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 उप्र चुनाव : कैराना में विरासत की सियासत, मुद्दे नदारद | dharmpath.com

Saturday , 3 May 2025

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उप्र चुनाव : कैराना में विरासत की सियासत, मुद्दे नदारद

कैराना, 8 फरवरी (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की कैराना विधानसभा सीट हिंदुओं के कथित पलायन के मुद्दे को लेकर चर्चा में रही है। वहीं हिंदू-मुस्लिम-गुर्जर बहुल इस इलाके की राजनीति दो खानदानों -हसन और हुकुम- की विरासत के बीच अटकी हुई है। हिंदुओं के पलायन को भाजपा चुनावी मुद्दा बनाने में जुटी है, ताकि वोटो का ध्रुवीकरण किया जा सके। लेकिन स्थानीय लोग इस बार इन सबसे परे हटकर विकास पर बहस चाहते हैं।

कैराना, 8 फरवरी (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की कैराना विधानसभा सीट हिंदुओं के कथित पलायन के मुद्दे को लेकर चर्चा में रही है। वहीं हिंदू-मुस्लिम-गुर्जर बहुल इस इलाके की राजनीति दो खानदानों -हसन और हुकुम- की विरासत के बीच अटकी हुई है। हिंदुओं के पलायन को भाजपा चुनावी मुद्दा बनाने में जुटी है, ताकि वोटो का ध्रुवीकरण किया जा सके। लेकिन स्थानीय लोग इस बार इन सबसे परे हटकर विकास पर बहस चाहते हैं।

पिछले वर्ष पलायन के मुद्दे को लेकर कैराना खासा गर्म रहा था और इसकी गूंज विधानसभा में भी सुनाई दी थी, लेकिन चुनावी बेला में अब यहां की राजनीति दो सियासी घरानों के बीच फंसी हुई है। भाजपा ने कैराना विधानसभा सीट से सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को टिकट दिया है, जबकि समाजवादी पार्टी ने नाहिद हसन को टिकट दिया है।

पलायन के मुद्दे पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. चंद्रमोहन सिंह ने आईएएनएस से कहा, “निश्चित तौर पर कैराना से हिंदुओं का पलायन हुआ है। कानून-व्यवस्था खराब होने की वजह से यहां के लोगों का पलायन हुआ है। यह एक चुनावी मुद्दा है। यहां छेड़छाड़ की घटनाएं आम बात हैं। इसे रोकने के लिए ही भाजपा ने वादा किया है कि हम सत्ता में आएंगे तो एंटी रोमियो दल बनाया जाएगा। इसे स्कूलों के बाहर तैनात किया जाएगा, ताकि बहन-बेटियों की सुरक्षा की जा सके।”

कैराना विधानसभा सीट के अतीत पर बात करें तो 70 के दशक में सेना छोड़कर वकालत के साथ ही राजनीति की शुरुआत करने वाले हुकुम सिंह पहली बार 1974 में यहां से विधायक चुने गए थे। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कैराना में तब कांग्रेस नेता व पूर्व सांसद स्वर्गीय अख्तर हसन सक्रिय थे। उनके और हुकुम सिंह के बीच तब से शुरू हुई राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता आज तक कायम है।

पूर्व सांसद अख्तर हसन के पुत्र मुनव्वर हसन के नाम सबसे कम उम्र में लोकसभा, विधानसभा, राज्यसभा व विधान परिषद में पहुंचने का रिकॉर्ड भी है। अब उनके पौत्र नाहिद हसन भी उसी लड़ाई को आगे बढ़ा रहे हैं। लगभग चार दशक से दोनों परिवार यहां की राजनीति की धुरी बने हुए हैं।

हसन और हुकुम के चबूतरों के इर्द-गिर्द ही कैराना की सियासत घूमती रही है। सिंह लागातर चार बार यहां से विधानसभा का चुनाव जीते, लेकिन वर्ष 2014 में वह लोकसभा चुनाव में जीत गए। यह सीट खाली हो गई। इस सीट पर उपचुनाव हुआ तो बाजी हसन परिवार के हाथ लग गई। नाहिद हसन यहां से विधायक चुने गए।

वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में हुकुम सिंह को इस सीट से जीत मिली थी। उन्हें 80,293 मत मिले थे, जबकि दूसरे स्थान पर बसपा के अनवर हसन रहे थे। हसन को 60,750 वोट मिले थे। तीसरे स्थान पर रहे सपा के अयूब जंग को 21,267 मत मिले थे।

इस बार सपा ने उपचुनाव के विजेता विधायक नाहिद हसन को ही उम्मीदवार बनाया है, जबकि भाजपा ने हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को टिकट दिया है। बसपा से दिवाकर कश्यप मैदान में हैं, तो रालोद के अनिल चौहान भी यहां की चुनावी जंग को रोचक बनाने में जुटे हुए हैं।

कैराना विधानसभा सीट पर पर कुल 299,980 मतदाता हैं, जिसमें 163,493 पुरुष व 136,487 महिला मतदाता हैं और यहां की साक्षरता दर 60 फीसदी है। यहां के जातिगत समीकरण की बात करें तो इस सीट पर सर्वाधिक 142,000 मुस्लिम मतदाता हैं। जबकि 70 हजार शाक्य और 35 हजार गुर्जर मतदाता हैं।

विधानसभा क्षेत्र की समस्याएं : ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले दोनों घरानों के लिए विकास की बात यहां बेमानी लगती है। जीते कोई लेकिन उपेक्षा के चलते ही कंडेला में बनने वाले औद्योगिक क्षेत्र के विकास की योजना परवान नहीं चढ़ सकी। यमुना के खादर में धान, गन्ना व सब्जी की खेती होती है। यहां के लोगों को छोटी-छोटी नौकरियों के लिए भी अन्य राज्यों की शरण लेनी पड़ती है।

कैराना शहर के निवासी 35 वर्षीय योगेंद्र मित्तल ने आईएएनएस से कहा, “छोटी-छोटी नौकरियों का भी अभाव है। इसीलिए यहां के लोगों को दिल्ली और हरियाणा का रुख करना पड़ता है। कानून-व्यवस्था को लेकर चिंताएं अलग हैं। यहां की स्थिति दिनों-दिन बदतर होती जा रही है। नोटबंदी की वजह से भी छोटे उद्योगों पर संकट खड़ा हो गया है।”

उन्होंने कहा, “आप देखिए। विकास के मुद्दे पीछे छूट गए हैं। किसी के पास इलाके के विकास का रोडमैप नहीं है।”

कैराना के पंजीठ गांव के 40 वर्षीय सुलेमान बेग ने आईएएनएस से कहा, “इस बार लग नहीं रहा कि चुनाव हो रहा है। न झंडा, न बैनर और न ही पहले की तरह शोरगुल। नारे लगते जुलूस नहीं दिख रहे हैं। नाहिद हसन इलाके का बड़ा नाम है और मैदान में सिर्फ एक मुस्लिम होने की वजह से उनको इसका लाभ मिलेगा।”

बेग कहते हैं, “एक बात पिछले चुनावों में दिखती आई है कि यदि बड़े पैमाने पर मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण होता है तो फिर दूसरी तरफ से भी इसकी प्रतिक्रिया होती है। जाट-गुर्जर-कश्यप यानी गैर मुस्लिम जातियों में भी तेजी से लामबंदी शुरू हो जाती है। हालांकि, जनता यह चाहती है कि विकास के नाम पर बहस हो और उसके आधार पर वोट मांगे जाएं, लेकिन यहां तो सीधा उल्टा हो रहा है। ऐसे-ऐसे बयान दिए जा रहे हैं कि माहौल खराब हो।”

सपा के प्रवक्ता डॉ. सी. पी. राय कैराना में पलायन के मुद्दे को झूठा करार दे रहे हैं। राय ने आईएएनएस से कहा, “कैराना से पलायन के मुद्दे की कहानी गढ़ी गई। यह पूरा मामला ही फर्जी था। ये लोग हिंदुओं के पलायन के नाम पर ध्रुवीकरण की राजनीति करना चाह रहे हैं। इनको पता है कि यदि ध्रुवीकरण का खेल नहीं होगा तो उनकी हार निश्चित है।”

हालांकि, रालोद के महासचिव त्रिलोक त्यागी ने आईएएनएस से कहा, “सपा और भाजपा दोनों दलों को क्षेत्र के विकास से कोई लेना-देना नहीं है। यहां के नौजवानों को अन्य राज्यों में नौकरी के लिए पलायन करना पड़ रहा है। उद्योग धंधे चौपट हो चुके हैं। भाजपा के लोग पलायन के मुद्दे को जानबूझकर हवा दे रहे हैं।”

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