नई दिल्ली, 10 अक्टूबर (आईएएनएस)। देश में ‘वर्तमान कृषि संकट’ की वजह से तीन लाख किसानों की खुदकुशी के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएमसी) को जिम्मेदार ठहराते हुए पर्यावरणविद् व सामाजिक कार्यकर्ताओंने इस ‘महामारी’ की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से जांच कराने की मांग की है।
नवदान्य संस्था की वंदना शिवा तथा भारतीय कृषक समाज के कृष्ण बीर चौधरी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में एक याचिका दायर की है और उससे भारत में किसानों की खुदकुशी के मामलों की जांच करने और सरकार को किसानों के मानवाधिकारों के हनन को रोकने का निर्देश देने की मांग की है।
शिकायत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के विभिन्न पहलुओं को उठाया गया है और बताया गया है कि इनकी वजह से किस प्रकार वर्तमान कृषि संकट उत्पन्न हुआ है। यह याचिका साल 2006 में संशोधित मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 तथा साल 1997 में संशोधित एनएचआरसी (प्रक्रिया) रेग्युलेशंस 1994 के आधार पर तैयार की गई है।
शिवा ने कहा, “हमने 1995 से लेकर अब तक जितने भी किसानों ने खुदकुशी की है, उनकी सूची सौंपी है। ज्यादातर किसानों ने महंगे बीज व रसायनों पर निर्भरता के कारण कर्ज के जाल में फंसने के बाद खुदकुशी की है।”
उन्होंने कहा, “साल 1995 से लेकर अब तक तीन लाख से अधिक किसानों ने खुदकुशी की और इनमें से 84 फीसदी किसान बीटी कॉटन बेल्ट के हैं। इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि बीटी कॉटन, किसानों को कर्ज और खुदकुशी के जाल में फंसाने के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है।”
चौधरी ने कहा, “बीटी कॉटन बीज आत्महत्या के बीज हैं। जहां भी उसकी बुआई हुई है, वहां किसानों को कर्ज और मौत मिली है। अगर आप पंजाब तथा विदर्भ की तरफ देखें, तो खुदकुशी करने वाले किसानों की संख्या बढ़ी है, कर्ज में बढ़ोतरी हुई है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था बरबाद हुई है।”
याचिकाकर्ताओं ने मानवाधिकार आयोग से किसानों के मानवाधिकारों के हनन की जांच की मांग की है।