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 सचिन की पुस्तक में हुए खुलासे के पीछे की कहानी | dharmpath.com

Monday , 5 May 2025

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सचिन की पुस्तक में हुए खुलासे के पीछे की कहानी

indexनई दिल्ली, 4 नवंबर- भारत के लिए इतने लंबे समय तक खेलने के दौरान दिग्गज बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ने शायद ही कभी अन्य विषयों पर अपना मुंह खोला हो। सचिन हमेशा अपनी भावनाओं से ऊपर उठकर बोलते सुने गए।

सचिन को सिर्फ एक बार तब प्रतिक्रिया करते देखा गया, जब विश्व कप-2007 के दौरान ग्रेग चैपल ने उनका बल्लेबाजी क्रम बदलने की कोशिश की थी।

सचिन ने जब सलामी जोड़ी के रूप में उतरने की वजह बताने की कोशिश की तो कुछ लोगों ने उनके पक्ष को स्वार्थ के रूप में देखा और सचिन को लगा कि भारतीय टीम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

उस समय विश्व कप में भारतीय टीम दूसरे चरण में भी प्रवेश नहीं कर पाई थी। विश्व कप से लौटने के बाद सचिन और चैपल के बीच मनमुटाव खुलकर सामने आ गया और सचिन यह मामला बीसीसीआई तक लेकर गए।

ऐसा कई बार देखा गया है कि बीसीसीआई ने अपने सीनियर खिलाड़ियों का पक्ष लेते हुए कोचों को बाहर का रास्ता दिखाया है। कई बार तो सीनियर खिलाड़ियों ने टीम पर पड़ रहे खराब असर को देखते हुए कई साथी खिलाड़ियों को भी बाहर का रास्ता दिखाने में भूमिका निभाई है।

चैपल ने कुछ वर्ष पहले एक साक्षात्कार में हल्के मूड में सचिन को निचले क्रम पर बल्लेबाजी करने उतरने के लिए विवश करने के अपने निर्णय पर पछतावा व्यक्त किया था।

इसलिए सचिन के कथन को इतिहास के क्रम में देखा जाना चाहिए कि आखिर उस विश्व कप में वास्तव में हुआ क्या था।

चैपल ने कुछ तकनीकी आंकड़ों के आधार पर सचिन को राहुल द्रविड़ की जगह कप्तान पद संभालने का सुझाव दिया था। हालांकि चैपल का कहना है कि वह विश्व कप-2007 से करीब 12 महीने पहले सचिन के घर गए थे, न कि करीब एक महीना पहले।

तेंदुलकर ने जिस अंदाज में चैपल का बयान लिखा है, वह कुछ-कुछ मुंबई के दो सरगनाओं के बीच अपने-अपने अधिकार क्षेत्र को लेकर हो रही बातों की तरह है।

तेंदुलकर की आत्मकथा ‘प्लेइंग इट माइ वे’ में तेंदुलकर ने चैपल के हवाले से लिखा है, “राहुल द्रविड़ से टीम का नियंत्रण अपने हाथ में लेने में मेरी मदद करें” ताकि हम भारतीय क्रिकेट पर वर्षो तक नियंत्रण कर सकें।

भारतीय क्रिकेट टीम के 2005 से 2007 तक मुख्य कोच रहे आस्ट्रेलियाई चैपल पर तेंदुलकर ने अपनी पुस्तक में जमकर भड़ास निकाली है।

तेंदुलकर ने लिखा है, “चैपल किसी रिंगमास्टर की तरह थे, जो खिलाड़ियों पर अपने विचार थोपते थे, चाहे खिलाड़ी के लिए वह सुविधाजनक हो या नहीं।”

पूर्व कप्तान सौरभ गांगुली तब चैपल के खिलाफ बोलने वालों में अकेले थे और उन्हें इसके एवज में अपनी कप्तानी गंवानी पड़ी थी। गांगुली ने तब सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा था कि चैपल ने द्रविड़ को अपने पक्ष में करके उन्हें कप्तानी से हटाया।

लेकिन यहां एक विवादजनक स्थिति पैदा होती है। अगर द्रविड़, चैपल से इतने नजदीक थे तो उन्हें हटाकर तेंदुलकर को कप्तान कैसे बनाया जा सकता था।

द्रविड़ ने लेकिन मामले से खुद को पूरी तरह अलग करते हुए कहा है कि वह दो व्यक्तियों के बीच हुई निजी बातचीत में बोलने के अधिकारी नहीं हैं।

सचिन के पक्ष में तब हरभजन सिंह और जहीर खान सामने आए थे और दोनों ने चैपल पर खिलाड़ियों के बीच मतभेद और असुरक्षा पैदा करने का आरोप लगाया था।

वास्तव में चैपल बिल्कुल नए विचारों के साथ भारत आए थे और उन्हें नहीं पता था कि वह सांप के बिल में हाथ डालने जा रहे हैं और उनके बिल्कुल नए विचारों को यहां कोई मानने वाला नहीं है।

चैपल ने ही सबसे पहले कहना शुरू किया था कि महेंद्र सिंह धौनी या दिनेश कार्तिक में कप्तान बनने की क्षमता है जो सीनियर खिलाड़ियों से दबाव कम कर सकते हैं। और यह भी सभी जानते हैं कि चैपल ने वी.वी.एस. लक्ष्मण से पारी की शुरुआत करवाने की कोशिश की और कहा था कि लक्ष्मण का टेस्ट क्रिकेट अंत की ओर है।

कुछ भी हो एक खिलाड़ी के तौर पर सचिन के योगदान पर सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता। उन्हें भगवान मानने वाले उनके लिखे को सर आंखों पर रखेंगे ही और निश्चित तौर पर प्रकाशक जब ऐसे महान खिलाड़ी की आत्मकथा लेकर आते हैं तो उनका मकसद कुछ ऐसी चीजें लेकर आना होता है जो लेखक के समर्थकों को पुस्तक खरीदने पर विवश कर दें।

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