नई दिल्ली, 21 सितम्बर (आईएएनएस)। वित्तीय क्षेत्र में सुधार की एक महत्वपूर्ण पहल के तहत केंद्र सरकार ने बुधवार को तीन अहम फैसले लिए। इसके तहत ब्रिटिश शासनकाल से चली आ रही रेल बजट को आम बजट से अलग पेश करने की 92 साल पुरानी परंपरा को समाप्त कर दोनों बजट का एकीकरण कर दिया गया है। योजना और गैर योजना मद में व्यय के अंतर को भी समाप्त कर दिया गया है। साथ ही अब बजट फरवरी के अंतिम सप्ताह से पहले ही पेश किया जाएगा।
केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक के बाद कहा, “आनेवाले सालों में आम बजट में रेल बजट मिला होगा। अब केवल एक बजट होगा। इसके साथ ही अगले साल से योजनागत व्यय और गैर योजनागत व्यय के अंतर को भी समाप्त कर दिया गया है। नतीजतन केवल एक ही विनियोग विधेयक पेश किया जाएगा।”
जेटली ने कहा कि पिछले कई सालों से आम बजट के स्वरूप में गुणात्मक बदलाव आया है। रक्षा मंत्रालय जैसे कुछ मंत्रालयों का परिव्यय रेलवे से अधिक है, लेकिन उसे आम बजट के साथ ही पेश किया जाता है। उन्होंने कहा, “हम बजटीय प्रक्रिया को हर हाल में 31 मार्च से पहले पूरा कर लेंगे।”
अधिकारियों ने बताया कि रेल बजट को आम बजट में मिलाने का प्रस्ताव रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने रखा था और नीति आयोग ने इसका समर्थन किया था। आयोग ने इसके अलावा योजनागत व्यय और गैरयोजनागत व्यय के अंतर को समाप्त करने का प्रस्ताव दिया था। दोनों बजट को एक में मिलाने से भारतीय रेलवे को 9,700 करोड़ रुपये की बचत होगी जो उसे डिविडेंड के रूप में चुकाने पड़ते हैं।
जेटली और प्रभु दोनों ने ही स्पष्ट किया है कि भारतीय रेलवे की अलग पहचान कायम रखी जाएगी, जिसमें बजटीय साधनों से परे जाकर और किराया निर्धारित कर संसाधन जुटाने की स्वतंत्रता भी शामिल है।
जेटली ने कहा, “रेलवे की कार्यात्मक स्वायत्तता को बरकरार रखा जाएगा। रेलवे की अलग पहचान बनी रहेगी। अतिरिक्त बजटीय संसाधनों का लाभ उठाने का हमारा प्रयास जारी रहेगा।”
प्रभु ने कहा, “यह ऐतिहासिक कदम है जो अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के हिसाब से है, सबसे अच्छा है। इससे रेलवे में पूंजीगत व्यय को बढ़ावा मिलेगा और देश में कनेक्टिविटी बढ़ने के साथ ही आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।”
रेलवे का अलग से बजट साल 1924 से ही बनाया जा रहा है। उस वक्त यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण अवसंरचना नेटवर्क था। उस वक्त रेलवे का बजट कुल बजट का 70 फीसदी तक हुआ करता था, लेकिन अब यह महज 15 फीसदी रह गया है।
देश के कॉरपोरेट जगत ने इस फैसले का स्वागत किया है।
सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने बताया, “नीतिगत नजरिये से मंत्रिमंडल के इस फैसले ने स्पष्ट संदेश दिया है कि सरकार अब बड़े पैमाने पर सुधारों को लागू करने वाली है। इससे विदेशी और घरेलू व्यापार भावना को प्रोत्साहन मिलेगा तथा देश में व्यापार का वातावरण निर्मित होगा।”
वहीं, बजट प्रस्तुत करने की नई तिथियों के बारे में जेटली ने कहा कि इसे पहले ही प्रस्तुत किया जाएगा। सरकार चाहती है कि वित्त विधेयक बजट सत्र के पहले हिस्से में पारित कर दिया जाए। लेकिन, बजट की तारीखें विभिन्न राज्यों के चुनाव की तारीखों को देखते हुए निर्धारित की जाएंगी।
गैर योजनागत व्यय में सरकार तथाकथित गैरउत्पादक क्षेत्रों में किए जानेवाले खर्च को शामिल करती है, जिनमें वेतन, सब्सिडी, कर्ज और ब्याज आदि होते हैं। वहीं, योजनागत व्यय में उत्पादक कार्यो के लिए व्यय का प्रबंध किया जाता है, जिसमें विभिन्न मंत्रालयों की परियोजनाएं शामिल होती है।
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि योजना आयोग के उन्मूलन के बाद योजनागत व्यय और गैरयोजनागत व्यय की प्रासंगिकता खो गई है।