Tuesday , 7 May 2024

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मानसिक रोगों से मुक्ति दिलाते बाबा बड़भाग सिंह जी

Sarabhangaगोंदपुर बनेहड़ा। उत्तर भारत का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल डेरा बाबा बड़भाग सिंह जी की तपस्थली मैड़ी ऊना जिला मुख्यालय से 42 किलामीटर दूर तथा तलवाड़ा (पंजाब) से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इसकी गणना उत्तर भारत के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों के में होती है।

यह पवित्र स्थान सोढी संत बाबा बड़भाग सिंह (1716-1762) की तपोस्थली है। 300 वर्ष पूर्व बाबा राम सिंह के सुपुत्र संत बाबा बड़भाग सिंह करतारपुर (पंजाब) से आकर यहां बसे थे। कहा जाता है कि अहमद शाह अब्दाली के तेहरवें हमले से क्षुब्ध होकर बाबा जी को मजबूरन करतारपुर छोड़कर पहाड़ों की ओर आना पड़ा था। जब बाबा जी दर्शनी खड्ड के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि अब्दाली की अफ गान फ ौजें उनका पीछा करते हुए उनके काफ नजदीक आ गई हैं। इस पर बाबा जी ने आध्यात्मिक शक्ति से खड्ड में जबरदस्त बाढ़ ला दी और अफ गान फ ौज के अधिकतर सिपाही इसमें बह गए, जो बचे वे हार मानकर वापस लौट गए। उसके बाद बाबा जी एक स्थान पर तपस्या में लीन हो गए। कहा जाता है कि उस समय इस स्थान पर कोई बस्ती नहीं थी। एक प्रेत आत्मा का पूरे क्षेत्र में आतंक था। कोई भी इस क्षेत्र में प्रवेश करता तो उसे प्रेत आत्मा अपने कब्जे में कर लेती थी। और उस व्यक्ति को तरह-तरह की यातनाएं दिया करती थी। इस प्रेत आत्मा ने इलाके में कई लोगों को पागल, मानसिक रूप से बीमार, कर अपने वश में कर लिया था। जब बाबा जी तपस्या में लीन बैठे थे तो इस प्रेत आत्मा ने उन्हें भी अपने वश में करने के लिए यत्‍‌न करने शुरू कर दिए। लेकिन उसे सफ लता नहीं मिल पाई। प्रेत आत्मा द्वारा बार-बार बाबा जी की तपस्या को भंग व अवरुद्ध करने के परिणामस्वरूप बाबा जी व प्रेत आत्मा में जोरदार लड़ाई शुरू हो गई। इस भंयकर लड़ाई में बाबा जी ने प्रेत आत्मा को अपनी आध्यात्मिक शक्ति के बल पर चित कर दिया। इस आत्मा को पिंजरे में कैद करके कील दिया। बाबा जी ने प्रेत आत्मा को वश में कर उससे दीन दुखियों की मदद करने को कहा। किवदंती के अनुसार बाबा जी ने इसे प्रेत आत्माओं से ग्रस्त लोगों का इलाज करने का आदेश दिया और वे स्वयं फिर से तपस्या में लीन हो गए। यह भी कहा जाता है कि बाबा जी अपने शरीर को धरती पर छोड़ कर अपनी आत्मा को स्वर्ग लोक में विचरने (घूमने) के लिए भेज देते थे। कुछ समय बाद आत्मा शरीर में पुन: प्रवेश कर जाती थी। एक दफा बाबा जी शरीर छोड़कर चले गए, लेकिन जब वे वापस आए तो परिजनों ने उनके शरीर को मृत मानकर समाप्त कर दिया। आत्मा वापस लौट गई, लेकिन बाबा जी की धर्मपत्‍‌नी को इसका वियोग हुआ और बाबा जी की आत्मा ने उन्हें रोज मिलने का वादा किया। जो शर्त निर्धारित की उसके तहत बाबा जी कुछ पलों के लिए अपनी पत्‍‌नी के पास पहुंचते थे, लेकिन पत्‍‌नी ने जब बाबा जी को अधिक समय अपने पास रखने के लिए शर्त को तोड़ दिया तो बाबा नाराज होकर कभी न आने का वादा करके चले गए। पत्‍‌नी की हालत दयनीय देखकर बाबा ने अपनी पत्‍‌नी को वचन दिया कि वे होली के रोज मैड़ी में आया करेंगे और दीन दुखियों की सेवा किया करेंगे। यह सिलसिला अभी तक जारी है। जिस स्थान पर बाबा बड़भाग सिंह जी की तपस्थली स्थित है वहां एक हरा भरा बेरी का पेड़ दूर दराज से आने वाली लाखों की संख्या में आकर नतमस्तक होने वाली संगतों की आस्था का केंद्र है। हर वर्ष की तरह इस बार भी होला मोहल्ला का 10 दिवसीय मेला 20 मार्च से शुरू होने जा रहा है। इसको लेकर जिला तथा उपमंडलीय प्रशासन द्वारा जोर शोर से व्यापक प्रबन्ध किए गए हैं। समूचे उत्तर भारत पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से व देश के अन्य भागों से लाखों की संख्या में संगतें बाबा बड़भाग सिंह के दरबार में आकर मन्नतें मांगने तथा भूत प्रेत से छुटकारा पाने के लिए यहां आते है। यहां आने वाले मानसिक रोगी टोलियों में बैठ जाते हैं और फिर उनका इलाज किया जाता है। जो लोग प्रेत आत्माओं को निकालने का काम करते हैं उन्हें मसंद कहा जाता है, जब कि भूत प्रेत आत्माओं से ग्रस्त को डोली कहा जाता है। यह मसंद टोलियों में बैठे रोगियों को दुष्ट आत्माओं से मुक्ति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बाद में व्यक्ति को पवित्र चरण गंगा में स्नान करवाते हैं। ऐसा विश्वास है कि मैड़ी स्थल पर शरीर से भूत प्रेत आत्माएं निकल जाने के बाद कभी भी शरीर में दोबारा प्रवेश नहीं करती हैं। समय के साथ मैड़ी में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की बढ़ती तादाद इस पावन स्थली के प्रति उनकी बढ़ती आस्था की परिचायक कही जा सकती है।

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