आरटीआई कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि भाई-भतीजावाद में लिप्त सरकारों द्वारा सत्ता के चापलूसों को इस ‘हाथ ले और इस हाथ दे’ के लिए आयुक्त बनाया जा रहा है। आयोगों द्वारा अपनी अक्षमता छुपाने के लिए लंबित मामलों और आयोगों के आदेशों को जारी ही नहीं किया जा रहा है। सूचना आयोगों में मानवाधिकारों का जमकर हनन किया जा रहा है। सूचना आयुक्तों को जनता के साथ रहकर गुण-दोष के आधार पर सरकार के खिलाफ लड़ना है पर आयुक्त आंख बंद करके सरकार के साथ होकर जनता से ही लड़ रहे हैं।
आंकड़ों पर बोलते हुए वक्ताओं ने कहा कि केंद्रीय विभागों से मांगी गयी आरटीआई में 07 प्रतिशत मामले आयोग जा रहे हैं। राज्यों में यह संख्या अधिक है सूचना आयोगों में लंबित मामले दो लाख से अधिक हैं, जिनमें से 25 प्रतिशत अकेले उत्तर प्रदेश से हैं। दो प्रतिशत से भी कम मामलों में दंड और एक प्रतिशत से भी कम मामलों में मुआवजा दिलाया जा रहा है जबकि आधे से अधिक मामले दंड लगाने के पात्र होते हैं।
अधिकांश वक्ताओं ने सूचना आयोगों में सिटीजन चार्टर लागू कर सूचना आयुक्तों के कार्यो एवं आचरण के मानक निर्धारित करने की मांग की और कहा कि आयोगों में मामलों के पंजीकरण और निस्तारण के लिए समय सीमा निर्धारित की जाए।