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 दिल्ली-बिहार के झंझावात बीच मोदी रहे अडिग (सिंहावलोकन-2015) | dharmpath.com

Tuesday , 10 June 2025

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दिल्ली-बिहार के झंझावात बीच मोदी रहे अडिग (सिंहावलोकन-2015)

नई दिल्ली, 28 दिसंबर (आईएएनएस)। बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले साल की बड़ी राजनैतिक घटनाओं में आम आदमी पार्टी का चमत्कारिक उभार और बिहार में नीतीश कुमार-लालू यादव की वापसी का स्थान काफी ऊपर है। विश्लेषकों का कहना है कि गुजरते साल 2015 में इन घटनाओं के बीच भी नरेंद्र मोदी के कदम मजबूती से बढ़ते रहे लेकिन यह जरूर हुआ कि उनके पहले वाले जादू में कमी आती देखी गई।

नई दिल्ली, 28 दिसंबर (आईएएनएस)। बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले साल की बड़ी राजनैतिक घटनाओं में आम आदमी पार्टी का चमत्कारिक उभार और बिहार में नीतीश कुमार-लालू यादव की वापसी का स्थान काफी ऊपर है। विश्लेषकों का कहना है कि गुजरते साल 2015 में इन घटनाओं के बीच भी नरेंद्र मोदी के कदम मजबूती से बढ़ते रहे लेकिन यह जरूर हुआ कि उनके पहले वाले जादू में कमी आती देखी गई।

आम चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत, फिर महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू एवं कश्मीर के चुनावों में जीत के साथ मोदी ने अपने राजनैतिक जीवन के शिखर को छुआ। लेकिन, फरवरी में उन्हें अपने राजनैतिक करियर की पहली जबरदस्त हार दिल्ली में मिली।

दिल्ली की हार एक तरह से मोदी की निजी हार थी। आम आदमी पार्टी (आप) ने भारतीय जनता पार्टी (भजपा) को धूल में मिला दिया और यह काम पार्टी ने उन्हीं अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में किया, जिन्हें मोदी ने वाराणसी में मई 2014 के लोकसभा चुनाव में धूल चटाई थी।

नौ महीने बाद मोदी को दूसरा बेहद तगड़ा झटका, जो कि पहले वाले की तुलना में अधिक गंभीर था, बिहार में लगा। मोदी ने निजी तौर पर बिहार में जान लगा दी थी, लेकिन भाजपा को जद-यू नेता नीतीश कुमार और राजद नेता लालू यादव की जोड़ी ने जोरदार पटखनी दे दी।

दिल्ली में भाजपा को 70 में से सिर्फ 3 और बिहार में 243 में से सिर्फ 53 सीटें मिलीं।

केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी इसके बाद उपचुनाव में मध्य प्रदेश की झाबुआ-रतलाम संसदीय सीट गंवा बैठी। यह सीट पर कांग्रेस की झोली में चली गई।

मोदी को मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस से भी तगड़ी चुनौती मिली। 2014 के आम चुनाव में बुरी तरह हार का मुंह देखने वाली कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए सरकार पर एक के बाद दूसरे हमले किए। व्यापम घोटाले में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और आईपीएल घोटाले के आरोपी ललित मोदी की कथित मदद के मामले में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ पार्टी काफी मुखर रही।

चुनावी मोर्चे पर कांग्रेस को केवल बिहार में उल्लेखनीय सफलता मिली। लेकिन, बिहार में वह जद-यू और राजद की जूनियर पार्टनर ही थी।

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी 2015 में एक नए अवतार में दिखे। किसी को नहीं पता कि उन्होंने 50 दिन की छुट्टी कहां बिताई, लेकिन जब वह लौटे तो उनका अंदाज-ए-बयां ही कुछ और था। वह भी ऐसा कि केंद्र की भाजपा सरकार को भूमि अधिग्रहण विधेयक पर अपने कदम पीछे खींचने को विवश होना पड़ा। कांग्रेस ने इसका जश्न ‘किसान विजय’ के रूप में मनाया।

संसद में भी कांग्रेस ने ‘असहिष्णुता’, दिल्ली क्रिकेट में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर काफी हंगामा किया।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दादरी के एक गांव में गोमांस खाने की अफवाह पर एक मुस्लिम की हत्या और कुछ अन्य लेखकों-तर्कशास्त्रियों की हत्या के खिलाफ कई लेखकों-कलाकारों ने असहिष्णुता का मुद्दा उठाते हुए खुद को मिले पुरस्कार लौटा दिए। इससे भाजपा सरकार की काफी किरकिरी हुई।

भाजपा को कई झटके लगे। लेकिन, इसका असर नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर नहीं पड़ा। उन्होंने कई देशों की यात्राएं कीं। साल 2015 की उनकी आखिरी विदेश यात्रा पाकिस्तान की रही, जिसके लिए उनकी कुछ ने प्रशंसा की तो शिवसेना सहित कई पार्टियों ने आलोचना की।

इसी साल भाजपा देश के एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य जम्मू एवं कश्मीर की सत्ता में पहली बार आई। वह पीडीपी की कनिष्ठ सहयोगी की भूमिका निभा रही है।

लेकिन, भाजपा को मोदी के गृह राज्य गुजरात में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पटेलों को आरक्षण देने के आंदोलन का सामना करना पड़ा। हार्दिक पर देशद्रोह का आरोप लगा। भाजपा को स्थानीय निकाय चुनाव में तगड़े झटके लगे।

विपक्ष के विरोध के बीच वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक को संसद में पास नहीं कराया जा सका।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की शिकायत पर नेशनल हेराल्ड अखबार मामले में अदालत में हाजिर होना पड़ा। वित्तीय अनियमितता से जुड़ा यह मामला अभी अदालत में लंबित है।

भाजपा के लिए कुछ और अच्छी खबरें भी आईं। पार्टी ने केरल में स्थानीय निकाय चुनाव में पहली बार अच्छा प्रदर्शन किया। मणिपुर में विधानसभा की दो सीटें जीतीं।

आय से अधिक संपत्ति मामले में अदालत से बरी होने के बाद जयललिता का दोबारा तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बनना भी साल की बड़ी घटनाओं में शामिल रहा।

साल 2015 का अंत भी राजनैतिक धूमधड़ाके से हुआ।

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रधान सचिव के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में दिल्ली सचिवालय पर छापा मारा। केजरीवाल ने आरोप लगाया कि उनके दफ्तर पर छापा मारा गया। उनका कहना था कि इस छापे में वह फाइल खोजी गई जिसका संबंध केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली के अध्यक्ष रहने के दौरान दिल्ली जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) में अनियमितता से था।

सीबीआई ने इस आरोप को गलत बताया। नाराज जेटली ने केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के कुछ अन्य नेताओं के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया। डीडीसीए में कथित भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाकर जेटली को कठघरे में खड़ा करने वाले बिहार के दरभंगा से सांसद कीर्ति आजाद को भाजपा ने निलंबित कर दिया। उनके निलंबन से पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल बुजुर्ग नेताओं सहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी नाखुश है। ये नेता पहले भी बिहार की हार पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह पर परोक्ष रूप से सवाल उठा चुके हैं।

उधर बिहार में कीर्ति आजाद के समर्थक जगह-जगह जेटली और अमित शाह के पुतले फूंककर आजाद की भाजपा से आजादी का विरोध कर रहे हैं।

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