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खुद को हमेशा सबसे महत्वपूर्ण समझें: सुधांशु जी महाराज

sudhanshuji-maharajदूर दृष्टि से बनता है सकारात्मक दृष्टिकोण। संसार एक विशाल समुद्र है, उस विशाल समुद्र के बीच आपकी स्थिति क्या है? हमें लगता है हमारी गणना नहीं होती, मगर ऐसा नहीं है। सूर्य एक-एक किरण से है, रेशों से रस्सी है, बूंद-बूंद से समुद्र है, कोशिकाओं से शरीर बनता है, ऐसे ही एक-एक व्यक्ति से संसार बनता है।

आपके बिना यह सृष्टि अधूरी है। जैसे बत्तीस दांतों का पूरे मुख में महत्व है, दांत टूट कर गिर गया तो वहां की शोभा तो बिगाड़ ही देगा, मगर जहां जाएगा वहां की शोभा भी नहीं बनेगा। बातों की शोभा अपनी जगह है। तिनको को जोड़कर झाड़ू बना लिया जाए तो उससे कूड़ा साफ होता है, लेकिन टूट कर गिर जाए तो कूड़ा हैं।

शरीर के अन्दर बहता खून जिन्दगी है, बाहर निकाला जाए तो सूख जाएगा। नाखून जब तक लगे हैं उनकी शोभा है। हम जहां है संसार की शोभा हैं। आने वाले समय पर एक दृष्टि रखें। दूर तक देखने की आपकी शक्ति कितनी है, उसी के अनुसार मस्तिष्क गणना करता है। देखना मेरी गणना में कहां गलती है। अगर आपकी सोच में गलती हो, परिणाम गलत निकले, तो उससे शिक्षा अवश्य लें। योजनाएं फलीभूत होती हैं, तब जब व्यक्ति समाधन के लिए पहले योजना बनाते हैं, इसको भविष्य दृष्टि कहते हैं।

यह अपने मस्तिष्क में छिपी तीसरी आंख का इस्तेमाल करना है। यह शक्ति शरीर में नहीं मस्तिष्क में है। नेपोलियन फ्रांस को नया रूप देने वाला व्यक्ति था, उसके पास दूर दृष्टि थी, मस्तिष्क ठीक सोचता था, तभी सफल हुआ। जितना डर-भय-शंका अन्दर पैदा करोगे, उतनी बुद्घि ठीक से काम नहीं करेगी। इसलिए तीसरी आंख के लिए ध्यान एकाग्र करना सीखें लक्ष्य पर, फिर इसका आनन्द देखना, नई-नई सूझ आएगी। दुनिया में सब कुछ है, लेकिन सबको दिखाई नहीं देता। जिसने मन को एकाग्र करके जहां टिकाया, प्रकृति अपने रहस्य वहां खोलती है।

भविष्य दृष्टि जागृत करने के लिए एकाग्रता जरूरी है। ध्यान केन्द्रित करने से शक्तियां जागृत होती हैं, यह साधरण नहीं अद्भुत शक्ति है। एकाग्रता के साथ दूसरी चीज है, रूचि पैदा करना। नापसन्द वाली चीज को भी पसन्द वाली बनाया जा सकता है और पसन्द वाली चीज को भी नापसन्द बनाया जा सकता है।

जहां आपका मन केन्द्रित होगा, मन पूरी ताकत वहां लगा देगा। कोई काम आप मजबूरी में कर रहे हों तो काम पूरा हो नहीं सकता। पसन्द जहां आपकी है वहां अलग रस बनता है काम को रस पूर्ण करना, इसे दृष्टि क्षमता कहा गया है।

आप चाहते हैं मस्तिष्क केन्द्रित हो तब वह आसानी से नहीं होता, क्योंकि मन भटकता रहता है इससे मनुष्य की शक्तियां बिखरी रहती हैं। दूर-दृष्टि वाली शक्ति तब काम कर पाएगी, जब आपके अन्दर चंचलता कम होगी। रूचि, रस लेना, एकाग्रता, चंचलता का अभाव, नियमित होना, पहले से योजना बना कर चलना, अनुशासन पूरा रखना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके बाद अंदर की क्षमताएं, पहचानिए।

आपके अंदर साहस है, कोई शाबासी दे तो साहस की शक्ति बढ़ जाती है, कोई हिम्मत तोडे़, निराश करे तो व्यक्ति का साहस कम होगा। इसलिए व्यक्ति के साहस को बढ़ाया जाना चाहिए इससे वह ऐसा� काम कर सकता है, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती।

खुद को हमेशा सबसे महत्वपूर्ण समझें: सुधांशु जी महाराज Reviewed by on . दूर दृष्टि से बनता है सकारात्मक दृष्टिकोण। संसार एक विशाल समुद्र है, उस विशाल समुद्र के बीच आपकी स्थिति क्या है? हमें लगता है हमारी गणना नहीं होती, मगर ऐसा नहीं दूर दृष्टि से बनता है सकारात्मक दृष्टिकोण। संसार एक विशाल समुद्र है, उस विशाल समुद्र के बीच आपकी स्थिति क्या है? हमें लगता है हमारी गणना नहीं होती, मगर ऐसा नहीं Rating:
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