें थी। लोग भाजपा की विचारधारा और एक स्वच्छ प्रशासन को लेकर सजग थे। कांग्रेस और एजीपी के कार्यकालों की असफलताएं कई वर्षो से हमारी पार्टी के लिए आधार बन रही थी।”
डेका की बातों से सहमति जताते हुए आरएसएस के समाचार पत्र ‘द ऑर्गेनाइजर’ प्रफुल्ल केटकर कहते हैं, “असम में काफी लंबे समय से एक मजबूत और वैचारिक रूप से सक्षम पार्टी विपक्ष में रही है। एजीपी और पिछले 15 वर्षो में कांग्रेस की निष्फलता से लोग हताश हो गए थे।”
केटकर ने कहा कि पार्टी के कार्यकर्ताओं और बूथ स्तरीय प्रबंधन की टीम की बैठक पिछले कुछ समय में नहीं सकी है।
उन्होंने कहा, “यह एक लंबी प्रक्रिया है और सोनीजी और ठाकरेजी जैसे पूर्व दिग्गजों के अलावा वीएचपी और आरएसएस ने भी समय-समय पर काम किया है।”
गुवाहाटी में पेशे से चिकित्सक डी.र्तीथकर वर्ष 2000 में आरएसएस से जुड़े। वे केटकर की बातों से सहमति जताते हुए कहते हैं, “चिकित्सकों, शिक्षाविदों और इंजीनियरों..हम जैसे पेशेवर लोगों ने भाजपा के विकास के लिए आरएसएस में शामिल हो की शपथ ली थी। असम में जीत के लिए आरएसएस के इस रिकॉर्डतोड़ योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”
असम भाजपा इकाई के सूत्रों ने बताया कि इन चुनावों में आरएसएस और वीएचपी के लगभग 25,000 कार्यकर्ताओं ने सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभाई।
स्थानीय नेता दोवाराह ने कहा, “आरएसएस ने आंतरिक रूप से चार क्षेत्रों की स्थापना की और अपने कार्यकर्ताओं को बराक घाटी, ऊपरी असम, कुछ जनजातीय क्षेत्रों और मध्य असम में नियुक्ति की। और नतीजे आपके सामने हैं।”
आरएसएस के पूर्व नेता राम माधव और नितिन गडकरी जैसे आरएसएस के चहीते नेताओं ने पिछले दो वर्षो में भाजपा के सांसदों, भाजपा राज्यों के नेताओं और पूर्वोत्तर में आरएसएस शाखा प्रमुखों के साथ बैठकें कीं।
एक पार्टी नेता ने असम के नेताओं को मतदान केंद्रों पर तोड़फोड़ के प्रयासों के खिलाफ चेताते हुए कहा, “2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के दिग्गज नेता कबिंद्रा पुरकायस्थ की हार पर आरएसएस और भाजपा नेतृत्व को यकीन नहीं हुआ।
भाजपा 1970 के दशक में असम में पहले ही पैर रखने की जगह बना चुकी थी। इसके बावजूद न ही बराक घाटी, करीमगंज और सिल्चर की संसदीय सीटें 2014 में भाजपा की झोली में आई।
वर्ष 2014 से ही कुछ बदलाव आया है।
असम में दो दशक पूर्व डाली गई नींव पर पूर्ण विश्लेषण के साथ अच्छे टीम वर्क की बदौलत 2016 में भाजपा असम में अपना झंडा फहराने में कामयाब रही।