Sunday , 19 May 2024

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‘महिलाओं, उन पांच दिनों को अपनाने का यही सही समय’ (अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष)

मैं एक दिन दिल्ली में गर्मी के उमस भरे मौसम में स्कूल से आने के बाद दोपहर बाद कमरे में बंद थी और अपने भाग्य को कोस रही थी कि मैंने लड़की के रूप में जन्म लिया है। तब मैं चौदह साल की थी और नौवीं कक्षा में पढ़ती थी। तब मेरा मासिक धर्म शुरू ही हुआ था। इत्तेफाक से तभी ‘वे शुरू के दो दिन’ ऐसे में पड़े जब मुझे वार्षिक लीडरशिप ट्रेनिंग कैंप (एलटीसी) में जाना था जिसमें स्कूल की सभी कक्षाओं के मॉनिटर भाग ले सकते थे।

मैं एक दिन दिल्ली में गर्मी के उमस भरे मौसम में स्कूल से आने के बाद दोपहर बाद कमरे में बंद थी और अपने भाग्य को कोस रही थी कि मैंने लड़की के रूप में जन्म लिया है। तब मैं चौदह साल की थी और नौवीं कक्षा में पढ़ती थी। तब मेरा मासिक धर्म शुरू ही हुआ था। इत्तेफाक से तभी ‘वे शुरू के दो दिन’ ऐसे में पड़े जब मुझे वार्षिक लीडरशिप ट्रेनिंग कैंप (एलटीसी) में जाना था जिसमें स्कूल की सभी कक्षाओं के मॉनिटर भाग ले सकते थे।

एलटीसी एक प्रतिष्ठित कैंप था। उसमें केवल हर कक्षा से चुने गए प्रतिनिधि और दो मनोनीत विद्यार्थियों को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। उसमें कई खेलों के अलावा शिक्षकों और अतिथियों के व्याख्यान होने थे। मैं कुछ सालों से इसमें भाग लेने की उम्मीद कर रही थी और उस साल अंतत: मैं कक्षा की एक निर्वाचित मॉनिटर थी।

मैं तब उसमें भाग लेने को लेकर उत्साहित थी और स्कूल के बरामदे से जा रही थी। अचानक, वह धब्बा स्पष्ट नजर आने लगा और मेरा सारा उत्साह ठंडा पड़ गया। मैंने दुखी होकर दोपहर बाद का समय घर में बिताया। शाम को मेरे पापा घर लौटे। (तब मेरी मां न्यूयॉर्क में पीएचडी कर रही थीं। इसलिए मेरे और पापा के बीच जरूरत की वजह से मासिक धर्म को लेकर अच्छी समझ विकसित हो गई थी!)।

उन्होंने मेरे लटके हुए मुंह को देखकर पूछा तो मैंने उन्हें बता दिया कि मुझे अगले दिन और उसके एक दिन बाद होने वाले एलटीसी को छोड़ना पड़ेगा।

उन्होंने पूछा, “क्यों”?

मैंने कहा, “क्योंकि कल से मेरा मासिक धर्म शुरू हो रहा है। “

उन्होंने कहा, “तो? इससे क्या हुआ? “

मैंने कहा, “इसलिए मैं नहीं जा सकती।”

उन्होंने फिर पूछा, “क्यों?”

मैंने कहा, “क्योंकि वे मेरे शुरुआती दो दिन होंगे।”

उन्होंने फिर कहा, “तो? इससे क्या?”

मैंने सीधा जवाब दिया, “मैं अपनी उस हालत में कठिन काम नहीं कर सकती। मैं दौड़-दौड़कर खेल नहीं सकती।”

मेरे पापा ने पूछना जारी रखा, “इसका मतलब है कि तुम कहना चाहती हो कि ऐसे समय में तुम शारीरिक और चिकित्सकीय वजहों से शारीरिक गतिविधियों के लिए सक्षम नहीं हो?”

मैंने कहा, “हे भगवान, पापा आप समझते क्यों नहीं? यह चिढ़ पैदा करने वाला और तकलीफदेह है। यदि ‘कुछ हो जाएगा’ तो क्या होगा? “(यह एक ऐसी दहशत होती है जो सभी लड़कियों और महिलाओं को अपने में जकड़े रहती है)।

पापा ने सोचते हुए कहा, “अच्छा। इसका मतलब है कि तुम सिर्फ ‘कुछ हो जाएगा’ के इस डर से कल का कार्यक्रम छोड़ रही हो। अगले माह इस अवधि में फिर कोई काम आएगा तो उसे भी छोड़ोगी। अभी तुम 14 साल की हो। संभवत: अगले 30 साल तक तुम्हें मासिक धर्म आएगा। इस दो दिन के हिसाब से गणना करो तो करीब 720 दिन, 17280 घंटे तुम्हें छोड़ने होंगे। वह भी सिर्फ इस डर से कि ‘कुछ हो जाएगा’।”

मैं निरुत्तर हो गई।

पापा ने कहना जारी रखा, “देखो, तुम्हारी मां इन बातों को बेहतर तरीके से समझा सकती है। मैं एक पुरुष हूं और मुझे यह थोड़ा हास्यास्पद लग रहा है कि एक प्राकृतिक बात की वजह से मैं इतने घंटे बर्बाद कर दूं। एक ऐसी बात जो दुनिया की आधी आबादी के जीवन में हर महीने किसी न किसी समय सामने आती है।”

उन्होंने कहा, “यह तुम्हारे शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया है। इससे नफरत करने या इससे डरने की जगह, इसे स्वीकार करो। इन दो दिनों या पांच दिनों को भी तुम महीने के सामान्य दिनों की तरह लो। “

मैंने पापा से 150 रुपये लिए। मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल करने के लिए पैड खरीदे। तब से अब तक मैं पापा की उस सीख पर अमल कर रही हूं। शुक्रिया पापा, आपने उस दिन अपनी बेटी को एक मूल्यवान सीख दी-अपने शरीर को अपनाने की सीख। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और हमें इन पांच दिनों को इसी रूप में लेना चाहिए।

(स्वरा भास्कर हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री हैं।)

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