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 सामाजिक संगठनों के सहयोग से जल नीति बने : मेधा पाटकर | dharmpath.com

Tuesday , 17 June 2025

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सामाजिक संगठनों के सहयोग से जल नीति बने : मेधा पाटकर

भोपाल, 26 मई (आईएएनएस)। नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर ने देश में गहराते सूखा संकट के लिए केंद्र सरकार की जल नीति को जिम्मेदार ठहराया है और सामाजिक संगठनों के सहयोग से नई जल नीति बनाने की वकालत की है।

जल-हल यात्रा में शामिल मेधा पाटकर ने गुरुवार को संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा कि सरकार की नीतियों के कारण जल स्रोत समाप्त हो रहे हैं और तालाब आदि तक पहुंचने वाले पानी के रास्ते खत्म हो रहे हैं, जिसके चलते सूखे के हालात बने हैं।

उन्होंने कहा कि उनका नारा ‘गांव का पानी गांव में’ है, क्योंकि ऐसा होने पर सूखे जैसी समस्या पैदा ही नहीं होगी। गहराते सूखा संकट से निपटने का रास्ता है गांव का पानी गांव में ही रहे, अर्थात् पानी का संरक्षण, संवर्धन किया जाए। जल स्रोतों को दुरूस्त किया जाए।

उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा सिंहस्थ कुंभ के लिए नर्मदा नदी के पानी से क्षिप्रा नदी को प्रवाहमान बनाने की मंशा पर सवाल खड़े किए। उनका आरोप है कि सिंहस्थ खत्म होते ही क्षिप्रा नदी में फिर खान नदी का गंदा पानी मिलने लगा है। इससे क्षिप्रा गंदी हो रही है। सरकार ने सिंहस्थ में क्षिप्रा के जल में स्नान कराने का ढिंढोरा पीटा, मगर वास्तव में लोगों ने स्नान तो नर्मदा के जल में किया है ।

उन्होंने कहा कि नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना के नाम पर नर्मदा से प्रति दिन 172 करोड़ लीटर पानी खींचा जा रहा है, जो नर्मदा के भविष्य को खतरे में डालने वाला है।

मेधा ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह किसानों का बीमा अनिवार्य करके कंपनियों को लाभ पहुंचाना चाहती हैं। अब तक का अनुभव यही है कि किसानों को प्रीमियम में जितनी राशि देना पड़ती है, उतना तो उन्हें मुआवजा भी नहीं मिलता।

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