नई दिल्ली, 16 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जबाव मांगा है, जिसमें जनप्रतिनिधित्व कानून के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। ये प्रावधान किसी भी व्यक्ति को दोषी करार दिए जाने के छह साल बाद चुनाव लड़ने की इजाजत देते हैं।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की खंडपीठ ने विधि और न्याय मंत्रालय और संसदीय कार्य मंत्रालय से अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें कहा गया है कि दोषी व्यक्तियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा आठ और नौ को असंवैधानिक घोषित कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि इनके कारण दोषियों पर केवल छह साल के लिए ही प्रतिबंध लगता है।
याचिका में कहा गया है कि दोषियों के लिए अयोग्यता के नियम कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका पर अलग-अलग नहीं हो सकते।
कार्यपालिका और न्यायपालिका में, जब भी कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है, वह स्वत: ही निलंबित हो जाता है और उसकी सेवाएं जीवन भर के लिए समाप्त हो जाती हैं।
याचिका में कहा गया है कि हालांकि विधायिका में दोषी व्यक्ति पर यह नियम अलग ढंग से लागू किया जाता है।
उपाध्याय ने कहा कि यहां तक कि कोई व्यक्ति दोषी करार दिए जाने के बाद और सजा काटने के दौरान भी पार्टी बना सकता है, किसी राजनीतिक दल का पदाधिकारी बन सकता है, चुनाव लड़ सकता है और दोषसिद्धि की तारीख से छह वर्ष पूरे होने के बाद विधायिका का सदस्य बन सकता है।
याचिका में सवाल उठाया गया है कि दोषी व्यक्ति के चुनाव लड़ने, राजनीतिक दल गठित करने और किसी राजनीतिक दल का पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए।
याचिका में चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता और अधिकतम उम्र तय किए जाने पर निर्देश की मांग भी की गई है।