भोपाल, 2 दिसम्बर (आईएएनएस)| जेहरा (10) मां का सहारा लेकर किसी तरह चल लेती है, बोल बिल्कुल नहीं सकती। उसकी मासूम खिल-खिलाहट, अल्हड़पन हर किसी का ध्यान खींचती है। ऐसे हजारों बच्चे हैं मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की उन बस्तियों में, जहां अब से 31 वर्ष पहले हुए गैस हादसे के प्रभावित परिवारों का बसेरा है। लाचार बचपन को संवारने की कोशिश दो महिलाओं को पुरस्कार में मिली राशि से शुरू चिंगारी ट्रस्ट द्वारा की जा रही है।
भोपाल में अब से 31 वर्ष पूर्व यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी जहरीली मिथाइल आइसो सायनाइड (मिक) ने दो-तीन दिसंबर की दरम्यानी रात मौत का खेल खेला था। रात भर में तीन हजार से ज्यादा लोग मौत की नींद सो गए थे, लाखों लोगों को तिल-तिल कर मारने वाली बीमारियां मिलीं हैं।
गैस पीड़ितों की तीसरी पीढ़ी तक जन्मजात विकलांग पैदा हो रही है। इस बात को गैस बस्तियों में जाकर देखा और समझा जा सकता है। ऐसी ही एक बालिका है जेहरा, जो जन्म से विकृत है। चल नहीं पाती, बोल भी नहीं पाती।
जेहरा की मां नुसरत जहां बताती हैं कि उनकी यह इकलौती बेटी है। तीन वर्ष पहले तक इसका बुरा हाल था, मगर बीते तीन वर्षों में चिंगारी ट्रस्ट के पुनर्वास केंद्र में हुई फिजियोथैरेपी व स्पीच थैरेपी ने जेहरा में काफी बदलाव लाया है। वह अपनी बेटी को खिलाड़ी बनाना चाहती हैं। सेहत में आ रहे बदलाव से उन्हें जेहरा को लेकर उम्मीद जगी है। जेहरा अब स्कूल जाने लगी है।
मुहम्मद असद भी गैस प्रभावित बस्ती में रहते हैं। उनकी बेटी आलिया 12 वर्ष की हो चुकी है। वह भी चल नहीं पाती है। उसे दिमागी बीमारी है, वह न बोल सकती है, न सुन सकती है।
असद बताते हैं कि तीन वर्ष पहले उनकी बेटी एक पोटली की तरह थी। शरीर का एक अंग भी ठीक से काम नहीं करता था। चिंगारी ट्रस्ट में आने से उनकी बेटी अब सहारा लेकर खड़ी हो जाती है। कभी-कभी चल भी लेती है, मगर गिर जाती है।
चिंगारी ट्रस्ट की स्थापना की भी अपनी कहानी है। रशीदा बी और चंपा देवी शुक्ला नामक दो महिलाओं ने इसे स्थापित किया है। दोनों महिलाएं गैस पीड़ितों के लिए काम करती हैं। उन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए वर्ष 2004 में संयुक्त रूप से अमेरिका में गोल्डमेन एन्वायरमेंट पुरस्कार मिला। इस पुरस्कार में एक लाख पच्चीस हजार डॉलर मिले थे।
चंपा बाई ने आईएएनएस को बताया कि उन्होंने और रशीदा ने तय किया कि पुरस्कार में मिली राशि गैस पीड़ितों के विकलांग बच्चांे के कल्याण में लगाएंगे। उन्होंने चिंगारी ट्रस्ट बनाया और विकलांग बच्चों के पुनर्वास का काम शुरू किया। विकलांगता को लेकर दोनों का दर्द था। चंपा बाई के बेटे की बेटी और रशीदा की बहन की बेटी जन्मजात विकलांग पैदा हुई थी।
वह बताती हैं कि वर्तमान में उनके यहां 784 बच्चे पंजीकृत हैं और उन्हें बीमारी के मुताबिक अलग-अलग वर्गों में बांट कर इलाज किया जाता है। उनके केंद्र में स्पीच थैरेपी, फिजियो थैरेपी, आक्यूपेशनल थैरेपी, स्पेशल एज्यूकेशन और मल्टी थैरेपी की सुविधाएं हैं। बच्चों को घर से लाने और छोड़ने के लिए वाहन हैं, बच्चों को मध्यान्ह भोजन दिया जाता है। इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है।
इस केंद्र के फिजियो थैरेपिस्ट संजय गौर ने कहा, “यहां शरीरिक, मानसिक रूप से विकृत बच्चे आते हैं। कई बच्चे तो ऐसे हैं जो गोद में आए थे। वर्षों की मेहनत बाद वे चलने-फिरने लगे हैं। यह बता पाना संभव नहीं है कि गैस पीड़ितों के कितने प्रतिशत बच्चे जन्मजात विकलांग पैदा हो रहे हैं, क्योंकि प्रभावित परिवार कुछ समय बाद ही अपना बसेरा बदल लेते हैं।”