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 काविल्या के गायन व रूपक की बांसुरी ने समां बांधा | dharmpath.com

Saturday , 3 May 2025

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काविल्या के गायन व रूपक की बांसुरी ने समां बांधा

नई दिल्ली, 15 सितंबर (आईएएनएस)। शास्त्रीय गायक काविल्या कुमार के सधे गायन और रूपक कुलकर्णी की मधुर बांसुरी सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। एम.एल. कौसर की स्मृति में आयोजित समारोह में कलाकारों ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया।

कला एवं संस्कृति के प्रचार एवं प्रसार के लिए 60 वर्षो से समर्पित संस्था प्राचीन कला केंद्र शास्त्रीय कलाओं के प्रसार के लिए पिछले पांच दशकों से देशभर में विभिन्न सांगीतिक कार्यक्रमों का आयोजन करता आ रहा है। यह केंद्र पिछले पांच वर्षो से दिल्ली में अपने संस्थापक दिवंगत एम.एल. कौसर की स्मृति में यह आयोजन करता आ रहा है। दो दिवसीय इस समारोह का आयोजन त्रिवेणी कला संगम सभागार में किया गया।

कार्यक्रम की पहली प्रस्तुति प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक काविल्या कुमार ने दी। काविल्या किराने घराने से ताल्लुक रखते हैं। इन्होंने गणपत राव गौरव से शिक्षा प्राप्त की। ऑल इंडिया रेडियो एवं दूरदर्शन के टॉप ग्रेड कलाकार हैं। काविल्या ने देश ही नहीं विदेशों में भी अपनी कला का बखूबी प्रदर्शन करके खूब वाहवाही बटोरी है।

दूसरी तरफ रूपक कुलकर्णी युवा पीढ़ी के ऐसे कलाकार है, जिन्होंने बांसुरी वादक की अलग शैली विकसित की। पंडित रूपक हरि प्रसाद चैरसिया के शिष्य हैं।

पंडित काविल्या कुमार ने कार्यक्रम की शुरुआत राग गौरी में निबद्ध बंदिश से की। इसके बाद अपनी सधी हुई गायकी में काविल्या ने राग गावति में विलंबित एक ताल बंदिश प्रस्तुत की। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए इन्होंने तीन ताल में धृत खयाल प्रस्तुत करके दर्शकों की खूब तालियां बटोरी। इनके साथ तबले पर पंडित प्रदीप चटर्जी ने, हारमोनियम पर राजेंद्र बनर्जी ने बखूबी संगत की।

इस सुंदर प्रस्तुति के पश्चात पंडित रूपक कुलकर्णी ने मंच संभाला। उन्होंने राग बागेश्री से आरंभ किया। इसमें इन्होंने आलाप, जोड़, झाला का सुंदर प्रदर्शन किया। पंडित कुलकर्णी बांसुरी पर एक संक्षिप्त आलाप लेते हैं। राग है शुद्ध सारंग। यह दिन के दूसरे प्रहर का राग है।

समय का ध्यान रखते हुए बांसुरी वादक रूपक कुलकर्णी इस राग का चयन करते हैं। उन्होंने इस राग को इस तरह से निखारा कि इसकी स्वर संगति जनता पर असर किया और सभी ने ध्यानपूर्वक मौन होकर इसका आनंद लिया। शुद्ध सारंग के बाद वे पहाड़ी धुन बजाते हैं। इस पहाड़ी धुन को उन्होंने पूरी तन्मयता से प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम का समापन राग में निबद्ध धुन से किया। इनके साथ तबले पर पंडित तन्मय बोस ने बखूबी संगत की। कार्यक्रम के अंत में मुख्य अतिथि के साथ रजिस्ट्रार डॉ. शोभा कौसर एवं सचिव सजल कौसर ने कलाकारों को प्रशस्ति पत्र एवं उतरिया से सम्मानित किया।

काविल्या के गायन व रूपक की बांसुरी ने समां बांधा Reviewed by on . नई दिल्ली, 15 सितंबर (आईएएनएस)। शास्त्रीय गायक काविल्या कुमार के सधे गायन और रूपक कुलकर्णी की मधुर बांसुरी सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। एम.एल. कौसर की स्मृति नई दिल्ली, 15 सितंबर (आईएएनएस)। शास्त्रीय गायक काविल्या कुमार के सधे गायन और रूपक कुलकर्णी की मधुर बांसुरी सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। एम.एल. कौसर की स्मृति Rating:
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