धमतरी, 17 मई (आईएएनएस/वीएनएस)। अक्सर परिवार में नोक-झोंक के बाद एक मुहावरा मुंह पर आ जाता है- जहां चार बर्तन हों तो आवाज होगी ही। मगर छत्तीसगढ़ के धमतरी में करीब पांच दशक से एक परिवार सांझा चूल्हा की परंपरा बखूबी निभा रहा है। यही नहीं, यहां की रसोई में बर्तन ऐसे हैं, जिनमें आवाज ही नहीं होती।
धमतरी, 17 मई (आईएएनएस/वीएनएस)। अक्सर परिवार में नोक-झोंक के बाद एक मुहावरा मुंह पर आ जाता है- जहां चार बर्तन हों तो आवाज होगी ही। मगर छत्तीसगढ़ के धमतरी में करीब पांच दशक से एक परिवार सांझा चूल्हा की परंपरा बखूबी निभा रहा है। यही नहीं, यहां की रसोई में बर्तन ऐसे हैं, जिनमें आवाज ही नहीं होती।
जी हां! धमतरी शहर का आमापारा वार्ड ऐसे ही एक परिवार का साक्षी है जो सांझा चूल्हा (संयुक्त परिवार) की संस्कृति को आज के ‘नेक्स्ट जनरेशन’ के जमाने में जीवंत रखे हुए है। नाग परिवार के मुखिया रामचंद धीवर जब आज से 22 साल पहले गुजर गए तो परिवार को लगा कि उनके सिर से कोई मजबूत छाया छिन गई हो। परिवार के मुखिया सुखदेव और शिवओम ने तय किया कि अब हम सब एक-दूसरे की छाया बनेंगे। हमारी एकता कभी नहीं बिखरेगी।
सन् 1982 में कॉलेज की पढ़ाई करते हुए शादी के बाद सोचा कि उनकी पत्नी मीना बैगा जब आवक पूछेगी तो वे क्या बताएंगे। इसी उधेड़बुन में शिवओम ने सराय स्कूल के पास चाय की दुकान खोली। मेहनत रंग लाई और बैगा का जादू चल गया। उनकी चाय अब दूर-दूर तक पसंद की जाने लगी।
समय गुजरा और आज चाय का ठेला होटल में तब्दील हो गया। आटा चक्की और सूखी मछली के थोक व्यवसाय से परिवार के 36 सदस्यों का जीविकोपार्जन इस शांति से चल रहा है कि पड़ोस में रहने वाले जावेद राजा, अकरम अली, नारायण वासनी, देव नारायण यादव, अशफाक हाशमी ने आज तक इस परिवार का ‘चील-चील बक-बक’ कभी नहीं सुना।
कहने का आशय है कि नाग परिवार के सांझे चूल्हे की रसोई के बर्तनों में आज तक आवाज ही नहीं हुई। तीन से चार बड़े चूल्हों की आग परिवार के सभी सदस्यों के पेट की आग ही नहीं बुझाती, बल्कि परिवार के सदस्यों में खासकर महिला और बच्चों के रिश्तों में कभी भी आग नहीं लगने देती।
रोजाना इस परिवार में 10 किलो चावल की खपत है। वहीं शाकाहारी हो या मांसाहारी सब्जी भी लगभग 10 किलो खप जाती है। नाश्ते की बात आए तो बच्चों को छूट है कि वे अपनी मन मर्जी का नाश्ता बनवा सकते हैं। बाकी के लिए जो बनता है, उसे सुबह का प्रसाद समझ कर सभी ग्रहण करते हैं। जब करीब के पूरे रिश्तेदार किसी समारोह के लिए इकट्ठे होते हैं तो परिवार की संख्या 36 से 250 हो जाती है। ढाई सौ वर्ग फीट की जगह में ही सब एडजस्ट कर लेते हैं।
रसोई भी ऐसी कि अन्नपूर्णा देवी की कृपा हमेशा बरसती है और कोई भी सदस्य भूखा नहीं रहता। करीब दो सदी से इसी घर से गौरा सज कर निकलता है जो आमापारा के लिए प्राचीनतम धरोहर से कम नहीं है।
हिसाब-किताब हमेशा लड़ाई की जड़ होती है। तमाम आय के श्रोतों से कितनी आमदनी हो रही है और खर्च कितना हो रहा है, इसका लेखा-जोखा शिवओम और मीना बैगा रखती हैं। पुस्तक-कापी, दवा-दारू, वस्त्र, गहनें और सुविधाओं की आपूर्ति मांग में लगे समय से भी कम समय में कर दी जाती है। इस तरह संयुक्त परिवार का बेमिसाल नजीर पेश कर रहा नाग परिवार।
उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो शादी होते ही अलग रहने की दरकार रखते हैं। छोटी-छोटी बातों पर लड़ कर रिश्तों को बड़ा घाव देते हैं। एक साथ मिलबैठ कर बात करने में, हंसी ठिठोली करने में, भोजन करने में क्या मजा आता है वह तो धमतरी में केवल नाग परिवार ही जानता है।
वास्तव में यदि ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को आत्मसात कर लोग सांझा चूल्हा परिवार बनकर रहें तो कोर्ट-कचहरी और अधिकार कर्तव्य की लड़ाई ही नहीं होगी परिवारों की अखंडता मोहल्ले की एकता में तब्दील होकर राज्य और देश को फिर वही पुराने दिनों वाली पहचान दिलाएगी जो भारतवर्ष की बुनियाद रही है।
नाग परिवार में आज से कुछ महीने पहले तक जोहतरी बाई का राज चलता था। यहां पर राज का मतलब ताना शाही से नहीं, बल्कि दिलों पर राज चलने से है। शिवओम बैगा नाग के 6 भाई और 2 बहनों को बेहतर संस्कार देने वाली उनकी मां का देहावसान हो गया, जिसके बाद परिवार के सदस्य अब माता पिता के आदर्श को मूलमंत्र मानकर चल रहे हैं। इस परिवार में 36 सदस्य तो है, पर इनके बीच 36 का आंकड़ा (अनबन) कभी भी नहीं रहा।
फिलहाल इस परिवार में सुखदेव- पुनईदेवी, अनिता, सुनीता, प्रकाश, ईश्वर, शिवओम-मीना बैगा, दुर्गा, रामेश्वरी, टीकम, दानेश्वर, गणेश-पूर्णिमा, अजय, जागेश्वर,आरती, महेश-मालती, पूरन, पंकज, इंद्र कुमार, देवनारायण-संगीता, विक्की, नीलकंठ, लक्ष्मीनारायण-अनिता, आयुष, किशन के साथ परिवार की दो बेटियां राम प्यारी पति चैतू राम, शांता बाई (पति दिवंगत भूखन धीवर) है।
परिवार के सभी सदस्य पढ़-लिख कर व्यवसाय से जुड़ चुके हैं। कुछ बच्चे स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर बाहर की दुनिया में भविष्य की तलाश में लगे हैं, जिन्हें परिवार का पूरा साथ मिलता है। बढ़ते परिवार को देखते हुए रूद्री रोड में एक ऐसी जमीन तैयार है, जहां पर यह सांझा चूल्हा उठकर जाएगा।