नई दिल्ली, 3 सितंबर (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती है, जिसके लिए सामूहिक एवं समन्वित प्रयास की जरूरत है।
वातावरण के प्रति जागरूकता लाने और टकराव को दूर करने के विषय में एक सम्मेलन में धार्मिक नेताओं, विद्वानों और कई देशों के नेताओं की मौजूदगी में सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से दुनिया के गरीब लोग सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
मोदी ने कहा, “जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो गरीब लोग ही सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। जब बाढ़ आती है, गरीब लोग ही बेघर होते हैं, भूकंप में उनके मकान ही तबाह होते हैं और सूखे के दौरान भी वे ही प्रभावित होते हैं। अत्यधिक सर्दी के समय भी बेघर लोगों को ही सबसे ज्यादा तकलीफ होती है।”
“हम जलवायु परिवर्तन को इस प्रकार लोगों को प्रभावित करने नहीं दे सकते। इसलिए मैं चाहता हूं कि हमें ध्यान जलवायु परिवर्तन से हटा कर जलवायु इंसाफ पर केंद्रित करना चाहिए।”
बौद्ध धर्म के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा, “अपने संपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्वरूप में बौद्ध परंपरा ने प्रकृति के साथ तालमेल पर जोर दिया है, क्योंकि बौद्ध विचारधारा में किसी भी चीज का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है।”
प्रधानमंत्री ने कहा, “वातावरण को शुद्ध करने के लिए हमें मन को शुद्ध करना होगा।”
मोदी ने कहा कि पर्यावरणीय संकट मन के असंतुलन का प्रतिबिंब है। इसलिए भगवान बुद्ध ने प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के महत्व पर बल दिया, जल के संरक्षण से संबंधित उपाय किए और महंतों को जल के स्रोतों को दूषित करने से रोका।
भगवान बुद्ध की शिक्षा में प्रकृति, वन, पेड़ और सभी के कल्याण का बेहद महत्व है।
प्रधानमंत्री ने कहा, “व्यक्तिगत तौर पर वेद ग्रंथों के अध्ययन ने मुझे मनुष्य और प्रकृति के बीच घनिष्ठ संबध के बारे में शिक्षा दी। हम सभी महात्मा गांधी की सरपरस्ती के सिद्धांत से अवगत हैं।”
“इस विषय में वर्तमान पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि वह भविष्य की पीढ़ियों के लिए भरपूर प्राकृतिक संपदा के संरक्षक के तौर पर अपनी भूमिका निभाए।”
मोदी ने कहा, “टकराव रोकने के दोनों मुद्दों में से कोई भी, सही बातचीत के बिना न ही संभव है और न ही व्यावहारिक है।”