नई दिल्ली, 23 अक्टूबर (आईएएनएस)। उत्तर पश्चिम प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण चीन सागर में इस समय तैनात आईएनएस सहयाद्रि शुक्रवार सुबह कोरिया गणराज्य के इंचिओन में प्रवेश कर गया। भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत इस पोत की तैनाती इस क्षेत्र में की गई है। कोरिया गणराज्य की नौसेना से विचार-विमर्श और आपसी सहयोग के लिए इस पोत के इंचिओन में 27 अक्टूबर तक रहने की संभावना है।
रक्षा मंत्रालय के बयान के अनुसार ऐतिहासिक सांस्कृतिक संबंध भारत और कोरिया गणराज्य के बीच जीवंत द्विपक्षीय रिश्तों का आधार है। दोनों देशों के बीच आर्थिक और सैन्य संबंध भी बढ़ते जा रहे हैं। भारत और कोरिया गणराज्य के बीच पहली द्विपक्षीय सैन्य वार्ता 2003 में हुई थी। पहली विदेश नीति और सुरक्षा संबंधी वार्ता 2005 में हुई थी। इसके बाद दोनों देशों की नौसैनाओं के बीच एक दूसरे से मेल-मुलाकात का दौर बढ़ा है। दोनों देशों के जंगी बेड़ों ने एक दूसरे के बंदरगाहों का दौरा भी किया है।
भारतीय नौसैनिक पोतों ने जून, 2012 में अंतिम बार बुसान का दौरा किया था। कोरिया गणराज्य की नौसेना ने भारतीय नौसेना को इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू, 2016 में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है। इसका आयोजन फरवरी 2016 होगा। यह आयोजन भारतीय के पूर्वी समुद्री तटों से दूर समुद्र में होगा।
आईएनएस सहयाद्रि की तैनाती द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने और दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच अंतर-परिचालन से संबंधित विचार-विमर्श को बढ़ाने के लिए की गई है। आईएनएस सहयाद्रि शिवालिक श्रेणी की स्वदेश निर्मित पोत है। इसे भारतीय नौसेना में 21 जुलाई 2012 को शामिल किया गया था। एक साथ कई भूमिकाएं निभाने वाले इस नौसैनिक पोत के पास मौजूद और प्रभावी हथियार भंडार है।
पोत में लंबी रेंज की पोत रोधी मिसाइलें तैनात हैं। इसमें मध्य और छोटी दूरी तक मार करने वाली हवाई मिसाइलें भी हैं। साथ ही विभिन्न क्षमताओं से लैस गन इसे जमीन और आसमान से संभावित किसी हमले के खिलाफ सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं। एक साथ कई भूमिकाएं निभाने वाले दो समेकित हेलीकॉप्टरों की तैनाती से पोत की मजबूती और बढ़ जाती है। फिलहाल कैप्टन कुणाल सिंह राजकुमार आईएनएस सहयाद्रि के कमांडर हैं।
आईएनएस सहयाद्रि के बंदरगाह में तैनाती के दौरान दोनों देशों की नौसेना के बीच सहयोग की कई परियोजनाओं की योजना बनाई गई है। प्रस्थान के दौरान आईएनएस सहयाद्रि के कोरिया गणराज्य के नौसैनिक पोतों के साथ मिलकर अभ्यास करने की योजना है ताकि खोज और बचाव अभियान के दौरान आपसी संचार को बढ़ावा मिल सके।