रायपुर, 24 जून (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ का संबंध श्रीराम के ननिहाल, उनके वनगमन का मार्ग होने की लगभग पुष्टि हो चुकी है। वहीं छग का संबंध महाभारत काल से भी जोड़ा जाता है। मनिहारी नदी में कर्ण और अर्जुन की मूर्ति भी मिल चुकी है। इधर, राजिम के पास उत्खनन से केशी-वध प्रसंग की मूर्ति मिली है। केशी, कंस का अंतिम योद्धा था, उसे कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए भेजा था।
रायपुर, 24 जून (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ का संबंध श्रीराम के ननिहाल, उनके वनगमन का मार्ग होने की लगभग पुष्टि हो चुकी है। वहीं छग का संबंध महाभारत काल से भी जोड़ा जाता है। मनिहारी नदी में कर्ण और अर्जुन की मूर्ति भी मिल चुकी है। इधर, राजिम के पास उत्खनन से केशी-वध प्रसंग की मूर्ति मिली है। केशी, कंस का अंतिम योद्धा था, उसे कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए भेजा था।
छत्तीसगढ़ के प्रयागराज राजिम के सीताबाड़ी में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई का कार्य इन दिनों जारी है। खुदाई में पुरातात्विक महत्व की ²ष्टि से महत्वपूर्ण प्रमाण लगातार मिल रहे हैं। इसके तहत कंस के अंतिम योद्धा केशी-वध प्रसंग की मूर्ति भी मिली। यह मूर्ति छत्तीसगढ़ में अत्यंत दुर्लभ है।
पुरातत्वविद् डॉ. अरुण शर्मा का कहना है कि ऐसी मूर्तियां पूरे छत्तीसगढ़ में संभवत: एक या दो ही उपलब्ध हैं। खुदाई में पंचमुखी नागराज और बच्चा गोद में लिए महिला की मूर्ति भी मिली है।
उन्होंने बताया कि खुदाई में कृष्ण की केशी-वध की प्रतिमा मिली है। प्रतिमा दो फीट ऊंची, डेढ़ फीट चौड़ी है। प्रतिमा के एक हाथ में शंख है, वहीं अलंकरण और केश विन्यास से पता चलता है कि यह विष्णु अवतार की प्रतिमा है।
डॉ. शर्मा ने बताया कि प्रतिमा का सिर नहीं है, लेकिन घोड़ा के मुंह में उनकी हथेली है, जिससे पता चलता है यह केशी-वध की कहानी है। उन्होंने बताया कि सातवाहन काल मंदिर के पहले राजिम में एक विशाल पत्थरों से निर्मित चूने की जोड़ाई वाले मौर्यकालीन मंदिर के अवशेष मिले थे। पश्चिममुखी यह मंदिर भगवान विष्णु का था।
उन्होंने केशी-वध के प्रसंग के बारे में बताया कि श्रीकृष्ण को मारने कंस ने अपने कई योद्धाओं को भेजा था, जिन्हें श्री कृष्ण ने मार दिया था। तब कंस ने अपने अंतिम योद्धा केशी को श्री कृष्ण को मारने वृंदावन भेजा था। केशी काले रंग के घोड़े का रूप धरकर उत्पात मचाने लगा। तब श्रीकृष्ण ने उसे युद्ध के लिए ललकारा। उसी दौरान कृष्ण ने अपने बाएं हाथ की हथेली उसके मुंह में ठूंस दी और हाथ का विस्तार किया, जिससे केशी की मौत हो गई।
डॉ. शर्मा का कहना है कि प्रतिमा में गले में माला धारण किए कृष्ण हैं। उनके हाथ में कड़ा और लट घुंघराले हैं। प्रतिमा में साफ दिखाई दे रहा है कि घोड़े की आंखें बाहर निकली हुई हैं। ऐसी प्रतिमाएं छग में दुर्लभ ही हैं।
उन्होंने बताया कि संभवत: यह प्रतिमा 2500 वर्ष पहले की है। मूर्तिकार की कल्पना देखकर सहज की अंदाजा लगाया जा सकता है कि मूर्तिकार को केशी-वध की कहानी ज्ञात थी, साथ ढाई हजार साल पहले भी उत्कृष्ट कलाकार थे।
गौरतलब है कि इन दिनों छत्तीसगढ़ के प्रयागराज राजिम के सीताबाड़ी में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई की जा रही है। इससे पहले भी यहां खुदाई में ढाई हजार साल पहले की सभ्यता मिल चुकी है। इसके अलावा सिंधुकालीन सभ्यता की तर्ज पर ही निर्मित ईंटें भी मिल चुकी हैं। वहीं यहां एक कुंड भी मिला है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसमें स्नान करने से कोढ़ और चर्म रोग दूर हो जाता है।