नई दिल्ली, 24 मार्च (आईएएनएस)। सरकार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के वर्गीकरण के लिए पूंजी सीमा बढ़ाने जा रही है।
नई दिल्ली, 24 मार्च (आईएएनएस)। सरकार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के वर्गीकरण के लिए पूंजी सीमा बढ़ाने जा रही है।
अधिकारियों ने बताया कि इस बारे में एक विधेयक का मसौदा तैयार हो चुका है।
अधिकारियों के मुताबिक, सूक्ष्म उद्यम के लिए पूंजी सीमा को दोगुना कर 50 लाख रुपये, लघु उद्यमों के लिए इसे बढ़ाकर 10 करोड़ रुपये और मध्यम उद्यमों के लिए इसे 10 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 30 करोड़ रुपये किया जाने वाला है।
एमएसएमई विधेयक-2015 के मसौदे में कहा गया है, “सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) और आईटी आधारित सेवाओं के अलावा हम सेवा क्षेत्र में विश्वस्तरीय कंपनी नहीं बना पाए हैं।”
मसौदे में कहा गया है, “भारत सेवाओं का वैश्विक निर्यातक बन सकता है, लेकिन उपर्युक्त अपवादों को छोड़ दिया जाए, तो ऐसा हो नहीं पाया है।”
एमएसएमई मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक, पूंजी सीमा बढ़ाने का मकसद एमएसएमई क्षेत्र में तेजी लाना तो है ही, लेकिन इसके अलावा इसका मकसद बीमार एमएसएमई उद्यम से बाहर निकलने की सुविधा देना और निवेश को अधिक उत्पादक कार्यो में लगाने की सुविधा देना भी है।
उन्होंने आईएएनएस से कहा, “एमएसएमई क्षेत्र को दिवालिया होने से संबंधित कई मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है। उनमें जान फूंकने के लिए वैधानिक आधार दिया जाना चाहिए। उनकी देनदारी को सीमित करने की जरूरत है और कारोबार बंद करने की प्रक्रिया में सुधार करने की जरूरत है।”
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट 2015-16 प्रस्तुत करते हुए कहा था कि अमेरिका की तर्ज पर एक नया व्यापक बैंकरप्सी नियम अव्यावहारिक उद्यम से बाहर निकलने की प्रक्रिया को असान कर देगा।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कर्ज भी एक बड़ा मुद्दा है। कर्ज की वापसी संदिग्ध हो जाने पर बैंक चिंतित हो जाते हैं, साथ ही कर्ज-शेयर अनुपात अधिक होने के कारण कंपनियां और कर्ज भी नहीं ले पाती हैं।
अधिकारियों ने कहा कि नई व्यवस्था में अनिवार्य कर लेखा परीक्षा और अनुमानित कराधान के लिए कुल आय की सीमा को भी 60 लाख रुपये से बढ़ाकर एक करोड़ रुपये किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, एमएसएमई का देश के सकल घरेलू उत्पादन में आठ फीसदी योगदान है। इसके अलावा कुल निर्यात में 40 फीसदी और कुल विनिर्माण उत्पादन में 45 फीसदी योगदान होता है।